1 . क्रूर (संवेदन विहीन ) ना आत्मीयता, न मानवता किसी भी कार्य का सही गलत का आकलन न करते हु किसी की भी जान लेने में न हिचकिचाना । निर अपराधी की जान लेने जीवन छीनने से भी कोई परहेज नहीं।
2 . चाटुकार (ज्यादा से ज्यादा अपने कार्य सिद्ध करने की व भविष्य में अपनी कार्य सिद्धि की आशाओं से ओतप्रोत चाटुकारिता , चापलूसी के सम्पूर्णतया अभ्यासित हो जाना और सदैव ही चाटुकारता, चापलूसी ही करते रहना । ऐसे लोग निज सुखस्वार्थ में इतनेडूब जाते हैं कि सत्य बुद्धि , विवेक ताक पर रखकर इतने निज सुख स्वार्थ में अंधे हो जाते हैं कि थोड़े से प्रलोभन में अथवा ज्यादा प्रलोभन में आकर गद्दारी कर बैठते हैं। उदाहरण : रानी झांसी के एक तोपची ने किले का गेट खोलकर किले में अंगरेजों को प्रवेश करा दिया । चन्द्रशेखर आजाद को अल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद में बैठे रहने की सूचना देने वाला उनके ही साथ रहने वाला जो कुछ समय पूर्व उनके ही साथ बैठे रहने वाला उनके ही साथी ने प्रलोभन में आकर अंग्रेजों को उनका पता बता दिया अर्थात् गद्दारी का परिचय दिया ।
3 . चतुर, चालाक, बदमाश, अपने स्वार्थसिद्धि के लिए, किन्हीं भी कारनामों के फार्मूले अपनाते हुए ऐन केन प्रकारेण व साम , दाम , दंड, भेद रीति नीति से कोई परहेज नहीं करना अथवा किसी भी हद तक जाना ।
4 . मसखरे, दूसरों की कमी कमजोरियों पर सदैव हंसने वाले l ऐसे लोग मन ही मन व कभी – कभी बाहर भी किसी की गिरानी , बेईज्जती कोई भूल से या जानबूझकर गलती हो जाने पर हंसना मसखरे लगाना ही उनका काम होता है ।
5 . वीर और स्वाभिमानी – जो यथार्थ है पूर्ण परम सत्य के लिए सदैव सत्य की बलि वेदी पर प्राणों की आहुति देने को सदैव तत्पर रहते हैं और किसी पर भी अन्याय अत्याचार होने पर भी उनके पक्ष में कूद पड़ते हैं । ऐसे पूर्ण सत्यवीर जो सत्य को सत्य समझ कर आत्मसाहसी सत्यवीर कम होते हैं ।
6. वे लोग जो पूर्ण सत्य के पुजारी होते हैं । सर्व कल्याणीय भाव तन मन जीवन में रखते हैं । अच्छा जो भी किसी के प्रति बन पड़े वह तो करते हैं , बुरे करने की कल्पना किसी के लिए भी अपने तन मन जीवन की कार्य प्रणाली में ना ही करते हैं न ही तन मन में रखते हैं ।
7 . ये ईर्ष्या , राग-द्वेष पारस्परिक प्रतिस्पर्धा करने,रखने वाले, भेदभाव से परे होते हैं । जिन्हें महा मानव भी कहा जा सकता है । ये निर्विकारीय, निष्कामी , निश्च्छल, निराशक्त, निर्मोही व दयालु प्रवृत्ति तथा सर्वहितीय विचारधारा इनके तन-मन में होती है। ये दुःखी व्यक्तियों की पीड़ा अनुभूत करते हैं और यदि बन पड़े तो उन्हे सेवा और सहयोग भी प्रदान करते हैं I ऐसे लाखों में एकाध होते हैं । इन्हे ही परमात्मा परमसत्ता , प्रकृति सत्ता और जीव , प्राणी , मानव सत्ता (नरनारी , स्त्री पुरुष ) आदि का सत्य हितैषी सर्व स्नेहकर्ता सदैव सभी का सर्वमंगल करने वाला इसे महामानव , महापुरुष व आप्त पुरुष कहा जा सकता है । यह परमात्मा प्रेमी , सत्य प्रेमी , परमात्मा से लगाकर मानवतक एक भाव में देखने वाला होता है । आत्मवत् सर्वभूतेषु का मनोभावीय दृष्टि कोणीय होता है। यह ऐसे भाव में जीता है।
“तू ही है सर्वत्र व्याप्त हरि तुझमें है सारा संसार । इसी भावना में अन्तर्भर मिलूं सभी से तुझे निहार ।। “
“प्रतिपल निज इंद्रिय समूह से जो कुछ भी आचार करूं । केवल तुझे रिझाने को तेरा ही व्यवहार करूं ॥ “
“परमेश्वरमय सब जग जानी । सर्व सृष्टि जगत के लिए अपने हृदय में प्रीति समानी ।। “
– डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”




