सरकारी सुविधा से निःशुल्क कराएं मूक बाधिर बच्चों का इलाज

*जिलाधिकारी की मौजूदगी में हुई 42 बच्चों की स्क्रीनिंग*

*25 बच्चे कॉक्लियर इम्प्लांट के लिए हुए चिन्हित*

देवरिया जिले के 0 से 5 वर्ष तक के जन्म से गूंगे-बहरे बच्चों की पहचान कर उनका इलाज कराने के लिए सीएमओ कार्यालय में जिलाधिकारी अखंड प्रताप सिंह की अध्यक्षता में स्क्रीनिंग कैंप का आयोजन किया जाएगा। स्क्रीनिंग कैंप में विनायक कस्मेटिक एण्ड लेजर सर्जरी सेंटर लखनऊ द्वारा आवाज सुनने एवं बोलने में काफ़ी परेशानियों का सामना करने वाले 42 बच्चों की स्क्रीनिंग की गई । इसमें से 25 बच्चों को कॉक्लियर इम्प्लांट के लिए चिह्नित किया गया। उनकी ऑडियोलाजिस्ट द्वारा जाँच की गई।
इस मौके पर जिलाधिकारी अखंड प्रताप सिंह ने कहा कि एडीप योजना के तहत गंभीर मामलों वाले बच्चों को अभिभावक के साथ कॉक्लियर इम्प्लांट हेतु विनायक कस्मेटिक एंड लेजर सर्जरी सेंटर लखनऊ भेजा जाएगा। जहाँ ऑपरेशन कराकर वे अपना सफल इलाज कराएंगे। उन्होंने कहा कि अब तक जिले के 16 मूक बाधिर बच्चों की कानपुर में सर्जरी कराई गई है। जिलाधिकारी ने बताया कि 6 वर्षीय देव मौर्या की कॉक्लियर इम्प्लांट की सर्जरी मेहरोत्रा ईएनटी अस्पताल में कराई गई थी। सर्जरी के बाद दो वर्ष स्पीच थेरपी के बाद वह अब सामान्य बच्चों की तरह बोल सुन सकता है और स्कूल भी जाता है।
सीएमओ डॉ राजेश झा ने कहा कि आरबीएसके योजना अन्तर्गत बच्चों में होने वाली 43 तरह की बीमारियों का पता लगाने के लिए आंगनबाड़ी केन्द्रों व सरकारी विद्यालयों पर स्क्रीनिंग कैंप लगाकर बच्चों की जाँच की जाती है। बहरेपन की समस्या से बच्चों को बचाने के लिए समय रहते इलाज बहुत जरूरी है। इसके लिए माता- पिता दोनों को ध्यान देने की जरूरत है। बहुत सारे बच्चों में जन्मजात बहरेपन और नहीं बोल पाने की जानकारी माता- पिता को होती है। इसके बावजूद भी वो बच्चों के बड़ा होने का इंतजार करने लगते हैं। यही लापरवाही आगे चलकर गंभीर हो जाती व ठीक भी नहीं हो पाती है। बच्चों में जन्मजात बोलने और सुनने में होने वाली समस्या को दूर करने के लिए कॉक्लियर इंप्लाट सर्जरी की जाती है। उन्होंने कहा कि बहुत सारे बच्चे छह महीने के बाद भी नहीं बोल और सुन पाते हैं। इसके निदान के लिए सर्जरी को चुना जा सकता है। कॉक्लियर इंप्लाट सर्जरी में एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का उपयोग किया जाता है। उसे अंदर और बाहर फिट करने के लिए सर्जरी की जाती है। सर्जरी के दौरान 4-5 घंटे का समय लगता है। मरीज को बेहोश कर सर्जरी होती है। इससे बच्चों में सुनने की क्षमता विकसित होती है। गूंगे और बहरे बच्चों के लिए सर्जरी किसी वरदान से कम नहीं है।
इस मौके पर आरबीएस के नोडल अधिकारी डॉ संजय चंद, एसीएमओ डॉ संजय गुप्ता, डॉ प्रदीप गुप्ता, ऑडियोलाजिस्ट राजेश, दुर्गेश कुमार, डीआईसी मैनेजर राकेश कुशवाहा, सभी ब्लॉक के आरबीएसके टीमऔर लखनऊ टीम से रमेश अवस्थी, मोनु अन्य लोग मौजूद रहे।

*कॉक्लियर इम्प्लांट के बाद थेरपी बहुत जरूरी*
छह वर्षीय देव मौर्य की माँ सुनिता देवी ने बताया कि देव के जन्म के दो वर्ष वर्ष का हुआ तो कुछ बोलने पर रिस्पॉन्स नहीं करता था। कई चिकित्सकों के यहां दिखाया तो पता चला कि देव सुन नहीं सकता है, जिसके कारण वह बोल भी नहीं सकता है। यह सुनकर घर के सभी लोग परेशान हो गए। चिकित्सकों ने बताया कि इलाज में लाखों रूपये खर्च होंगे। घर के सभी लोग काफ़ी निराश हो गए। देव जब 3 वर्ष का हुआ तो स्वास्थ्य विभाग की आरबीएसके टीम गांव में बच्चों की जांच के लिए आई। टीम ने देव की जांच किया और आरबीएसके योजना के तहत देव के निशुल्क इलाज के बारे में बताया। चिकित्सकों की टीम ने पूरी कागजी कार्यवाही करते हुए देव को इलाज के लिए मेहरोत्रा ईएनटी अस्पताल भेजा। जहां चिकित्सकों ने देव की जांच की और कॉक्लियर इम्प्लांट किया। सर्जरी के बाद देव की कानपुर में ही दो वर्ष तक थीरपी कराई गई। सुनिता बताती हैं कि थेरपी के बाद देव से मैने घर पर बहुत बातें करने लगी वह धीरे-धीरे बातों को सुनकर समझने लगा। अब वह धीरे-धीरे बोलने लगा है और कुछ पूछने पर उसका जवाब भी देता है।

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