व्यक्ति को अपनी समस्त सही व गलत कार्य गतिविधियों के लिए पूर्ण परम सत्य रूप से विचारवान होना अपने बुद्धि विवेक ज्ञान अनुभव से अनुभूति से तारतम्य में रखना आत्म निरीक्षणात्मक रूप से परम सत्य आवश्यक है ।वह जो सफल होता है या ठोकरें खाता है ,असफल होता है उन सब पर अपनी कार्य गतिविधियों पर उसे अपनी परम सत्य बुद्धि विवेकीय पैनी पूर्ण परम सत्य जागृति रखनी होगी अथवा रखना चाहिए।अपने कर्मों की वह अपनी सही गलत कर्मों की आदतअभ्यास की वह दिल दिमाग सेपूर्ण परम सत्य विचार करते हुए समीक्षा करे ,कि मैं या हम किन कारणों से सफल या असफल हैं।बहुत कष्ट या दुख में हैं ,फटेहाली ,कंगाली,गरीबी,भूखो  मरने की स्थितियों में क्यों हैं ? कौन से कारण हैं?कौन सी बुरी गलत आदतें अभ्यास हैं ? जिनसे हमारी दुर्गति पूर्ण स्थिति है। यदि व्यक्ति अपनी सही गलत आदतों अभ्यासों को पूर्ण परम विचारवान स्वरूप से देखे जाने पहचाने और अपने को संभालने गलत आदतों को दूर करने में सफल हो जाए तभी वह अपनी बुरी खराब परिस्थितियों से उबर सकता है। अपना अच्छा व सच्चा सही जीवन बना सकता है व  अपनी खराब दुखदाई परिस्थितियों से मुक्त हो सकता है तथा आनंदमयी जीवन बना व जी सकता है ।अन्यथा कोई भी उसे कितनी भी धन संपत्ति देता रहे मुहैय्या कराता रहे, व्यक्ति के गलत आदत अभ्यास व्यक्ति में लदे रहते हुए /व्यक्ति द्वारा लादे रहते हुए उसका परम सत्य कल्याण विश्व का सबसे धनी व्यक्ति भी उसको उसके दुख, दैन्य, दारिद्र व किन्ही भी संकटों से ना ही उबार सकता है और ना ही बचा सकता है I जब तक असफल व्यक्ति अपने को अपनी बुरी गलत आदतों अभ्यासों को पूर्ण परम सत्य बुद्धि विवेक ज्ञान प्रकाश आत्म अनुभव व आत्म अनुभूति पर परम सत्य आत्म समीक्षा अर्थात अपने स्वयं के कार्य गतिविधियों को वैचारिक दृष्टि दर्शन से नहीं देखेगा | तब तक वह अपने दुःख दर्दों से गरीबी दरिद्रता से कभी भी मुक्त नहीं हो सकता ।इस परम सत्य को व्यक्ति को जानना होगा,मानना होगा व उसे पूर्ण विचारवान बनना होगा।

– डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

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