व्यक्ति (नर-नारी,  स्त्री-पुरुष) में गलत आदतें, गलत अभ्यास पड़ने का मूल कारण

रिपोर्ट: डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

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घर परिवारीय लोगों का संस्कारीय न होना

  • गलत अभ्यास उस व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन को दुःखदायी व कष्टपरक बनाता
  • गलत बुरी आदतों का स्वरूप मनुष्य को आततायी बना देता है।
  • बच्चों पर ज्यादा मोह आसक्ति न रखते  उसकी गलतियों पर अंकुश  लगाने को ध्यान में रखते हुये कार् करे।

अत: हम कह सकते है कि व्यक्ति (नर-नारी,  स्त्री-पुरुष) में गलत आदतें, गलत अभ्यास पड़ने का मूल कारण घर परिवारीय लोगों का संस्कारीय न होना अथवा गलत संगति में पड़ जाना ।

व्यक्ति (नर-नारी , स्त्री -पुरुषों ) में गलत, बुरी,कष्टदायी, दुःखदायी, सम्पूर्ण जीवन को बर्बाद करने में सर्वोच्च भूमिका निभाने वाली, उसे बर्बादी के शिखर पर ले जाने वाली उसमें सृजित मात्र बुरी, गलत, खराब आदतें अभ्यास का मूल कारण माता – पिता का सद् संस्कारीय न होना अथवा उसकी संगति गलत दिग्भ्रमित कुसंस्कारीय लोगों नर -नारी , स्त्री पुरूषों के साथ हो जाना ।

गलत आदतें, बुरा गलत अभ्यास

गलत आदतें, बुरा गलत अभ्यास उस शिकार हुए व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन तो दुःखदायी व कष्टपरक बनाता हुआ उसे तो बर्बाद कर ही देता है ? परन्तु वह सम्पूर्ण घर परिवार में व सामाजिक व्यवस्था में भी निरन्तर गलत-बुरे मार्ग पर बढ़ता हुआ तमाम अपराधिक रूपों स्वरूपों में लिप्त होकर, लिप्त रहकर लूट , चोरी, डकैती, दंगा-फसाद, हत्या, बलात्कार जैसी गतिविधियों को जन्म देकर मुहल्ला, नगर, जिला, प्रदेश व देश तक में एवं बाहर त्राहि-त्राहि मचाकर स्वयं के जीवन को विनाश की कगार पर लाकर व अन्य, समाज के लोगों के विनाश का कारण बनता है I गलत बुरी आदतों का स्वरूप मनुष्य को आततायी बना देता है I जो समाज में भयंकर विकृति का पर्याय है। ऐसी स्थितियों को बनाने बढ़ाने में घर परिवारीय लोगों का लचीलापन व पक्षपातीय कानून का ढीलापन तथा भ्रष्ट आचरणीय न्यायधीशों, सत्ताधीशों , अधिकारियों, कर्मचारियों की भी बहुत भूमिका होती है और बालक व्यक्ति का यह गलत बुरी आदतों का छोटा स्वरूप तमाम विकृतियों को जन्म देकर समाज और राष्ट्र के लिए अभिशाप सिद्ध होता है।

इस विकृत स्वरूप अभिशाप को समाप्त करना बहुत जरूरी है। यह गली , मुहल्ला, नगर,जिला, प्रदेश, देश का सुख चैन छीन लेता है। इसकी समाप्ति के लिए व्यक्ति को, परिवार को,

परिवार के मुखिया को सद् संस्कारीय होने , पर सर्वप्रथम ध्यान देना चाहिए।

क्योंकि बाल्यकाल में ही बालक घर परिवार में गलत , बुरे स्वरूपों, बुरी व्यवस्था को देखकर ही सुनकर , जानकर गलत अभ्यासी बनता है। बच्चों पर ज्यादा मोह आसक्ति न रखते न करते हुए उसकी गलतियों पर अच्छी समझ को ध्यान में रखते हुए उसे अच्छा खासा दण्ड अवश्य देना चाहिए जिससे वह आगे गलत अभ्यासी न बने I शासन व सत्तारूढ़ प्रबंध कर्ताओं को भी ऐसे निष्पक्षीय कानून बनाना व उनका स्वयं के द्वारा निष्पक्ष होकर एसे बिगड़े तत्वों, बिगड़े परिवारों की, व्यक्ति की शारीरिक मानसिक रुपीय सुधार की स्थितियां उत्पन्न हों। ? इस ढंग से पालन करना चाहिए ।

यह एक समाज में अति विकृत स्वरूप है।

जो किसी हद तक सामूहिक विनाश का स्वरूप लेता है व ले सकता है। इसमें परिवार , देश का कानून व न्यायधीशों को पूर्ण परम सत्य ईमानदार, अति सजग होकर इन परिवारीय सामाजिक विकृतियों का शीघ्र उन्मूलन करने हेतु अच्छी सच्ची अच्छे चरित्र अच्छा वातावरण का निर्माण करने वाला सत्वगुणीय सात्विकीय आचरण चरित्रीय स्वरूप का आश्रय लेकर इस उपरोक्त विनाशीय स्थिति का, स्वरूप का समापन अथवा उन्मूलन करना चाहिए I

डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

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