हो बांके बिहारी ने अपना बनाया है श्री राधे श्री राधे बोलो जय श्री राधे भजन पर झूम भक्त फर्रुखाबाद में

रिपोर्ट: विनय पचौरी 

■भगवान श्री सदा नंदेश्वर मंदिर प्रांगण में श्रीमद् भागवत  कथा व्यास साध्वी मिथलेश्वरी दीक्षित चित्रकूट धाम के मुखारविंद से

फर्रुखाबाद में भगवान श्री सदा नंदेश्वर मंदिर प्रांगण में चल रही श्रीमद् भागवत का मूल पाठ व संगीत में श्री रामचरितमानस कथा का आयोजन आखिरी दिन भक्ति भक्ति में डूबे दिखाई दिए ।
कथा व्यास मानस कोकिला मिथिलेश्वरी दीक्षित चित्रकूट धाम के मुखारविंद से कथा श्रवण का लाभ प्राप्त हो पाया है

वही आयोजक तिवारी परिवार एवं समस्त मोहल्लेवासी के सहयोग से विशाल कार्यक्रम की व्यवस्थाएं की गई ।
आपको बता दें आज कथा दौरान कथा व्यास मानस कोकिला मिथलेश्वरी दीक्षित चित्रकूट धाम ने बड़े ही सुंदर ढंग से बताया
प्रभु के कार्यों पर चर्चा करते हुए कहा कि आज के समय में मनुष्य को बड़े सादगी के साथ रहना चाहिए आप तो कथाये बड़े से बड़े होटल लॉज वगैरह में कर सकते हैं लेकिन कथा का लाभ उन्हीं को प्राप्त होता है जहां उनके पिता कथा करवाना चाहते हैं उस स्थान पर कथा करने से पितर प्रसन्न होते हैं

इसी को ध्यान में रखते हुए तिवारी परिवार व मोहल्ला वासियों ने मंदिर प्रांगण में ही कथा का आयोजन किया।

जहां काफी भक्तगणों द्वारा कथा श्रवण कर लाभ प्राप्त किया गया

जैसा श्रीभगवान ने कहा कि मनुष्य स्वार्थ की वजह से पाप करता है. जब व्यक्ति का स्वार्थ बढ़ जाता है, तो वह अपने अलावा किसी की नहीं सोचता।
उसे केवल और पाने की इच्छा रहती है। इस वजह से वह यह नहीं सोचता कि उसके स्वार्थ से किसी दूसरे को नुकसान होगा या उसे दुख उठाना पड़ेगा।

स्वार्थ की अति पाप करने को करती है मजबूर​।
मनुष्य पाप क्यों करता है? इस सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि इस पृथ्वी पर हर मनुष्य अपनी भलाई के लिए कार्य करता है लेकिन जब व्यक्ति का स्वार्थ बढ़ जाता है, तो वे अपने अलावा किसी की नहीं सोचता। उसे केवल और पाने की इच्छा रहती है। इस क्रम में मनुष्य यह नहीं सोचता कि उसके स्वार्थ से किसी अन्य को हानि होगी या दुख उठाना पड़ेगा। उसकी संवेदनाएं मरती जाती है और उसे दूसरों के दुख में भी सुख ही दिखता है।

वही कथा व्यास मिथिलेश्वरी ने श्री रामचरितमानस कथा की विभिन्न प्रसंगों से बैठे श्रद्धालुओं का मन मोह लिया और सभी भक्तगणों को सत्य के मार्ग पर चलने की राह दे दी।

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