*8 अक्टूबर कीर्तन दिवस के शुभ अवसर पर।*

                   हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं…!!

*भगवत प्रेम के लिए सहज साधन है-अष्टाक्षरी सिद्ध महामंत्र कीर्तन”बाबा नाम केवलम”*
कीर्तन की महिमा बाबा के शब्दो मे-
आधीभौतिक जगत के दुःख क्लेशो में कई प्रकृति की सृष्टि है, कई मनुष्यों की अपनी सृष्टि है।प्रकृति सृष्ट या मनुष्य सृष्ट,वह चाहे जो भी क्यों न हो ,सम्मिलित कीर्तन के फलस्वरुप समस्त बाधा-विपत्ति दूर हो जाती हैं, सामुहिक विपत्ति दूर हो जाती है।बाढ़, सूखा, दुर्भिक्ष, महामारी इत्यादि प्राकृतिक विपत्तियों में मनुष्य-सृष्ट विपर्यय के समय मनुष्य यदि जी भर कर निष्ठा के साथ मिलित कीर्तन करें, तत्क्षण मनुष्य के क्लेश उपशमीत होगें।
इसके अलावा कीर्तन के फलस्वरुप बहुविध मानसिक क्लेशो का भी उपशमन हुआ करता है।जो विपत्तियां अभी-अभी आयी है, और जो अभी नहीं आयी है, किंतु उनके आने का संकेत प्राप्त हो रहा है, वे सभी इस कीर्तन के परिणाम स्वरूप दूर हो जाती है।यदि पहले ही कीर्तन किया जाय ,अनागत बाधा-विपत्ति आने के पहले ही वे प्रिमोनिशन के स्तर में ही ,प्रोग्नोसिस के स्तर में ही दूर हो जाती है।क्यों हट जाती हैं?क्योंकि मात्र सम्मिलित मानस शक्ति के दबाव से हटती है,ऐसी बात नहीं ,इतने लोगो का मन एक परमपुरुष से प्रेरणा प्रकट तीब्र शक्ति लेकर आगे बढ़ता है,उसी के दबाव से हट जाती है।
जहाँ कीर्तन किया जाएगा वहाँ जो लोग योगदान करेगें, कल्याण मात्र उन्हीं का होगा,ऐसी बात नही है, जो लोग भाग नहीं लेगें उनका भी होगा।और जो भाग नहीं लेते हो ,नापसंद करते हैं, उनकी भी भलाई होगी।वे यदि मन -प्राण से सुनें, तो अवश्य ही उनकी भलाई होगी।वे यदि मन-प्राण देकर न सुनें,अश्रद्धापूर्वक-अवहेलना पूर्वक सुनें, उनकी भी भलाई होगी।”श्रद्धया हेलया वा “।श्रद्धासहित सुनने पर भी भलाई होगी,अव्हेलनापूर्वक सुनने पर भी भलाई होगी।
💐श्री श्री आनन्दमूर्ति जी💐
कलकत्ता,16 मई,1982)
(आनन्द-वचनामृतम,22 वां खण्ड)
प्रस्तुति-मनोज भारती, हिन्दुस्तान, प्रेस रिपोर्टर

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