रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय बनेगा बुंदेलखंड में कृषि उन्नति का आधार :  डॉ. अशोक कुमार सिंह, कुलपति

रिपोर्ट  : विनय पचौरी 

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  1. राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के रूप में
    रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय देश का पहला कृषि विश्वविद्यालय है जिसे संसद के अधिनियम के अनुपालन से राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के रूप में वर्ष 2014 में भारत सरकार द्वारा झांसी (उत्तर प्रदेश)में स्थापित किया गया है।
  • विश्वविद्यालय मे चार घटक महाविद्यालय है 1. जिसमे उत्तर प्रदेश के झांसी में कृषि महाविद्यालय तथा

2. उद्यानिकी और वानिकी महाविद्यालय और

   3.मध्य प्रदेश में पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय तथा

   4. मत्स्य पालन महाविद्यालय हैं।

इस वि.वि. का प्रमुख उद्देश्य जहां कृषि एवं संबंधित विज्ञान की शाखाओं में शिक्षा व अनुसंधान है वही कृषि विस्तार के माध्यम से किसानों,ग्रामीण युवाओं के मध्य अपनी गतिविधियों से कृषि हित में निरंतर बदलाव लाना हैं ताकि विश्वविद्यालय भारतीय कृषि के समग्र विकास को सुनिश्चित करते हुए वास्तविक अर्थों में राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के रूप में कार्य कर सके।

वर्तमान में विश्वविद्यालय कृषि,उद्यानिकी और वानिकी में स्नातक तथा 11 विषयों में परास्नातक की उपाधि दे रहा है।

साथ ही अकादमिक सत्र 2023-24 से पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय तथा मत्स्य पालन महाविद्यालय में स्नातक स्तर की पढ़ायी प्रारंभ हो जाएगी।

वर्तमान सत्र से 5 विषयों में पीएच.डी.के अंतर्गत शोध-कार्य प्रारंभ हो चुके हैं। वर्तमान में 23 राज्यों से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं जो कि विश्वविद्यालय के अखिल भारतीय स्वरूप को दर्शाता है। आगामी पाँच वर्षों में विश्वविद्यालय में छात्र-छात्राओं की संख्या लगभग 2500 करने की योजना है।

आगामी सत्र से नई शिक्षा नीति के अनुरूप कृषि एवं अन्य विषयों में शिक्षा

  1. विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एन ई पी-2020) के अनुरूप बनाने का प्रयास कर रहा है ताकि आगामी सत्र से नई शिक्षा नीति के अनुरूप कृषि एवं अन्य विषयों में शिक्षा दी जा सके। उद्योग की जरूरतों को पूरा करने और छात्रों को उद्यमशील बनाने के लिए युवा छात्रों को शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है। उद्योगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नए प्रशिक्षण मॉड्यूल तैयार कर पाठ्यक्रम में शामिल किए गए हैं।
    वर्तमान की स्थिति देखते हुए विश्वविद्यालय प्राकृतिक खेती, ड्रोन तकनीकी, संरक्षित खेती, एकीकृत कृषि प्रणाली, मशरूम एवं शहद उत्पादन पर प्रशिक्षण दे रहा है। साथ ही दलहन, तिलहन एवं श्री अन्न (मिलेट्स)आदि फसलों का लगभग 1500 कुंतल गुणवत्ता युक्त बीज उत्पादन कर रहा है, जिनमे सरसों एवं चना में अखिल भारतीय समन्वित शोध परियोजनाएं चल रही हैं। वर्ष 2021 में विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने काबुली चना की उन्नतशील प्रजाति को विकसित करने में सफलता प्राप्त की है। कृषि एवं अन्य सम्बद्ध क्षेत्रों के समसामयिक विषयों पर शोध किया जा रहा है जिनमे श्री अन्न एवं गेहूं जैसी खाद्य फसलें; तथा टमाटर, सेम, गेंदा आदि शामिल हैं
    वर्ष 2022-23 के दौरान उत्तर प्रदेश के झांसी, ललितपुर एवं जालौन तथा मध्य प्रदेश के दतिया, टीकमगढ़ एवं निवाड़ी जिलों में दलहन, तिलहन, धान, पोषक अनाज, औषधीय पौधे, गेंदा, फल, कृषि-वानिकी, एवं सब्जियों आदि पर किसान के खेतों में 1050 से अधिक अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन आयोजित किए गए हैं, जिनसे अनुसूचित जाति सहित अन्य किसान लाभान्वित हो रहे हैं । बुन्देलखंड क्षेत्र में उद्यानिकी फसलों जैसे सब्जियों एवं फल-फूलों की खेती को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे । कृषक समुदाय के साथ बेहतर संबंध विकसित करने के लिए सीखने और हितधारकों के प्रशिक्षण के लिए आवश्यकता आधारित अनेक मॉड्यूल स्थापित किए जा रहे हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि विश्वविद्यालय किसानों एवं अन्य हितधारकों के साथ मिलकर बुंदेलखंड ही नहीं अपितु भारतवर्ष में कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों की उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करेगा।
    विश्वविद्यालय में किसानों एवं अन्य हितधारकों के लाभ के लिए प्रति वर्ष कृषि मेला एवं प्रदर्शनी का आयोजन करने का संकल्प लिया गया है ।इसी श्रृंखला में 26 से 27 फरवरी को विश्वविद्यालय प्रांगण में भव्य किसान मेला एवं कृषि प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है जिसमें कृषि, उद्यानिकी, वानिकी, पशुपालन, मत्स्य पालन एवं अन्य रोजगार उन्मुख तकनीकी प्रदर्शन एवं संवाद आयोजित किए जाएंगे।

 

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