सती प्रसंग दौरान साध्वी ने कहा कि पति-पत्नी को प्रयास करना चाहिए कि उनके बीच अविश्वास जैसी स्थिति न बने ।
चित्रकूट से आयी साध्वी मिथलेश्वरी दीक्षित ने कहा जब हम पति-पत्नी का एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते हैं तो वैवाहिक जीवन में अशांति होना लगभग तय ही होता है ।
अगर भरोसा नहीं होगा तो सब कुछ बर्बाद हो सकता है।
भरोसा न हो तो वाद-विवाद होते रहते हैं।
इसका बुरा असर दूसरे कामों पर भी होता है। इसीलिए पति-पत्नी को प्रयास करना चाहिए कि उनके बीच अविश्वास जैसी स्थिति न बने। अविश्वास होगा तो वैवाहिक रिश्ता टूट भी सकता है।
इस बात को समझाने के लिए श्रीरामचरित मानस से शिव-सती का एक प्रसंग बताया कथा दौरान बताया है।
प्रसंग मे बताया है कि पति-पत्नी में अगर थोड़ा भी अविश्वास हो तो रिश्ता खत्म होने की कगार पर भी पहुंच जाता है।
कई बार पत्नियां पति की और पति पत्नी की बात पर विश्वास नहीं करते। इसका नतीजा यह होता है कि रिश्ते में बिखराव आ जाता है।
गृहस्थी को सुख से चलाना है तो पति-पत्नी को एक-दूसरे की आस्था और निष्ठा पर भरोसा करना चाहिए। अविश्वास तनाव पैदा करता है, तनाव से दूरी बढ़ती है। अपने रिश्तों को टूटने से बचाना है तो एक-दूसरे पर भरोसा करें।
अविश्वास के कारण ही शिव जी ने कर दिया था माता सती का त्याग
जब पति-पत्नी का एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते हैं तो वैवाहिक जीवन में अशांति होना तय है। अगर भरोसा नहीं होगा तो सबकुछ बर्बाद हो सकता है। भरोसा न हो तो वाद-विवाद होते रहते हैं, इसका बुरा असर दूसरे कामों पर भी होता है। इसीलिए पति-पत्नी को प्रयास करना चाहिए कि उनके बीच अविश्वास जैसी स्थिति न बने। अविश्वास होगा तो वैवाहिक रिश्ता टूट भी सकता है। इस बात को समझने के लिए श्रीरामचरित मानस में शिव-सती का एक प्रसंग बताया गया है। प्रसंग सुनते समय सभी भक्त का पूरा ध्यान प्रसंग पर था
सती ने श्रीराम की परीक्षा लेने की बात कही तो शिवजी ने रोका, लेकिन सती पर शिवजी की बात का कोई असर नहीं हुआ। सती सीता का रूप धारण करके श्रीराम के सामने पहुंच गईं।
श्रीराम ने सीता के रूप में सती को पहचान लिया और पूछा कि हे माता आप अकेली इस घने जंगल में क्या कर रही हैं? शिवजी कहां हैं?
जब श्रीराम ने सती को पहचान लिया तो वे डर गईं और चुपचाप शिव के पास लौट आईं।
जिन श्रीराम को वे अपना आराध्य देव मानते हैं वहां राम के सामने उनकी पत्नी सीता का रूप सती ने बना लिया था और श्रीराम की परीक्षा लेकर उनका अनादर भी किया था।
इस कारण शिवजी ने मन ही मन सती का त्याग कर दिया।
फिर सती भी ये बात समझ गईं और दक्ष के यज्ञ में जाकर आत्मदाह कर देह का त्याग किया।