पूर्ण आयु लम्बी आयु जीने की इच्छा,आकांक्षा  रखने वाले व्यक्ति को नही करना चाहिए  वैभव ऐश्वर्यीय रुप भोगीय रूपों स्वरूपों की ज्यादा चिंता ।

रिपोर्ट: डा॰ बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

पूर्ण आयु लम्बी आयु जीने की इच्छा,आकांक्षा  रखने वाले व्यक्ति को संसारीय , परिवारीय माया मोहीय या धन सम्पत्ति अति वृद्धि अथवा विशाल साम्राज्य तथा वैभव ऐश्वर्यीय रुप भोगीय रूपों स्वरूपों की ज्यादा चिंता चिंतन नहीं करना चाहिए।

■हवस और मायामोहीय चिंतन व्यक्ति के मन मस्तिष्क को रोगी बीमार व अस्वस्थ बना देता है l

व्यर्थ के अनर्गल चिंता चिंतन

व्यक्ति को थकाते हैं हड़ाते हैं मन को मलीन करते व रखते हैं। इससे व्यक्ति के जीवन में अस्वास्थ परक रूप स्वरूप बढने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।

■जो व्यक्ति को मानसिक विच्छिप्तता की ओर ले जाने के कारण उसकी पूर्ण आयु को कम कर देती है । उसे बिल्कुल भार युक्त अपने तन मन  को नहीं रखना चाहिए , नहीं बनाना चाहिए । बल्कि पूर्ण निश्चिंत रुप में हलके फुल्के रहते हुए परमसत्य कर्मयोगी होना चाहिए।

तन मन से , श्रम साधना से ,आत्मविश्वास से , परमात्मा विश्वास से ओत प्रोत होते रहते हुए पूर्णतया निर्मोही होकर निर्मोही रहकर मात्र कर्म करना चाहिए।

उसकी कामना . भावविचार मात्र इतना होना चाहिए I

●  “साईं इतना दीजिए जामें कुटुम्ब समाय। मैं भी भूखा न रहूं  अतिथि न भूखा जाय । । “

ऐसा मनो भावी निश्छल , निष्कामी, निर्लोभी, निरहंकारी व्यक्ति पूर्ण स्वस्थ रहता हुआ परम सत्य आनंद अनुभूति करता हुआ पूर्ण आयु व लम्बी आयु पाता है व जीता है ।

– डा॰ बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

 

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