मानव का जीवन चुनौती पूर्ण है अथवा चुनौती भरा है। जो सत्य बुद्धि विवेक से , आत्म धैर्य से , आत्म अनुशासन से , आत्म स्थिर तन मन जीवन को रखकर, बनाकर इन चुनौतियों को पार कर सकता है व कर लेता है वही सच्ची सुख , शान्ति ,आनंद का और सच्चे विकास का पूर्ण व परम सत्य उत्तराधिकारी है । तथा वही ताजीवनीय आत्म कल्याणीय ,आत्म उद्धारीय , आत्ममंगल करणीय मार्ग अपने लिए प्रशस्त कर लेता है और व्यक्ति के अन्दर का आत्म साहस इतना असीम अडिग होना चाहिए कि वह स्व स्वाभिमानीय गुण स्वभाव , जीवन चरित्र के सत्य बल पर चुनौतियों से भरा अपना समस्त काल आत्म साहस और ईश विश्वास से व्यक्ति सम्पूर्ण चुनौतियों को अपने पक्ष में कर लेता है और चुनौतियां उसकी दास बन जाती हैं। अठारवीं उन्नीसवीं सदी के महामानव स्वामी विवेकानन्द जी के घोर अंधकारी चुनौतियों पर साहसपूर्ण उद्गार

भले छीड़ हो नेत्र ज्योति , हत् कम्पन हो धीमा ।

भले मित्र हो शत्रु , प्रेम भी छलने की हो सीमा ।

भले भाग्य भेजे जीवन में अभिशापों की आंधी ।

जान न पाये तम में  किसने राह हमारी बांधी , भले प्रकृति निज भौंह चढ़ाये और रोंदने आये । फिर भी हे आत्मा पहिचानो चिन्ता नेक न छाये ।

बढ़े चलो हां बढ़े चलो मत दायें बायें रुकना ,

तुम हो अजर , अमर , साहस पूर्ण शक्ति मानव ।

 ध्येय न भूलो अपना । ।

– डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

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