अर्जित अभ्यास उससे सबक लेकर भारत में पानी की कहानी को फिर से लिख सकें।
रिपोर्ट: विनय पचौरी
@focusnews24x7.com
■■■■■■■■■■■■■
इतिहास से सबक लेते हुए हमें तुरंत ही बचाव कार्य करने होंगे।
- जल प्रबंधन के विकेंद्रीकरण के प्रति रुचि के बाद भी भविष्य सुरक्षित करने के लिए पर्याप्त काम नहीं हो रहे जोकि विचारणीय है।
- भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में देश के प्रत्येक जिले में 75 जल स्रोत विकसित व क्रियान्वित हो रहे हैं।
- जल के विषय पर नीति निर्माण मे अधिकारियों में एकरूपता देखने को नहीं मिल रही है।आज भी स्थिति अति गम्भीर है।
- मात्रा को दृष्टि से पानी का उपयोग कम करें और इसकी एक एक बूंद को सतर्कता पूर्वक खर्च करें यह उपयुक्त समय है
- हमें यह ध्यान रखना होगा कि
- जल का संबंध हमारी अजीबिका से है।
- जल का संबंध हमारे भोजन और पोषण से है।
- जल का संबंध मनुष्य के भविष्य से है।
- हमारी “जल साक्षरता से” पहले की तुलना में वृद्धि हुई है पिछले दशकों में देश ने जल प्रबंधन के बारे में महत्वपूर्ण सबक सीख कर नए नजरिया विकसित किया है।
आज जल स्रोत बनाने व पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से अनेक कार्यक्रम बनाए गए हैं।
बड़ी संख्या में जलाशयों के निर्माण कार्य में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना पहले से ही महत्वपूर्ण योगदान दे रही है ।
भारत सरकार द्वारा घोषित मिशन अमृत सरोवर के अंतर्गत भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में देश के प्रत्येक जिले में 75 जल स्रोत विकसित हुआ।
पुनर्जीवित करने की योजना बहुत ही लाभान्वित व कारगर साबित हुई है ।
जल प्रबंधन के विकेंद्रीकरण के प्रति रुचि के बाद भी यह तय है कि भविष्य सुरक्षित करने के लिए पर्याप्त काम नहीं हो रहे हैं ।
दरअसल भूमि और जल के विषय पर नीति निर्माण मे अधिकारियों में एकरूपता देखने को नहीं मिल रही है।
तालाबों के रखरखाव की जिम्मेदारी एक एजेंसी की है जबकि निकासी केचमेंट एरिया का उत्तरदायित्व दो एजेंसी के ऊपर है जल संरक्षण के लिए इन नियमों को बदलने की जरूरत है।
इससे ज्यादा जरूरी है कि मात्रा को दृष्टि से पानी का उपयोग कम करें और इसकी एक एक बूंद को सतर्कता पूर्वक खर्च करें यह उपयुक्त समय है जब आने वाले दशक में हम अर्जित अभ्यास से सबक लेकर भारत में पानी की कहानी को फिर से लिख सकें।
यह बहुत आसान है बस हमें इस काम को अपने जीवन का मुख्य लक्ष्य बनाना होगा हमें यह ध्यान रखना होगा कि जल का संबंध हमारी अजीबिका से है । जल का संबंध हमारे भोजन और पोषण से है । जल का संबंध मनुष्य के भविष्य से है। इतिहास से सबक लेते हुए हमें तुरंत ही बचाव कार्य करने होंगे।
बचाओ कार्य मे हमें जुनून की हद तक प्रयास करना होगा ।
आप जानते हैं पहले जल निकाय गणना में सामने आया कि भारत में लगभग 24 लाख जल स्रोत है इनमें बारिश और भूजल पुनर्भरण किए जाने वाले जल स्रोत दोनों ही शामिल है।
केंद्रीय जल शक्ति जल संसाधन मंत्रालय द्वारा की गई गणना ।इस कारण से सभी जिलों मे जल स्रोतों को जियो टैगिंग करते हुए अक्षांश और देशांतरो के आधार पर सभी तालाब और टैकों को ,चकबंधो और जल भंडारों को एक दूसरे से अंकित रूप से जोड़ दिया गया है और यह गणना जल स्रोतों की संख्या बढ़ाने व उपयोग करने के लिहाज से भी जरूरी है ताकि बारिश की पानी का अधिक से अधिक भंडारण कर भूजल स्तर को बढ़ाया जा सके ।
आप जानते हैं हम हर साल कमरतोड़ सूखा और प्रलयकारी बाढ़ के दुष्चक्र में फंस जाते हैं और उसके लिए विवश हो जाते हैं बाढ़ और सूखे को इस भयावहता को घटाने का एक ही उपाय है वर्षा जल भंडारण के लिए लाखों की संख्या में नए जिलो और उन को जोड़ने का जुनून इसे साकार रूप देखकर ही बाढ़ के अतिरिक्त पानी को सूखे की आपदा से निपटने के लिए सचेत किया जा सकता है जल का भविष्य किस के उपयोग के प्रति हमारे विवेक पर निर्भर है ।
अच्छी खबर यह है कि हमारी जल साक्षरता से पहले की तुलना में वृद्धि हुई है पिछले दशकों में देश ने जल प्रबंधन के बारे में महत्वपूर्ण सबक सीख कर नए नजरिया विकसित किया है।
इस अवधि में मुख्य रूप से बांध और नहरे बनी ताकि लंबी दूरी तक जल भंडारण और जलापूर्ति की जा सके ।
लेकिन इसके बाद भी देश को एक बड़े आकार से जूझना पड़ा और
यह स्पष्ट हो गया कि केवल परियोजना के माध्यम से पानी की मात्रा को पढ़ाना पर्याप्त नहीं है ।
इसी समय सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट सीएसई ने भी डाइंग व्हिज्डम रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें भारत की परिस्थितिकी विविधता वाले क्षेत्रों मे वर्षा जल के भंडारण के लिए उपयोग आने वाले पारस्परिक तकनीकी का उल्लेख था इसलिए बरसात जब और जहां हो उसके पानी को तब और वहां बचाने की जरूरत है जैसा कि हम सब जानते हैं कि इसका संबंध हमारे भोजन और पोषण से है और जल का संबंध मनुष्य के भविष्य से है