वर्तमान में भारत में प्रजातंत्र हास्यास्पद न्यायी व्यवस्था कठपुतलीय ज्यादातर निजसुख स्वार्थ मे डूबे लोभीय सत्ता आसीन

  • सत्व गुण सात्विकीय प्रवृत्ति धारण पर कल्याण सम्भव

 रिपोर्ट : डा० बनवारीलाल पीपर “शास्त्री”

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भावी भविष्य में भारत के जनमानस की क्या दशा होगी, यह परम ईश्वर सर्वोच्च सत्ता ही जाने ?

आज मानव अपने जैसे ही आत्मिक भाई के साथ मात्र अपने निजसुख स्वार्थ के लिए अपने परिवार नाते रिश्तेदार, भाई बंधु, कुटुंब कबीला, यार दोस्त से गठजोड़ करके सभी लोगों द्वारा नैतिकता आत्मीयता का, मानवता का, संपूर्णतया त्याग करके भरपूर रूप से अंधा होकर परमेश्वर के न्यायी रूप स्वरूप की अनदेखी करके ऐन केन प्रकारेण वा मात्र राजसीय वैभवीय गुण साम दाम दण्ड भेदों को अपने जीवन कार्य प्रणाली, जीवन कार्य व्यापार, नौकरी व्यवसाय में शासन सत्ता में समाज सेवा के नाम पर नाटकीय ढंग से आरूढ़ होना

तथा ऐसी चतुराई, चालाकी, होशियारी रूपीय बौद्धिक स्तर अपना के संत वेशीय कालनेमीय असुर रूप धारी छल छद्म झूठ पाखंड, धोखा, दगा, अन्याय अत्याचार वा हिंसा करने वा कराने में भरपूर पारंगत तथा पूर्ण अहंकारी।

आज यह रूप भारत में ज्यादातर न्याय को अन्याय में बदलने वाले और अन्याय को न्याय में बदलने वाले ऐसा अंधापन लादे इस नश्वर शरीर के लिए क्षणिक सुखी, नाशवान लोगों के लिए जो भूले हैं। कि कब कहां किस स्थिति में किस दुर्दांत कुगती से प्राण निकल जाए। इतिहास गवाह है सृष्टि पर। विश्व में बड़े-बड़े मदान्ध अहंकारी पावर सत्ता में होने पर जिन्होंने मानवता का गला घोंटा, तथा आत्मीयता को भूलते हुए दानवता का परिचय दिया और जीव प्राणी मानवों को मात्र अपनी धन हवस शासन सत्ता अपने हाथ में ही सदैव बने रहने की हवस नर नारियों को गुलाम बनाने, गुलाम बनाए रखने तथा अपने विषय भोगीय हवस की पूर्ति के लिए अपने स्वयं द्वारा मानवों पर जीव प्राणियों पर भरपूर अन्याय अत्याचार किया वा छल नीति कूटनीति कुटिल नीति कपट नीति सारी अपनाई मात्र अपने नीतिपरक मन चाहों की आपूर्ति के लिए भरपूर मनमानी की व भरपूर मनमानी चलाई। परंतु परम सत्ता सर्वोच्च सत्ता ईश्वर के परम सत्य न्याय के आगे उस परम सत्य शक्ति के आगे जो सर्वोपरि सर्वोच्च है जिसके सामने कहीं किसी का कोई बश नहीं। वह चाहे जितना शक्ति संपन्न हो जाए, धन संपन्न हो जाए, पद प्रतिष्ठावान हो जाए, घर परिवारीय जनगरा हो जाए बाहुबली हो जाए उसे ईश्वर के न्याय नीति के परिधि में आकर अति अति कुगति से दुर्दांन्त मौत पाकर मरना पड़ा। जिनके पास कोई रोने वाला तक नहीं रहा। परम सत्य तत्त, तत्व वेत्ताओं ने समय-समय पर अपने परम सत्यीय ज्ञान वाणियो द्वारा बहुत आगाह किया।

कबिरा गर्व ना कीजिए कालगहे करि केश। न जाने कित मारिसी कि घर की परदेश।।” इक लाख पूत सवा लाख नाती। ता रावन घर दिया ना बाती।।”जब तेरी डोली निकाली जायेगी बिन मुहूरत  की उठा ली जाएगी। जर सिकन्दर  का यही सब रह गया, मरते दम लुकमान भी यह कह गया। यह घड़ी हरगिज न टाली जाएगी / जब तेरी डोली निकाली जाएगी बिन मुहूरत की उठाली जाएगी। बुलबुल से कहो गुलों पे न हो निसार, पीछे है। खड़ा सैय्याद हो खबरदार, मार कर गोल गिरा ली जाएगी ऐ मुसाफिर क्यों पसरता है । यहा, कोठरी खाली करा ली जाएगी॥ 

परन्तु राजसीय वैभव सुख भोगीय महत्वाकांक्षी मानसिकता वाले परम सत्य सात्विकीय अत्मा कल्याणीय परमेश्वर की ओर आने वाले, लौटने वाले गुण को न धारण करके राजस तामस गुण  की ओर बढ़ते हुये अपनी ईश्वर अंशीय आत्मा की आवाज की अनसुनी करते हुए नश्वर भोगीय सुखो में वैभवीय जलवा दिखाने कायम करने मे, कायम रखने में अपने तन मन में पले / पाले गये अहंकार को भरपूर पोषण देने मे लगकर अपने ही आत्मवत् भाई बन्धुओं पर भरपूर अन्याय अत्याचार झूठ पाखंठ छल छद्म, धोखा – दगा करके, अपनाके अपनी परमात्मा की न्याय संगत दृष्टीकोणीय करनी को बिगाड़ कर अपने आत्मीय भाईयो बन्धूओं के साथ खून की होली खिलवाने खेलने में भी परहेज नहीं किया । वही स्वरूप आज भी वर्तमान में सबके समक्ष दृष्टीगोचर है। न उस परम सत्य सर्व शक्तिमान का भय न उसके न्याय, नीति नियम विधान का भय।बस अंधा बना अपने तन मन बुद्धि विवेक में ईश्वरी परम सत्य न्याय नीति का परम सत्य आकलन करते हुए ताले लगाए हुये नेत्र बंद करते रखते हुये । सिर्फ ऐन केन प्रकारेण आगे बढ़ने के लिए अपने अज्ञान जनित तन मन में पले अहंकार के पोषण के लिए हर अन्याय परक हथकण्डा अपनाने पर पूर्णतया मानव उतारू है। बस हमारे मन की इच्छा मन की चाह पूरी होना चाहिए भले ही वह अन्याय अनीतिपरक रूपों स्वरूपों को अपना अत्याचारीय खून की होली खिलवाकर पूरी हो । आज वर्तमान मे वर्तमान की यह स्थिति है की किसी भी जीवन संचालन कार्य व्यापार का राही हो चाहे ब्राह्मण वर्गीय हो या क्षत्रीय वर्ग का अथवा वैश्य वर्ग का या शूद्र वर्ग का हो 99%, प्रतिशत अज्ञान के अंधेरे में डूबे राजसीय मानसिकता रखते हुय तामसीय गुणों की ओर ही बढ़ते नजर आ रहे है अर्थात – सबसे निम्न गुणीय स्वरूप पर ही गिरने, चलने की ओर ही तत्पर है। सत्य गुणीय स्वरूप की ओर बढ़ने को नहीं । इस ईश्वरीय सर्व कल्याणीय आत्म मंगलीय सूत्र

“सर्वे भवन्तु सुखिना : सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणि पशियन्तु मा कश्चित दुख भाग भवेतु”

अर्थात सभी सुखी हो, सभी निरोगी हो, कभी किसी को किसी से भी कोई कष्ट न हो सभी एक दूसरे के हित के लिये सोचें॥

हे पूरण परमात्मा, पावन हो जीवात्मा, विश्व बने धर्मात्मा, हम सब तेरी आत्मा॥” असतोमा सदगमय तमसोमा ज्योर्तिगमय मृत्युोमा अमृत गमय॥”

इन परम सत्य सूत्रो को वाणी से प्रयुक्त करने वाला चालाक चतुर होशियार बहुत है परन्तु इन परम सत्य आत्मकल्याणीय सर्वकल्याणीय, आत्म मंगलकरणीय, सर्व मंगलकरणीय सूत्रो को परम सत्य रूप मे अपने जीवन चरित्र में उतारने वाले अपने जीवन आत्म कार्य व्यापार में आत्मसात करने वाले, आत्म चरित्र में जीने वाले अपने आत्मिक भाईयों के साथ पारस्परिक जीने वाले कहीं कोई नहीं। इनमे चाहे ब्राह्मण वर्ग हो जो ब्रह्मांड को जानने मानने का दावा करते हों अथवा क्षत्रिय वर्ग जो ईश्वरिय परम सत्य न्याय नीति की रक्षा करने व पालन करने का दावा करने वाले हो अथवा वैश्य समुदाय जो तुलाधार वैश्य जैसी सत्य नीति अपने कार्य व्यापार में अपनाने का दावा करने वाले हो या शूद्र रूप धारी सेवा व्रत पालन करने वाला दावा करने वाले हों। सब ईश्वरीय परम सत्य आत्मा के परम सत्य से बहुत दूर हैं। परमेश्वर को जगद पिता जगद माता को धोखा देने की कगार पर हैं अपनी चतुराई चालाकी से परमात्मा की भी आखों मे धूल झोकने की चेष्टा में रत है। न्यायकर्ता परम सत्य न्याय नहीं करते चिकित्सक सच्ची चिकित्सा नहीं करते, व्यापारीय उद्योगीय अपने कार्य व्यापार में धन बढ़ाने के लिए लालच में जीवन आवश्यकीय वस्तु द्रव पदार्थ, खाद्य सामग्री, औषधियों आदि में मिलावटी रूप दिखाते अपनाते राज सत्ता रुढ़, शासन सत्ता अधिकारी कर्मचारी सभी भोग वैभव व विशाल साम्राज्य बनाने बढ़ाने की मानसिकता पाले हुये मात्र अपने सुख आनंदमयी जीवन बिताने, अपने जीवन की रक्षा मात्र चाहने उसी की व्यवस्था बनाने में लगे है। उसी मनो सोच से आच्छादित है। जो की आज जो भी सर्व कल्याणीय व्यवस्थीय स्वरूप है वे परम सत्य रूप में चलने में अस्मर्थ हैं। मात्र सर्वजनीय उपरोक्त स्वरूपीय मानसिकता रखने,बनाने, पालने, पोषने कारण। आज विश्व में जीवंत उदाहरण दृष्टिगोचर है। ज्यादातर सभी लोग राजसीय व तामसीय वृत्तियों की ओर उन्मुख हैं। जिससे सम्पूर्ण विश्व में त्राहि – त्राहि मची है और सम्पूर्ण मानव समुदाय त्रस्त है मात्र कुबुद्धि के घेरे में आकर, कुबुद्धि के घेरे में पड़ कर। तथा सत्वगुणीय सात्वकीय प्रक्रति प्रव्रति जो सर्व कल्याणीय आत्म कल्याणीय है उसे न अपनाकर व ईश्वरीय परम सत्य अध्यात्म नाम का छल छलावा कर। सोचो? यह राजसीय और तामसीय गुणी इच्छायें कितनी विनाशकारी हैं जो व्यक्ति की करनी बिगाड़ कर दुखों के अंधेरे में ले जाती है, ले जा रही है। आज किसी की भी जान व जीवन की कहीं कोई विश्वतक में सत्य मायने में कोई रक्षा सुरक्षा नहीं है। सब शंका आशंकाओं से घिरी अज्ञात व्यवस्था है। अहंकारी अज्ञानी अपनी दादागीरी से सारे सृष्टी के लोकतंत्र को, जीवन तंत्र को तहस नहस किये अपनी मनमानी पर चला रहा व चल रहा। यह बिडम्बनाश क्यों है सभी लोग इस पर विचार करे समझें व सुधारें तभी मानवता बच रही, तभी मानव जीवन बच रहा है। इन कमी कमजोरियों की स्थिति सुधार स्वरूप में मात्र सत्व गुण धारण व सात्विकीय प्रवृत्ति पालन पर ही परम सत्य सम्भव है ।

– डा० बनवारीलाल पीपर “शास्त्री”

 

 

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