मखाना की खेती का तिलिस्मी रहस्य मिथिला से पहुँचा देवरिया

■जनपद देवरिया मखाना खेती की शुरुआत करने वाला पूर्वांचल का प्रथम जनपद बना

■मखाना खेती से बदलेगी जनपद की तस्वीर:डीएम

■तरकुलवा ब्लॉक के हरैया ग्राम पंचायत के प्रगतिशील मत्स्यपालक के तालाब में बेहन के लिए हुआ बीज का छिड़काव

देवरिया जिलाधिकारी अखंड प्रताप सिंह की अनूठी पहल पर मखाना खेती का तिलिस्मी रहस्य जनपद देवरिया पहुँच गया है।

सदियों तक मखाना की खेती पर बिहार के मिथिला क्षेत्र का एकाधिकार रहा है। आज तरकुलवा ब्लॉक के ग्राम पंचायत हरैया में प्रगतिशील मत्स्यपालक गंगा शरण श्रीवास्तव के तालाब में मखाना की बेहन (नर्सरी) तैयार करने के लिए बीज डाली गई। इसके साथ ही देवरिया मखाना खेती की शुरुआत करने वाला पूर्वांचल का प्रथम जनपद बन गया।
इसके लिए मत्स्य विभाग के अधिकारी राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा से 25 किलो मखाना का बीज लेकर आये थे। बेहन की प्रक्रिया मत्स्य विभाग के सेवानिवृत्त सहायक निदेशक डॉ डीएन पांडेय की देखरेख में हुई। उन्होंने बताया कि देवरिया की मिट्टी, पानी और जलवायु दरभंगा क्षेत्र की ही तरह है। यहां मखाना की खेती में दरभंगा जैसी पैदावार संभव है। डॉ पांडेय ने बताया कि बेहन के लिए डाले गये मखाना के बीज स्वर्ण वैदेही प्रजाति की है, जिसे काला हीरा के नाम से भी जाना जाता है। मखाना मीठे जल की फसल है।

आज डाले गए बीज की पौध फरवरी माह तक तैयार होगी जिसके बाद उसकी रोपाई की जाएगी। मखाना की फसल तैयार होने में नौ माह का समय लगता है और प्रति हेक्टेयर 28 से 30 क्विंटल पैदावार हासिल होती है। प्रति क्विंटल मखाना का बाजार मूल्य 35 से 40 हजार रुपये तक होता है।
मुख्य कार्यकारी अधिकारी मत्स्य विभाग नन्दकिशोर ने बताया कि मत्स्यपालकों द्वारा मखाना की खेती करने का उन्हें दोहरा लाभ मिलेगा मछली के साथ-साथ मखाना की उपज उनकी आय में बढ़ोतरी करेगी
सीडीओ प्रत्यूष पांडेय ने कहा कि प्रथम चरण में मखाना की खेती के लिए आठ प्रगतिशील मत्स्यपालकों को चिन्हित किया गया है। इन सभी को कैपिसिटी बिल्डिंग के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा और मखाना की खेती से जुड़ी बारीकियों से अवगत कराया जाएगा। किसानों को साइट विजिट भी करायी जाएगी।
जिलाधिकारी अखंड प्रताप सिंह ने जनपद में मखाना खेती की शुरुआत होने पर प्रसन्नता की। उन्होंने कहा कि कभी चीनी के कटोरे के नाम से मशहूर रहा जनपद देवरिया यहां के किसानों और मत्स्यपालकों के परिश्रम के चलते जल्द ही मखाना के लिए जाना जाएगा। इससे किसानों की आय बढ़ेगी और आर्थिक तरक्की की नई राह खुलेगी।

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