व्यक्ति, परिवार के व्यक्तिगत सद् जीवन में स्वयं के निर्माण में भविष्यीय आने वाले संकटों से ताजीवन मुक्त रहने के लिए सर्वप्रथम सद् सत् सत्य आचरण परमसत्य आवश्यक है। व्यक्ति सबसे पहिले अपना बुद्धि विवेक ज्ञान अनुभव और सत्यानुभूति अनुसार उसकी सबसे पहिले अपनी मूलभूत जो शरीर,मन, जीवन व इन्द्रियों के भरण पोषण की सही व सुखदायी रूप स्वरूपीय जो आवश्यकतायें हैं जैसे सही आहार , भोजन, खानपान , उठने बैठने , सोने ,जागने, रहने के लिए एक बहुत बड़ा घर न हो परन्तु पारिवारिक जनों के ठीक उठने-बैठने , खाने-पीने , सोने-जागने हेतु एक घर अवश्य जरूरी है। व्यक्ति को अपना सम्पूर्ण बुद्धि विवेक इनके आधार बनाने में इनके लिए धनधान्य जुटाने के लिए सही अच्छा रोजगार , व्यवसाय , सरकारी नौकरी आदि पाने हेतु श्रम , मेहनत , पढ़ाई , लिखाई करना परम सत्य आवश्यक है। इस काल में नाते ,रिश्तेदारी , दोस्ती, मित्रता यह सब पूर्ण व परमसत्य आवश्यक नहीं है। क्योंकि कोई भी किसी की भी घर परिवार की खानपान से लगाकर व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति इस समग्र सृष्टि पटल पर कहीं कोई करने वाला , चाहे वह कुटुम्ब कबीला हो , नाते रिश्तेदार हो अथवा दोस्त मित्र हो कोई भी सही रूप में ,व्यक्ति परिवार की जीवन भर की आवश्यकताओं की पूर्ति सम्पूर्ण रूप से कोई नहीं कर सकता है। हां ! अति प्रेमी दोस्त स्नेहल नाते रिश्तेदार हो तो एक दो दिन , चार दिन वह भी खाने पीने की तथा अपने घर में रहने देने की व्यवस्था कर सकता है । सम्पूर्णतया कोई नहीं , कभी नहीं । इसलिये सत्य व पूर्ण  बुद्धिमान विवेकवान व्यक्ति को परिवारीय जनों को, बालगोपालों को यथोचित पर्याप्त मेहनत श्रम तन मन की एकाग्रता करके, रखके, सम्पूर्ण दिल दिमाग , बुद्धिविवेक सम्पूर्ण एकाग्रता के साथ अपनी आगामी अति आवश्यकीय सुव्यवस्था के निर्माण हेतु अपने तन मन जीवन व इन्द्रियों के समस्त आकर्षण व सम्पूर्ण समर्पण मात्र अपनी शिक्षा दीक्षा पर करना व रखना चाहिए अपने बाल गोपालों को और बड़ों को कोई भी अनावश्यक व्यवसनीय रूप  स्वरुपों में तथा व्यर्थ के निरर्थक आकर्षणों में तन मन जीवन व इन्द्रियों का ध्यान न ही रखना चाहिए ,न ही लगाना चाहिए । अपने तन मन जीवन व इन्द्रियों का सम्पूर्ण आकर्षण अथवा सम्पूर्ण कार्य फोकस अपने सद् उद्देशीय लक्ष्य आपूर्ति में ही रखना व करना चाहिए । इस तरह से व्यक्ति अथवा बालकों को, बालगोपालों को, युवाओं व व्यक्तियों को पूर्ण परम सत्य ताजीवन स्थिर , स्थायी शिक्षा , नौकरी , कार्य व्यापार सफलता सिद्ध परक व्यक्तिगत जीवन में बन जाता है , मिल जाता है, होजाता है। और व्यक्ति को अथवा किसी को भी कहीं किसी का भी मुंह नहीं देखना पड़ता तथा अपने जीवन में न किसी के आगे किसी भी कोई भी सहायता हेतु धन व आश्रय की आवश्यकता अंशमात्र भी नहीं रहती ना ही पड़ती है । व्यक्ति और उसका सम्पूर्ण घर परिवार पूर्ण सत्य सक्षम आत्मनिर्भर रुप स्वरूप को प्राप्त कर लेता है। यही पूर्ण सच्चा सत्य जीवन (भविष्य ) निर्माण का आनंद मंगल का पूर्ण परमसत्य स्वरूप है। यही पूर्ण परम सत्य जीवन निर्माण का व पूर्ण आनंदमयी जीवन मंगल का पूर्ण परम सत्य सोपान है ।

” तुम हो धरती के पुत्र न हिम्मत हारो ।

श्रम , शिक्षा , दीक्षा की पूंजी से अपना कार्य संवारो ।

श्रम की सीपी में ही आर्थिक सम्पन्नता का वैभव ढलता है ।

तब स्वाभिमान का दीप जग -मग , जग -मग करता है।

जागो जागो तुम सत्य श्रम सत्य मेहनत से नाता जोड़ो। 

सत्य मार्ग चुनो कर्म का अकर्मण्ड्यता , आलस्यता का भाव छोड़ो ॥

सत्य तत्वदर्शियों ने भी सत्य ही कहा है – “स्वावलंबन की एक झलक पर न्यौछावर कुबेर का कोष । । ”

– डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

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