कारागार में मां देवकी ने दिया था, श्रीकृष्ण को जन्म श्रीमद भागवत कथा पूज्य श्री रमाकांत व्यास के मुखारविंद से।
उरई में प्रदीप सीरौठिया द्वारा आयोजित चल रही श्रीमद भागवत कथा मे बारिश के चलते हुये भी श्रद्धालुगणो का पूरा ध्यान रखा गया उनके पुत्र दीपमणि सीरौठिया द्वारा श्रद्धालु गणो के लिए पूरे कथा पंडाल में हजारो कुर्सियों पर बैठने की व्यवस्था कर दी गई। हजारो भक्त गण प्रसन्न देखें।
सर्वप्रथम परम पूज्य श्री रमाकान्त व्यास रावतपुरा धाम ने भागवत भगवान की आरती कराई तदोपरान्त महाराज ने कथा पंडाल में विराजमान सभी श्रोताओं को प्रणाम किया महाराज ने सर्वप्रथम “जीवन की डोर तुमसे बंधी है सांवरे” भजन सुनाया।
इसी बीच हजारों भक्तों के बीच में बैठे कुछ श्रद्धालुओं की ओर संकेत करते हुए कहा की जो ठाकुर जी को अपने साथ लाए हैं कृपया ठाकुर जी को अपनी गोद में बैठ कर कथा सुनाएं नीचे ना बैठाएं
महाराज ने बताया जब बच्चा जन्म लेता है तो पहली किलकारी निकलती है इस किलकारी में जन्म के साथ मृत्यु की भी अंतिम घोषणा छिपी होती है महाराज ने बताया मृत्यु को अगर पैसे से खरीदा जाता तो अमीर लोग कभी नहीं मारते जब हर किसी को जाना है तो दुख क्यों?
दुख तो सवरने की सीढ़ी प्रभु है तो हमारा ध्यान प्रभु पर होना चाहिए।
आगे महाराज ने भजन ” खबर न जा जग पल की है” के माध्यम से समय की ताकत का अहसास कराया।
महाराज जी ने कृष्ण जन्म की लीला का प्रसंग सुनाते हुए कहा
वेदों के अनुसार राजा को ही भगवान माना गया है। कंस अपने पिता को अनैतिक तरीके से हटाकर राजगद्दी पे विराजमान हुआ था और अपने पिछले जन्म में वह कालनेमि नामक राक्षस था इसलिए उसकी प्रजा उसे राजा स्वीकारने को तैयार नहीं थी लेकिन वो काफी हद तक एक अच्छा राजा था। उसके महल में कारावास था जो इस बात का पुख्ता सबूत है कि वो न्यायप्रिय था। यह बात भी पढ़ने को मिली है कि लोग उसके शासनकाल में सबसे ज्याद अनुशासित थे।
उसमें कुछ बुराइयों के साथ साथ बहुत सारी अच्छाइयां थीं इसलिए कुछ ऐसा घटित करवाना था कि वो भगवान बनने के करीब न पहुंचे इसलिए
एक भविष्यवाणी हुई जिसमें उसकी मौत के कारण को उजागर किया गया।
यह उसके विवेक पर था कि वो उस भविष्यवाणी पर कैसे प्रतिक्रिया व्यक्त करेगा।
मौत की खबर सुनकर वो अपनी बहन को मारने के लिए उठता है लेकिन जब उसका पति यह समझाता है कि आपको खतरा आठवें बच्चे से है न कि अपनी बहन से तो वो अपनी बहन को नुक्सान नहीं पहुंचाता। इससे एक अच्छी बात यह भी पता चलती है कि वो विवेकी था और उसमें विवेक से फैसला लेने की क्षमता थी। इसके बाद वो दोनों को एक ही कारागार में डलवा देता है। इससे भी उसके उत्तम गुण का पता चलता है। उसने नई नवेली दुल्हन के सपनो की लाज रखी। उसे उसके सपनो और उसके पति से वंचित नहीं रखा। इस तरीके से उसने पति पत्नी के प्यार को मरने नहीं दिया। यही एक कारण था कि उसने उन दोनों को दाम्पत्य सुख से वंचित नहीं किया। इतना ही नहीं जब वासुदेव अपने पहले बच्चे को लेकर कंस के पास गए तो कंस ने यह कहकर उन्हें लौटा दिया की उसे सिर्फ आठवां पुत्र चाहिए। इससे उसके चरित्र में चार चांद लग गए क्योंकि ऐसे उसकी मौत निश्चित नहीं थी
तब नारद ने आकर कंस के कान भरे कि खुद भगवान् हरि देवकी की कोख से जन्म लेंगे। पिछले जन्म में भी वो भगवन विष्णु के हाथों मारा गया था इसलिए भयभीत होकर उसने यह कुकृत्य किया। और यहीं से उसका पतन शुरू हो गया जिससे हरि के अवतार की लीलाएं समृद्धि पा सकें।
आकाशवाणी होने के पहले कंस का देवकी के प्रति बहुत प्रेम था। देवकी की विदाई के समय वो खुद देवकी और वसुदेव का रथ चालक बना। लेकिन जैसे ही आकाशवाणी हुई, कंस ने अपना असली रंग दिखाया। उसने अपनी तलवार निकाली और देवकी की हत्या करने को आगे बढ़ा।
ये देख कर वसुदेव बीच में आये। उन्होंने बातों के सहारे कंस को शांत करने का प्रयास किया। उन्होंने बोला कि अगर कंस देवकी को मार देता है तो वृषनि कुल के लोग उग्रसेन कुल को नहीं छोड़ेंगे। साथ ही उन्होंने कंस को तर्क दिया कि अपने से कमज़ोर और निहत्थे इंसान पर हमला करना कायरता की निशानी है। उन्होंने यह तर्क भी दिया कि कंस का काल तो आठवाँ पुत्र है। फिर वो इस शुभ अवसर पर इतना बड़ा पाप क्यों करने जा रहा है। तब तक कंस राजा नहीं बना था और ये सब सोचते हुए उसने उस वक़्त देवकी को छोड़ दिया।
अब कंस चाहता तो वह वसुदेव और देवकी को अलग अलग कारागार में डाल सकता था। लेकिन उसने सुन रखा था कि आठवीं संतान स्वयं विष्णु रूप होगा। उसे पता था कि विष्णु कितने बड़े छलिया हैं और अगर उसने उनके जन्म को रोकने का प्रयत्न किया तो कहीं कुछ भयानक ना हो जाए। भागवतम में बताया गया है कि आकाशवाणी के बाद से कंस को कई भयानक सपने आते थे जिससे वो बहुत ही ज्यादा डर जाता था। इसलिए, वो सोचता है कि मैं शिशु के जन्म लेने तक रुकता हूँ। फिर एक नन्हे कमज़ोर शिशु को मारने में क्या दिक्कत होगी!
लेकिन कंस ने ये नहीं सोचा था कि ये विष्णु रूप जन्म से ही इतना ताकतवर होगा कि बड़े बड़े दैत्यों का संहार करेगा
इसके अलावा कंस अपने मान-सम्मान को ले कर बड़ा संजीदा था। जब वसुदेव अपना पहला पुत्र कंस को देने आते हैं तो कंस राजसभा में बोलता है कि मुझ जैसा बड़ा राजा एक छोटे बालक को जीवन दान देता है। वो बोलता है कि खतरा तो आंठवे पुत्र से है। इसी मान सम्मान को बचाये रखने के लिए कंस वसुदेव और देवकी को पूरी तरह अलग नहीं करता है। क्योंकि उसे पता था कि अगर उसने ऐसा किया तो प्रजा भी विरोध करेगी। वैसे भी उसने राजा उग्रसेन (अपने पिता) को गृहबंदी बना रखा था। ऐसे में वो कुछ और करता तो बड़ा युद्ध होता और उसे डर था कि कहीं युद्ध की आड़ में विष्णु उसका वध ना कर दें।
तो विष्णु के छल से खुद को बचाने हेतु और भगवान विष्णु के बारे में पूरी जानकारी ना होने के कारण कंस ने और कड़े कदम नहीं उठाये
विनाशकाले विपरीत बुद्धि
विपरीत भक्ति में ऐसा ही होता है बुद्धि विपरीत कार्य ही करवाती है
आती हुई रेलगाड़ी जाती हुई दिखती है और हादसा हो जाता है
मति भ्रष्ट हो जाती है या होनी के अनुसार चलने लगती है
जब हम अपनी सर्वोच्चता को प्राप्त करने वाले होते है तब अक्सर ऐसा होता है और अगर इस बिंदु पर संभल जाएँ तो बुद्ध बन जाते है नहीं तो बुद्धु बनना तय है
और कंस बुद्धू बनता चला गया या होनी के अनुसार कार्य करने लगा सारा समय कृष्ण का ध्यान करने के कारण उसे सारूप्य गति मिली
कंस एक एक कर सभी संतानों को मार देता है। आठवें पुत्र के रुप में भगवान श्रीकृष्ण देवकी की कोख से जन्म लेते हैं। कंस को जब आठवीं संतान पैदा होने की खबर मिलती है तो वह दौड़ते हुए कारागार पहुंच जाता है और कन्या को लेकर जब जमीन पर मारता है तो कन्या कंस के हाथ से अचानक गायब होकर देवी के रुप में आ जाती हैं और कंस से कहा कि तुझे मारने वाला गोकुल के यहां पहुंच गया है।
महाराज ने कहा कि भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था।
जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ श्माया थी। जिस कोठरी में देवकी-वासुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े
तब भगवान ने उनसे कहा कि अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं। तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो। इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी।
उसी समय वासुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए। अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है।
उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, लेकिन वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा कि अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।
वही ठडेश्वरी मंदिर महाराज सिद्धेश्वर जी मंच पर आसीन रहे।
इस कथा वृतांत के दौरान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया, जिसमे प्रदीप – आशा सीरौठिया पुत्र दीपमणि – निक्की , ज्ञानमणि सीरौठिया परिवार सहित सभी श्रद्धालु जन भक्ति भाव में विभोर होकर खूब नाचे झूमे।
वही आरती दौरान फोकस न्यूज 24×7 के सम्पादक विनय पचौरी ने,आर एन गुबरेले, डॉक्टर बनवारी लाल शास्त्री पत्रकार फोकस न्यूज ओमप्रकाश उदैनिया अवधेश सीरौठिया शरद सीरौठिया विज्ञान विशारद सीरौठिया शैलेन्द्र पचौरी सहित कई भक्त जनो ने श्री भागवत भगवान पर पुष्प अर्पण कर महाराज से शुभ आशीर्वाद प्राप्त किया।