शिवार्चन मे क्या सबसे बड़ी सामाजिक उपयोगिता हो सकती है जाने?
रिपोर्ट: विनय पचौरी
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जीवन में प्रगति के लिए आवश्यक है कि शुभ इच्छाएं फलित हो।
- श्रावण मास मे बरस रही जलधारा ऐसे प्रतीत होती है जैसे मानो प्रकृति इस धरा का अभिषेक कर रही हो।
- श्रवण मास में हम भी शिवलिंग पर जल चढ़ा कर स्वयं को ईश्वर के उसी कृत्य के साथ जोड़ लेते हैं
- ईश्वर अथवा प्रकृति के गुणों को अपनाना सदाचार है श्रवण माह हमें यह अवसर प्रदान करता है।
- जब मन पर ज्ञान का अभिषेक होता है तो मन शांत और शीतल हो जाता है।
- और जब मन से अशुभ वस्तुएं, अशुभ सोच , नकारात्मक ऊर्जा का हरण हो जाता है तो शरीर सकारात्मक सोच के साथ गतिमान होने लगता है।
- यह मास भगवान शिव की पूजा करने के लिए सर्वोत्तम माना जाता।
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जब यजमान पूर्ण विश्वास के साथ अपना संकल्प देवत्व के चरणों में छोड़ देता है।
जैसा कि सभी जानते हैं कि ब्रह्मंण ईश्वर का स्वरुप है वही श्रावण मास मे बरस रही जलधारा ऐसे प्रतीत हो रही है जैसे मानो प्रकृति इस धरा का अभिषेक कर रही है।
प्रकृति के इस कृत का अनुकरण हम मानव भी करते हैं श्रवण मास में हम भी शिवलिंग पर जल चढ़ा कर स्वयं को ईश्वर के उसी कृत्य के साथ जोड़ लेते हैं ।
ईश्वर अथवा प्रकृति के गुणों को अपनाना सदाचार है और श्रवण माह हमें यह अवसर देता है ।
जल जीवन है और यह धरती को पुनर्जीवित करता है
वर्षा से प्रकृति पनपती है । तपती हुई धरती पर जब वर्षा होती है तो उसे शीतलता मिलती है वनस्पतियां उगने लगती है। पेडो पर नये पत्ते आने लगते है। जैसै श्रावण मे लोगो को गर्मी से छुटकारा मिलता है वैसे ही ज्ञान के श्रवण से मन की पीडा से त्राण मिलता है ।
श्रवण में लोग एकत्रित होकर ज्ञान श्रवण करते हैं दिव्य कथाएं सुनते हैं ईश्वर का गुणगान करते हैं
जब मन पर ज्ञान का अभिषेक होता है तो
मन शांत और शीतल हो जाता है श्रवण को सबसे पवित्र महीना माना जाता है श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित है शिव परिवर्तन के लिए उत्तरदायी ऊर्जा है वे जीवन के मार्ग को बाधाओं को दूर करने वाले हैं वह पुरातन को भी नष्ट कर नूतन के लिए मार्ग प्रशस्त करते हैं।
शिव कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं कैलाश का अर्थ है कि जहां उत्सव हो केवल आनंद हो सावन में शिव तत्व सहज भाव में अपने चरम पर होता है इसलिए यह मास भगवान शिव की पूजा करने के लिए सर्वोत्तम माना जाता है हमारे प्राचीन ऋषि अत्यंत बुद्धिमान थे वे जानते थे कि हर मानव के भीतर इच्छाएं होती हैं कुछ शुभ और कुछ अशुभ।
जीवन में प्रगति के लिए आवश्यक है कि शुभ इच्छाएं फलित हो विवेक के उपयोग से मनुष्य निर्णय ले सकता है कि कौन सी इच्छा है उसके लिए लाभदायक हैं और उन इच्छाओं को प्राप्त करने के लिए वह क्या कार्य कर सकता है
लेकिन कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि व्यक्ति चाहे कितना भी प्रयत्न कर ले वह अपने इच्छित लाभ को हासिल नहीं कर पाता है उसे मार्ग में अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है कारण विविध हो सकते हैं
पर ऋषियों ने इस समस्या का अद्भुत समाधान निकाला
उन्होंने माना कल्याण के लिए संकल्प और पूजा की प्रक्रिया तैयार की पूजा आरंभ करने से पूर्व पूजा करने वाले यजमान द्वारा संकल्प लिया जाता है संकल्प वह विशिष्ट उद्देश्य है जिसके लिए पूजा आयोजित की जा रही है संकल्प का उच्चारण करने से पहले स्थान और समय को परिभाषित किया जाता है जहां पूजा आयोजित की जा रही है यजमान को देश काल के सातत्य में उसके जन्म के नक्षत्र ,राशि ,पैतृक ,वंश ,गोत्र, नाम, पिता के नाम आदि के द्वारा भी परिभाषित किया जाता है फिर यजमान द्वारा संकल्प लिया जाता है वस्तुतः संकल्प लिया नहीं जाता बल्कि उसे छोड़ दिया जाता है या भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया जाता है ।
जब यजमान पूर्ण विश्वास के साथ अपना संकल्प देवत्व के चरणों में छोड़ देता है कि जो भी उसके लिए सही होगा वही होगा तो वह पूजा में बैठने के योग हो जाता है पूजा वह है जो पूर्ण परिपूर्णता से उत्पन्न होती है आप जब अपनी सभी इच्छाओं दुखों और उपालम्भो को दिव्यता के चरणों में छोड़ देते हैं तभी आप परिपूर्ण प्रतीत कर सकते हैं ।
रूद्र पूजा में शिव तत्व का आसान होता है मंत्रों की तरंगों से मन ध्यान की अवस्था में पहुंच जाता है वातावरण शिव तत्व से आवेशित हो जाता है भक्त शिव तत्व के साथ एक हो जाते हैं शिव वह परोपकारी ऊर्जा है जो परिवर्तन करती है बाधाओं को दूर करती है संकल्प सर्वव्यापी सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान दिव्यता तक संप्रेषित हो जाते हैं और सभी हितकारी मनोरथ फलदाई होते हैं सारी बाधाएं दूर हो जाती है जीवन गतिमान होता है।
शिवालयों को केवल शिव अर्चन केंद्र ही नहीं बल्कि सामाजिक चेतना के सफल जागरण केंद्र भी बना सकते है
वही शिवालयों को केवल शिव अर्चन केंद्र ही नहीं बल्कि हम उन्हें सामाजिक चेतना के सफल जागरण केंद्र भी बना सकते हैं इस बार एक की जगह दो सावन तथा चार की जगह 8 सोमवार शिव अर्चन के लिए मिल सकेंगे
आप जानते हैं कि भारत जैसे धर्म प्राण देश में यदि अपनी धार्मिक क्रियाओं को सामाजिक सरोकारों से जोड़ा जा सके तो यहां एक सामाजिक भी क्रांति लाई जा सकती है लेकिन दुर्भाग्य है यह है कि अभी तक इस दिशा में कोई चिंतन ही नहीं हम यह आज भी नहीं सोच पा रहे हैं कि सावन मास में अपार भीड़ जुटाने वाले हमारे लाखों शिवालय अपनी भारतीय समाज के लिए सफल जागरण केंद्र भी बनाए जा सकते हैं ।
सरकार प्रबुद्ध समाज व समाजसेवी संगठनों के संयुक्त प्रयास से जनजागृति पर ध्यन केन्द्रित करती है।
यह जनमानस दो दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है
■ पहला सावन मास में सर्पदंश होने से होने वाले बेहिसाब अकाल मौतों को रोकना ज्ञान हो कि सावन मास में सर्वाधिक वर्षा होने के कारण सांपों के बिलों में पानी भर जाता है इस कारण वे बिलबिलाकर अपने बिलों से बाहर निकल पड़ते हैं धरती पर अनचाही सर्पदंश की घटनाएं होती रहती हैं दुखद यह है कि घटनाएं शिव अर्चन वाले सावन मास में सर्वाधिक होती हैं शिक्षा व जागरूकता के अभाव में पीड़ित व्यक्ति को अस्पताल ले जाकर किसी तांत्रिक या ओझा के पास ले जाया जाता है जहां अधिकांश मामलों में अकाल मौत हो जाती है सरकार प्रबुद्ध समाज व समाजसेवी संगठनों के संयुक्त प्रयास से सावन में शिवालयों पर उमड़ने वाले शिव भक्तों के माध्यम से यह संदेश घर-घर जन-जन तक पहुंचाया जा सकता है कि सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति को कहीं और नहीं सीधे अस्पताल ले जाएं और हर हाल में उसके प्राण बचाए ।
■ दूसरी जनजागृति उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है और वह है यह नशा मुक्ति की।
पारंपारिक संसाधनों से जलाभिषेक ,बेलपत्र, फल, फूल ,दूध, दही, मेवा, मिष्ठान, भांग, धतूरा आदि भी प्रमुख हैं ।
यहां पर भांग और धतूरे इन दो संसाधनों पर संक्षिप्त चर्चा जरूरी है
क्योंकि भगवान शंकर हलाहल पीकर भी उससे सदैव आप्रभावित रहते हैं ।वह अपने भक्तों के अवगुणों का विष पीकर भी अपनी कृपाअमृत बांटने वाले एकमात्र देवाधिदेव माने गए हैं ।
इसलिए मानव जाति को नशीले पदार्थों से मुक्त रखने के लिए भगवान शिव को भांग धतूरा अर्पित करने की (स्वयं ग्रहण करने की नहीं )यह परंपरा शुभ मानी गई है। लेकिन अफसोस कि आज उस आदर्श परंपरा को ही उलट दिया गया औपचारिकता तो आज भांग और धतूरे शिवजी को अर्पित किए जाते हैं परंतु वास्तविकता में भी उपासको द्वारा स्वयं ही गटके जा रहे हैं ।
इस प्रकार नशीले पदार्थों से समाज को मुक्त रखने को वह महान लक्ष्य ही अब इस पर्व से जुदा हो चला है फलस्वरुप नशावृति भी धीरे-धीरे इतनी बढ़ चली है कि आज अपने भारत में हजारों नहीं लाखों अकाल मौते केवल नशा से हो रही हैं ।
आज सावन में शिव वालों पर उमड़े लाखों-करोड़ों शिव भक्तों के बीच नशा मुक्ति का यह सामाजिक संदेश पहुंचाना बहुत जरूरी है इस तरह समाज में उप जागृति लाते हुए सावन में शिव वालों को केवल शिव अर्चन केंद्र ही नहीं बल्कि हमें उन्हें सामाजिक चेतना की सफल जागरण केंद्र भी बना सकते हैं सावन के शिव अर्चन की यह सबसे बड़ी सामाजिक उपयोगिता हो सकती है और जान गवाने वाले हजारों और नशा से लाखों लोगों का जीवन बचाने में हम सहेज कामयाब हो सकते हैं।सहयोग बस आपका है सर्वोपरि।