संसदीय सीट का रोचक पर द्रश्य

 

उरई(जालौन)। लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही बुंदेलखंड क्षेत्र में भी हलचल तेज हो गई है राजनीतिक दल अपने-अपने स्तर पर राजनीतिक तैयारियों में भी जुट गए हैं.

बुंदेलखंड की जालौन लोकसभा सीट हाई प्रोफाइल सीटों में गिनी जाती है, क्योंकि यहां से सांसद मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं। भारतीय जनता पार्टी यहां पर चुनावी जीत की हैट्रिक लगाने की तैयारी में जुटी है जबकि चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने चुनावी तालमेल कर प्रदेश की सियासत को गरमा दिया है. ऐसे में इस बार किसी भी दल के लिए अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित जालौन सीट पर जीत हासिल करना आसान नहीं दिख रहा और मुकाबला कांटेदार होने की उम्मीद जताई जा रही है।लेकिन महंगाई, बेरोजगारी, और केन्द्र एवं प्रदेश सरकार की नौकरियों में पिछड़े वर्ग का पत्ता साफ करने,सारी नौकरियों में अगड़े वर्ग के लोगों भर्ती करने,प्रत्येक परीक्षा का पेपर लीक होने से भाजपा से नाराज चल रहे जिस तरह से पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की चाल बदली हुई दिखाई दे रही है दलित वर्ग मोदी सरकार की दलित विरोधी नीतियों पहले से ही खफा चल रहा है ऐसे में अगर दलित, पिछड़े वर्ग की नाराजगी चुनाव में आक्रोश बन कर उभरती है तो फिर भानु प्रताप वर्मा की हैट्रिक खतरे में पड़ सकती है।

 

जालौन संसदीय सीट के संसदीय इतिहास को देखें तो यहां पर 1990 के बाद के चुनावों में बीजेपी का दबदबा दिखता रहा है। बीजेपी के भानु प्रताप सिंह वर्मा एक बार फिर हैट्रिक लगाने के मूड में हैं। पिछली बार वह हैट्रिक से चूक गए थे. फिलहाल, जालौन सीट पर 1952 के चुनाव में कांग्रेस के लोटन राम सांसद चुने गए थे. फिर 1957 में लच्छीराम कांग्रेस के टिकट पर चुने गए. 1962 के चुनाव में कांग्रेस के रामसेवक ने जीत हासिल की. रामसेवक ने इसके बाद 1967 और 1971 के चुनाव में जीत हासिल करते हुए शानदार हैट्रिक लगाई।

 

अगले चुनाव से पहले देश में इमरजेंसी लगा दी गई जिसका खामियाजा 1977 के चुनाव में कांग्रेस को भुगतना पड़ा और जालौन सीट पर पहली बार उसे हार का सामना करना पड़ा. लोकदल के रामचरण दोहरे चुनाव जीत गए. हालांकि 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां पर वापसी और चौधरी लच्छी राम सांसद बने. 1984 में भी यह सीट कांग्रेस (नाथूराम) के पास ही रही. 1989 के चुनाव में यहां से जनता दल ने जीत के साथ खाता खोला और राम सेवक भाटिया सांसद चुने गए. फिर इसके बाद देश में राम लहर का असर दिखा और बीजेपी की जोरदार तरीके से एंट्री हुई।

 

जालौन सीट पर 1991 के संसदीय चुनाव में बीजेपी के गया प्रसाद कोरी ने जीत हासिल कर पार्टी के लिए खाता खोला फिर 1996 और 1998 के संसदीय चुनावों में भी बीजेपी को जीत मिली और भानु प्रताप वर्मा लगातार 2 बार सांसद चुने गए. लेकिन 1999 के चुनाव में भानु प्रताप वर्मा अपना जलवा बरकरार नहीं रखा पाए और उन्हें हार मिली. फिर 2004 के चुनाव में बीजेपी वापसी की और भानु प्रताप सिंह वर्मा फिर से सांसद चुने गए. 2009 के चुनाव में जालौन सीट सपा के खाते में जीत आई और घनश्याम अनुरागी चुनाव जीत गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में देश में मोदी लहर का असर हर ओर दिखाई दिया. जालौन संसदीय सीट पर भी बीजेपी को जीत मिली और भानु प्रताप सिंह चौथी बार सांसद चुने गए. भानु प्रताप ने बसपा के उम्मीदवार ब्रजलाल खाबरी को 2.87 लाख मतों के अंतर से हरा दिया. 2019 के संसदीय चुनाव में भानु प्रताप को फिर से जीत मिली और पांचवीं बार सांसद चुने गए. बाद में वह केंद्र में मोदी सरकार में मंत्री भी बनाए गए।

 

पिछले विधानसभा चुनाव में चार सीटें जीती थी भाजपा ने

जालौन संसदीय सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए रिजर्व सीट है. इसके तहत उरई (अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीट), कालपी, माधौगढ़, भोगनीपुर और गरौठा 5 विधानसभा सीटें आती हैं. भोगनीपुर सीट कानपुर देहात जिले में तो गरौठा सीट झांसी जिले में पड़ती है. शेष तीनों सीट जालौन जिले में पड़ती हैं. साल 2022 में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 5 में से 4 सीटों पर जीत मिली थी. कालपी सीट पर सपा के विनोद चतुर्वेदी को जीत मिली थी जबकि शेष चारों सीटें बीजेपी के खाते में आई थी।

 

पिछडे़ व मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका रहेगी अहम

अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व जालौन संसदीय सीट पर जातिगत समीकरण बेहद अहम है. यहां पर करीब 45 फीसदी एससी वोटर्स रहते हैं. इनके बाद ओबीसी वोटर्स की संख्या 35 फीसदी के करीब है. जनरल कैटेगरी के शेष 20 फीसदी वोटर्स हैं. यहां पर सवा लाख से अधिक मुस्लिम वोटर्स भी हैं जो चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं.

 

पिछड़े वर्ग में गूंज रहा पीडीए का शोर

जालौन संसदीय सीट पर इस बार मुकाबला कड़ा होने वाला है. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच चुनावी तालमेल हो गया है। जबकि बसपा अकेले ही चुनाव लड़ रही है। ऐसे में हैट्रिक की आस लगाए बीजेपी के लिए त्रिकोणीय मुकाबला होगा. लेकिन जिस तरह से पीडीए का शोर पिछड़े वर्ग में गूंज रहा है उससे भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है क्योंकि अब तक भाजपा को शिखर पर ले जाने में पिछड़े वर्ग की भूमिका अहम रही है और अब जिस तरह से पिछड़े वर्ग की तमाम जातियों के नेताओं की गोलबंदी इंडिया गठबंधन के साथ देखने को मिल रही है उससे भाजपा को जीत की मंजिलपर पहुंच पाना आसान नहीं होगा।

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