कथा के छठवे दिन कहे कथा व्यास पंडित प्रदीप महाराज वृंदावन धाम ने कृष्ण बाल लीला गोर्वधन पूजा के प्रसंग।

गौण बाबा मन्दिर पर चल रही संगीतमय भागवत कथा के छठवे दिन कथा व्यास पंडित प्रदीप महाराज वृंदावन धाम ने कृष्ण बाल लीला गोर्वधन पूजा के प्रसंग सुनाए व साथ मे श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का सुंदर चित्रण भी किया।उन्होंने कहा कि कृष्ण भगवान की अद्भुत लीलाएं मानव जीवन के लिए प्रेरणादायक हैं।
बाल कृष्ण सभी का मन मोह लिया करते थे। नटखट स्वभाव के चलते यशोदा मां के पास उनकी हर रोज शिकायत आती थी।
मां उन्हें कहती थी कि प्रतिदिन तुम माखन चुरा के खाया करते हो तो वह तुरंत मुंह खोलकर मां को दिखा दिया करते थे कि मैने माखन नहीं खाया।

पं. प्रदीप महाराज ने कहा कि यशोदा का अहंकार था तो कृष्ण नहीं बंधे लेकिन प्रेम से श्रीकृष्ण भक्तों के बंधन में बंध जाते हैं।
जब जीव मन वचन काया से स्मरण करता है तो प्रभु कृपा कर देते हैं।प्रभु अपने भक्तों से दूर नहीं रह सकते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण के घर गायों और माखन की कमी नहीं थी। बावजूद इसके गोपियों के अटूट प्रेम के चलते भगवान श्रीकृष्ण माखन चोर कहलाए।
इसी प्रकार श्रीकृष्ण लीला और गोर्वधन पूजा के प्रसंग पर भक्त गण झूम उठे।

आगे महाराज ने कहा कि बाल लीला करते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को घमंड चूर किया था.
कथा के अनुसार जब भगवान बाल रूप में माता यशोदा के साथ गोकुल में रहा करते थे तो गोकुल के पास ही बहने वाली युमना नदी में कालिया नाग रहा करता था. कालिया नाग इतना जहरीला था कि उसके जहर से युमना नदी का पानी काला पड़ गया था.
नदी के जल को पीने से पशु-पक्षी तुरंत ही मर जाया करते थे.
हर कोई इस समस्या से परेशान था. गांव के लोगा अपने जानवरों और बच्चों को नदी की तरफ नहीं जाने देते थे.
तब भगवान ने कालिया नाग को सबक सीखाने के लिए एक लीला रची.
श्रीकृष्ण एक दिन अपने मित्रों के साथ गेंद से एक खेल, खेल रहे थे.भगवान श्रीकृष्ण गेंद खेलत खेलते यमुना नदी के किनारे पहुंच गए तभी अचानक उनकी गेंद नदी में जा गिरी ।
खेल बीच में ही रूक गया. गेंद लेने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ क्योंकि सभी जानते थे कि नदी में कालिया नाग रहता है।

जब कोई तैयार नहीं हुआ तो भगवान श्रीकृष्ण ने गेंद उठाने वे ही जाएंगे क्योंकि गेंद उनसे ही नदी में गई है।

सभी मित्रों ने ऐसा करने से उन्हें रोका लेकिन भगवान श्रीकृष्ण नहीं माने और नदी में छलांग लगा दी।

तभी वहां पर कालिया नाग आ गया. उसने भगवान श्रीकृष्ण से क्रोध में कहा बालक तुरंत यहां से चला जा. लेकिन उल्टा भगवान श्रीकृष्ण ने ही कालिया नाग से कह दिया कि तुम यमुना नदी को छोड़कर चलो जाओ

इस बात से कालिया नाग इतना क्रोधित हुआ कि उसने भगवान श्रीकृष्ण पर ही हमला बोल दिया. श्रीकृष्ण ने भी कालिया नाग को मुंहतोड जवाब दिया. दोनों में भयंकर युद्ध हुआ. नदी में ऊंची ऊंची लहरें उठने लगीं. माता यशोदा और गोकुलवासी घबराने लगे. कालिया नाग ने श्रीकृष्ण पर भयंकर विष से हमला किया लेकिन भगवान पर इसका कोई असर नहीं हुआ.
भगवान कालिया नाग के फन पर खड़े हो गए. तब वह समझ गया कि ये कोई मामूली बालक नहीं हैं,
अंत में उसने हाथ जोड़कर भगवान से मांगी और और युमना नदी को छोड़ने का वचन दिया.
कालिया नाग के फन पर नाचते और बांसुरी बजाते हुए नदी से बाहर निकले तो यशोदा माता और पूरा गोकुल नाचने गाने लगा।
आगे महाराज ने भजन सुनाकर श्रोताओं को किया मंत्र मुग्ध।
यहाँ पहाड़गांव भेपता कमतरी काशीपुरा खकलल सेसा व नरी से काफी संख्या मे क्षेत्रीय श्रोताओं ने कथा का रसपान किया।

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