परम सत्य आनंदमयी जीवन बनाने का  रहस्य

“आत्मवत सर्वभूतेषु ॥ “

रिपोर्ट: डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

1- सभी लोगों के लिए बच्चे , बूढ़े, जवान घरपरिवारीय, संसार-समाजीय , नौकरी ,कार्यव्यापारों

जहाँ जैसा भी जिसके प्रति जिसका जो भी परम सत्य कर्तव्य दायित्व बनता है I

उसे सम्पूर्ण रुप से सत्वगुणीय सात्विकीय प्रकृति प्रवृत्ति आचारपूर्ण परमसत्य ईमानदारी से निर्वहन करो ।

2- अपने जीवन में कोई भी नशा, एमाल , व्यवसन मत पालो उन्हें अपने से अपने साथ मत चिपकाओ / मत रखो।

3-  “आत्मवत सर्वभूतेषु ॥ “ मात्र एक यही परमसत्ता सर्वोच्च सत्ता  परम ईश्वर का परम सत्य मंत्र आत्मसात करो। समग्र सृष्टि पटल पर जो भी जीव , प्राणी , मानव है उसे आत्मवत् मानो | सबका जहां जैसा जिसके प्रति छोटा बड़ा आयु दृष्टि से, पारिवारिक दृष्टि से पूर्ण परम सत्य सम्मान करो । परम सत्य प्रेम करो व रखो । ईर्ष्या , राग -द्वेष, पारस्परिक ज्वेलिसी (जलन) कतई मत करो /कतई मत रखो।

4- कोई भी छल-फरेब, चतुराई- चालाकी, होशियारी , धोखा-दगा , छल-छद्म , झूठ-पाखण्ड , अन्याय-अत्याचार का मार्ग अपने ही आत्मिक भाई – बन्धु, माताओं, बहिनों , बेटियों के साथ कभी मत अपनाओ । सभी को पारस्परिक आत्मवत् समझो /आत्मवत् जानो ।

5- मोबाईल से अति आवश्यकीय भर काम लो। उसके गुलाम अथवा आदी मत बनो, गलत अभ्यासी बिल्कुल मत बनो।

6- कठोर श्रमशील, मेहनतकश , अपनेलक्ष्य के प्रति पूर्ण परमसत्य प्रबल जिज्ञासु, लगनवान , कर्मठ , कर्मशील हरपल हर क्षण रहो ।

7- खानपान में जो कुछ भी सहज से प्राप्त हो मिले परमात्म अर्पण करके उसे प्रेमपूर्वक ग्रहण करो। वही तुम्हारे शरीर को सत्य स्वास्थ्य प्रदान करेगा ।

कहीं दूसरों की सिद्धि-प्रसिद्धि देखकर कभी मत ललचाओ l

गलत मार्ग से किसी को भी घात मत लगाओ अपने से सत्य प्रेरणामयी सीख लेकर अपनी मेहनत कठोर परिश्रम से अपने को आगे बढ़ाओ ।

8- सद्आचरण, सद् सत् सत्य आचार यदि तन मन में ज्ञान ध्यान में नहीं है । तो मंदिर मस्जिद, चर्च , गुरु द्वारा जाना व रामायण भागवद् कुरानखानी या गुरु लंगर करना कराना मात्र परम ईश्वर को धोखा देना एवं उसकी ऑखों में मात्र धूल झोंकने का प्रयत्न है । मंदिर , मस्जिद , गुरुद्वारा, चर्च, तीर्थ आदि कहीं भी न जाओ I बस अपने जीवन कार्य व्यापार में कार्यचर्या में ,कार्यशैली में सत्व गुणीय धारा व सात्विकीय प्रवृत्ति अपनाओ।

“आत्मवत् सर्वभूतेषु”  मंत्र एक मात्र अपनी जीवन कार्य प्रणाली में धारण कर लो।

बस इसी से ही वह जगद् पिता , जगद् – माता , जगद् ईश्वर जो कण- कण में , पृथ्वी तत्व में, जल तत्व में, अग्नि तत्व में , वायु तत्व में, प्रकृति तत्व में विद्यमान है अथवा व्याप्त है । उसकी परम सत्य भरपूर कृपा के तुम अवश्य ही सत्पात्र होगे व उससे परम सत्य मिलन की अनुभूति तुम्हे अवश्य महसूस होगी/ प्राप्त होगी/ मिलेगी।

9- बस सत्य जीवन बनाओ व सत्य जीवन अपनाओ एवं सत्य जीवन जिओ तथा परम सत्य आनंद से जीवन बिताओ ।

बस इसी तरह अपना आयु काल परिपूर्ण करो I बस यही परम सत्य आनंदमयी जीवन बनाने का व जीने का सभी के लिए पूर्ण परम सत्य रहस्य है।

डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

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