*गोबर्धन पूजा की तैयारी करती युवतियां*

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प्रतापपुर, देवरिया, बी0 खण्ड बनकटा के ग्राम सभा मिश्रौली में गोबर्धन पूजा के लिए गोधन बनाती युवतियां।

हमारे धर्मग्रन्थों के अधिकांश गूढ़ रहस्यों को इस तरह से सरल शब्दों में समझाया जिसे लोग नहीं जानते हैं और भ्रमवश अंधविश्वासी बन गए हैं । आज हम उनके द्वारा उद्घाटित गोवर्धन पूजा का रहस्य आपको बताना चाहते हैं ।

यहाँ विशेष रूप से आपको बताना चाहता हूं एक तथ्य कि कई लोग भर्मित हैं कि यह गाय या गोबर की पूजा की जाती है । वास्तव में यह गाय या गोबर की पूजा नहीं है । यह है गोबर्धन अर्थात गाय के उत्थान की उसकी वंश वृद्धि की पूजा एक विशाल पर्वत जिस पर अनेकों प्रकार की औषधियों एवं जड़ी बूटियों से युक्त पौष्टिकता से सम्पन्न घास उगायी जाती थी और क्योंकि उस घास से पशु गाय बैल इत्यादि बहुत पुष्ट होते थे और उनके वंश की उत्तमता के साथ वृद्धि होती थी इसलिये उस पर्वत को नाम दिया गया इसलिये हम गोबर्धन पर्वत की पूजा करते हैं ना कि गोबर की क्योंकि अज्ञानतावश गोबर्धन को गोबर धन समझ लिया गया है ।विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।। गोवर्धनको धारण करने वाले, गोकुल की रक्षा करने वाले प्राण रक्षक, ऐसे भगवान विष्णु को मैं कोटि-कोटि प्रणाम करतीं हूँ।

इस बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 13 नवंबर दिन सोमवार को दोपहर 02 बजकर 56 मिनट से हो रही है और समापन अगले दिन 14 नवंबर दिन मंगलवार को दोपहर 02 बजकर 36 मिनट पर होगा. ऐसे में गोवर्धन पूजा का पर्व 14 नवंबर को मनाया जाएगा
गोबर्धन पूजा मंत्र – तन्नो गोबर्धन प्रचोदयात्
मान्यता अनुसार गोबर्धन पूजा उपरांत लग्न शुरू हो जाता है।

पूजा में बहने रेंगनी के काट के साथ भाई को श्रापती हैं।जो औषधि गुण से सम्पन्न है।इसी दिन महिलाएं कजरौटा भी सेकती है, जो साल भर छोटे शिशु के आँखों में लगाया जाता हैं।

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