13 मार्च को पूर्णिमा तिथि होगी, भद्रा समाप्त होने के बाद उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में होगा होलिका दहन।
होलिका दहन में अक्षत, गंगाजल, रोली, चंदन, हल्दी आदि से पूजा करने से सुख-शांति, समृद्धि और रोग-मुक्ति होती है।
शास्त्रों के अनुसार होली में लाल, पीला और गुलाबी रंग का ही उपयोग करना चाहिए, जो प्रेम और सौहार्द का प्रतीक है।
फाल्गुन की पूर्णिमा गुरुवार की सुबह 10.11 बजे से आरंभ हो रही है और भद्रा भी उसी समय से आरंभ हो रहा है। भद्रा गुरुवार की रात 10.47 बजे तक रहेगा। 14 मार्च शुक्रवार को पूर्णिमा तिथि दोपहर 11.22 बजे तक ही है।
रंगोत्सव का पर्व होली उदय व्यापिनी चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में मनेगा। चैत्र कृष्ण प्रतिपदा 15 मार्च शनिवार को होली का पर्व मनेगा। होली के दिन सुबह 7.46 बजे तक उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र इसके बाद हस्त नक्षत्र पूरे दिन रहेगा।
होलिका दहन के दिन होलिका पूजा में अक्षत, गंगाजल, रोली, चंदन, मौली, हल्दी, दीपक, मिष्ठान आदि से पूजा करने के बाद उसमें कर्पूर, तिल, धूप, गुगुल, जौ, घी, आम की लकड़ी, गाय के गोबर से बने उपले (गोइठा) डाल कर सात बार परिक्रमा करने से परिवार की सुख शांति, समृद्धि में वृद्धि, नकारात्मकता का ह्रास, रोग-शोक से मुक्ति व मनोकामना की पूर्ति होती है
होली में लाल, पीला व गुलाबी रंग का ही प्रयोग करना चाहिए।
रंगों का पर्व होली भारतीय सनातन संस्कृति में अनुपम और अद्वितीय है।
यह पर्व प्रेम तथा सौहार्द का संचार करता है।