व्यक्ति ( नर-नारी, स्त्री-पुरुष ) की गलत आदतें ही पड़ जाने पर व्यक्ति के अभ्यासित हो जाने पर वह जीवन भर दुःखदायी सिद्ध होती है और ताजीवन दुःख देती है । इसीलिये व्यक्ति को अपने पूर्ण परम सत्य आत्मायी दिशा दर्शनीय , दिग्दर्शनीय परम सत्य बुद्धि विवेक व आत्म अनुभव अनुभूति से अपनी गलत आदत अभ्यास को पहचानते देखते परखते हुये गलत आदतें अपने से हटा लेना चाहिये । उनसे अपने को सम्पूर्णतया मुक्त कर लेना चाहिए तथा उनसे मुक्त हो जाना चाहिये । सच्ची जीवन की सुख, शान्ति ,आनंद और चैन की सांस तभी मिलेगी तभी ही अपना आनंदमयी सुखशांतिमयी जीवन बनाओगे व जी पाओगे तथा अपने घर परिवार व घर को स्वर्णिम स्वर्गमयी स्वरूप प्रदान कर पाओगे एवं आत्मशांतिमयी आत्मआनंदमयी सर्वशांतिमयी,आनंदमयी राष्ट्र में भूमिका निभा पाओगे ।

* सब कुछ अच्छा-बुरा तुम्हारे ही भीतर है बुरे को त्यागोगे और अच्छे को अपनाओगे । सच्चे बनजाओगे तब सब सुखों को पाओगे । स्वयं का जीवन , घर परिवार का जीवन , राष्ट्र समाज का जीवन, विश्व समाज का जीवन परम सत्य आनंद दायी परमसत्यसार्थक सिद्ध कर जाओगे ॥

* व्यक्ति द्वारा परम सत्य धारण करना ही परम सत्ता , सर्वोच्चसत्ता जगद्‌ पिता जगद्‌ माता का जगद् ईश्वरीय परम सत्यधर्म है, सत्य का अनुसरण ही, सत्य का पालन ही परमसत्य धर्म है, सत्य को अपने आचरण , चरित्र, जीवन कर्म, जीवन कार्य व्यापार में जीना ही परम सत्य धर्म है । धर्म न हिन्दू है न मुसलमान है न सिख न ईसाई । धर्म मात्र सत्य को सत्य से पालन करना ही,आचरण चरित्र में जीना ही सत्य धर्म का पूर्ण परम सत्य स्वरूप है ।

सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप ।

जाके हृदय सांच है ताके हृदय आप ॥

* व्यक्ति जो कर्म करता है तन मन जीवन को सम्पूर्ण समर्पित करते रखते हुये एकाग्र होकर एक उद्देश्य एक लक्ष्य में पूर्ण मन ज्ञान ध्यान लगाकर वह अवश्य ही कर्म अनुरूप फल पाता है । परिणाम पाता है । यह अकाट्य परम सत्य भले ही देर अबेर फलीभूत हो परन्तु कर्म लाभ अथवा हानि रूप में फलता फूलता अवश्य है । सही स्वरूप सही स्वरूप मे और गलत स्वरूप गलत रुप में ।

* पांच विकारों ( काम, क्रोध, लोभ , मोह और अहंकार ) से जो मुक्त हो गया जिसने पंचविकारों से अपने को मुक्त कर लिया। वह समझो, परमसत्ता , सर्वोच्च सत्ता , ईश्वरीय सत्ता का पूर्ण परमसत्य प्रिय आराधक हो गया । जिसने उपरोक्त विकारों को आत्मनियंत्रित नहीं किया। वह मात्र छ्लीय छद्मीय झूठ पाखण्डीय आत्म धोखेबाज , दगाबाज , अपने साथ और संसार जनों के साथ धोखा देने, धोखा करने वाला दगाबाज मात्र है।

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पायं ।

बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो बताय ॥

– डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

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