देवरिया, कभी चीनी का कटोरा कहे जाने वाले इस परिक्षेत्र के केंद्र में रहे देवरिया में गन्ना की खेती किसानों के अर्थव्यवस्था का मूल आधार हुआ करता था, लेकिन एक – एक चीनी मिलें बंद हो गईं। राजनीतिज्ञों ने भी जाति/पंथ के आधार पर चुनाव लड़ते हारते जीतते रहे। परन्तु ऐसा कोई रहनुमा नहीं निकला जो गन्ना किसानों के दर्द को लेकर सड़क से सदन तक की लड़ाई लड़ा हो। गन्ना किसान भी जातीय राजनीति के रंग में रंग गए और उन्हें भी अपने मीठे मौत का अहसास तक नहीं हुआ। कभी गन्ना खेती से समृद्धि की सीढ़ी चढ़ रहे तमाम किसानों की आज भी जमीनें बेटियों के हाथ पीले करने हेतु बंधक हैं या बेचे जा रहे हैं। क्या क्षेत्रीय सांसदों एवंं विधायकों तथा अन्य दल के नेताओं की जिम्मेदारी सिर्फ चुनाव लड़ने और जीतने मात्र तक ही है ?

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