इससे श्रेष्ठ तीर्थ, साधना, तपश्चर्या अन्य कहीं कोई नहीं

रिपोर्ट: डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री

जो माता (मां) अपने पुत्र को जन्म देने में अपना रुप, यौवन, सौंदर्य व शक्ति देती है / गंवाती है और पिता उसका पालन पोषण करके बड़ा करता है।

वही पुत्र उन्हें क्षुधा शांति , उदर पूर्ति हेतु एवं मात्र सही खाने , पहनने , ओढ़ने , बिछाने के लिए तथा उन्ही के बनाए घर में उन्हे ठीक ढंग से रहने नहीं देता है । उपरोक्त आपूर्ति की सेवा सुश्रुषा सर्वप्रथम अनिवार्य धर्म कर्तव्य मानकर नहीं करता है। सोचो ? होश संभालो , होश में आओ और सर्व प्रथम धर्म सत्य कर्तव्य का पूर्ण सत्य पालन करो । इससे श्रेष्ठ तीर्थ, साधना, तपश्चर्या अन्य कहीं कोई नहीं है।

– डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

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