आत्मवत् सर्वभूतेषु
रिपोर्ट: -डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”
मानव शरीरधारी रूप विद्वद जनीय त्यागीय तपस्वीय निम्न वर्णित पालनीय , धारणीय , माननीय ब्राह्मण स्वरूपीय सत्य आचार – पूर्ण परम सत्य निर्विकारीय , निष्कामीय , निर्लिप्तीय, निर्मोहीय, निर्लोभीय ” आत्मवत् सर्वभूतेषु ” परम सत्य तात्विक सूत्र को, सिद्धान्त को पूर्ण परम सत्य आत्मसात् करने वाला , सदैव ताजीवन आत्मसात् रखने वाला अपनी समस्त इन्द्रियों पर पूर्ण परमसत्य आत्मनियंत्रण रखने वाला , करने वाला पूर्णतया परम सत्य रूप में अहंकार रहित होना चाहिए ।
आत्म संयमी ,नश्वर संसारीय पंच विकारीय ( काम ,क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार ) समस्त उच्छृंखलताओं से सम्पूर्णतया मुक्त ,चंचलताओं की आबद्धता से सम्पूर्णतया मुक्त क्रोध अंशमात्र भी तन मन जीवन में ना ही होना चाहिए , ना ही आना चाहिए ।
पूर्ण परम सत्य गुणीय पालन करने वाला धारण करने वाला सात्विकीय प्रकृतिधारी व अपने जीवन कर्मों ( तन ,मन , जीवन , इन्द्रियोच्छित कार्यों में ) को संचालन में ,जीवन कार्य व्यापार में , जीवन कार्य आचार में , जीवन कार्य व्यवहार में सम्पूर्णतया सात्विकीय प्रवृत्ति अपनाते हुए जीवन जीने वाला हो ,जिसके मनोभाव में आत्मीयता मानवता की सम्पूर्ण भेदभावों से रहित विद्वता हो ।
इन गुणों को पूर्ण परम सत्य रूप में धारण करने वाला । अवश्य ही परमेश्वर परम पिता , परम माता , जगद् ईश्वर , सर्वोच्च सत्ता प्रकृति मातृ सत्ता का पूर्ण परम सत्य उत्तराधिकारी , पूर्ण परम ब्रह्म सत्य सत्येश्वर का पूर्ण परम प्रिय ,सत्य आराधक , पूर्ण परम सत्य जगद्पिता जगद् माता का जपीय तपीय योगी परमसत्य ब्रह्म आचारीय है ।
सद् सत् सत्य आचारीय है और वही पूर्ण परम सत्य पूज्यनीय , पूर्ण परमसत्य वंदनीय व पूर्ण परमसत्य नमन करने योग्य वही परमसत्य ब्राह्मण है। और परमात्म सत्ता के गुणों का परम सत्य वाचक गायक उद्घोषक गुणगान करने का सत्य सत् पात्र है एवं परमेश्वर का परम सत्य प्रिय प्रतिनिधि है।
ऐसे उपरोक्त आचार गुणों को धारण करने वाले ब्राह्मण को सर माथे लेना चाहिए वही पूर्ण परमसत्य पूज्यनीय ब्राह्मण है। ऐसे पूर्ण परम सत्य वेत्ता को हम कोटि कोटि नमन करते हैं ।
ईश्वरीय प्रकृतेश्वरीय रुपीय सत्य को पूर्ण परम सत्य रूप में अपनाने वाले , पालन करने वाले एवं कूटनीति , कुटिल नीति , साम दाम दण्ड भेद नीति से पूर्णतया दूर रहने वाले । पूर्णतया निर्विकार , निर्लिप्त , निश्च्छल , निष्कपट , निर्मोही , निर्लोभी , निरहंकारी ,सद् , सत्, सत्य , सद् ब्राह्मण आचारीय स्वरूप को अपने जीवन में , अपने जीवन की कार्य शैली, कार्य चर्या में प्रतिपादित करने वाले ब्रह्म आचार पालनीय ब्रह्म सत्य वेत्ता , ब्रह्म तत्त् वेत्ता ब्राह्मण स्वरूपों को उनके श्री चरणों को कोटि – कोटि नमन , कोटि- कोटि प्रणाम।
– डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”




