स्वतंत्रता दिवस के 75 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को दी ढेरों शुभकामनाएं व बधाई देने के साथ में अपनी बात रखी
@ विनय कुमार पचौरी
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आज का यह दिवस ऐतिहासिक दिवस है. एक पुण्य पड़ाव, एक नई राह, एक नये संकल्प और नये सामर्थ्य के साथ कदम बढ़ाने का यह शुभ अवसर है. आजादी के जंग में गुलामी का पूरा कालंखड संघर्ष में बीता है. हिन्दुस्तान का कोई कोना ऐसा नहीं था, कोई काल ऐसा नहीं था, जब देशवासियों ने सैकड़ों सालों तक गुलामी के खिलाफ जंग न किया हो. जीवन न खपाया हो, यातनाएं न झेली हो, आहूति न दी हो. आज हम सब देशवासियों के लिए ऐसे हर महापुरूष को, हर त्यागी को, हर बलिदानी को नमन करने का अवसर है. उनका ऋण स्वीकार करने का अवसर है और उनका स्मरण करते हुए उनके सपनों को जल्द से जल्द पूरा करने का संकल्प लेने का भी अवसर है. हम सभी देशवासी कृतज्ञ है, पूज्य बापू के, नेता जी सुभाष चंद्र बोस के, बाबा साहेब अम्बेडकर के, वीर सावरकर के, जिन्होंने कर्तव्य पथ पर जीवन को खपा दिया. कर्तव्य पथ ही उनका जीवन पथ रहा. यह देश कृतज्ञ है, मंगल पांडे, तात्या टोपे, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल अनगिनत ऐसे हमारे क्रांति वीरों ने अंग्रेजों की हुकुमत की नींव हिला दी थी. यह राष्ट्र कृतज्ञ है, उन वीरांगनाओं के लिए, रानी लक्ष्मीबाई हो, झलकारी बाई, दुर्गा भाभी, रानी गाइदिन्ल्यू, रानी चेनम्मा, बेगम हजरत महल, वेलु नाच्चियार, भारत की नारी शक्ति क्या होती है.
भारत की नारी शक्ति का संकल्प क्या होता है. भारत की नारी त्याग और बलिदान की क्या पराकाष्ठा कर सकती है, वैसी अनगिनत वीरांगनाओं का स्मरण करते हुए हर हिन्दुस्तानी गर्व से भर जाता है. आजादी का जंग भी लड़ने वाले और आजादी के बाद देश बनाने वाले डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी हों, नेहरू जी हों, सरदार वल्लभ भाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, लाल बहादुर शास्त्री, दीनदयाल उपाध्याय, जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, आचार्य विनाबाभावे, नाना जी देशमुख, सुब्रह्मण्यमभारती, अनगिनत ऐसे महापुरुषों को आज नमन करने का अवसर है.
आजादी की जंग की चर्चा करते हैं तो हम उन जंगलों में जीने वाले हमारे आदिवासी समाज का भी गौरव करना हम नहीं भूल सकते हैं. भगवान बिरसा मुंडा, सिद्धू कान्हू, अल्लूरी सीताराम राजू, गोविंद गुरू, अनगिनत नाम हैं जिन्होंने आजादी के आंदोलन की आवाज बनकर के दूर-सदूर जंगलों में भी…. मेरे आदिवासी भाई-बहनों, मेरी माताओं, मेरे युवकों में मातृभूमि के लिए जीने-मरने के लिए प्रेरणा जगाई. ये देश का सौभाग्य रहा है कि आजादी की जंग के कई रूप रहे हैं और उसमें एक रूप वो भी था जिसमें नारायण गुरू हो, स्वामी विवेकानंद हो, महर्षि अरविंदो हो, गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर हो, ऐसे अनेक महापुरुष हिन्दुस्तान के हर कोने में, हर गांव में भारत की चेतना को जगाते रहे. भारत को चेतनमन बनाते रहे.
अमृत महोत्सव के दौरान देश ने…. पूरे एक साल से हम देख रहे हैं. 2021 में दांढी यात्रा से प्रारंभ हुआ. स्मृति दिवस को संवरते हुए हिन्दुस्तान के हर जिले में, हर कोने में देशवासियों ने आजादी के अमृत महोत्सव के लक्ष्यावृद्धि कार्यक्रम किए. शायद इतिहास में इतना विशाल, व्यापक, लंबा एक ही मकसद का उत्सव मनाया गया हो वो शायद ये पहली घटना हुई है और हिन्दुस्तान के हर कोने में उन सभी महापुरुषों को याद करने का प्रयास किया गया जिनको किसी न किसी कारणवंश इतिहास में जगह ने मिली या उनको भूला दिया गया था. आज देश ने खोज-खोज करके हर कोने में ऐसे वीरों को, महापुरुषों को, त्यागियों को, बलिदानियों को सत्यावीरों को याद किया, नमन किया. अमृत महोत्सव के दरम्यिान इन सभी महापुरुषों को नमन करने अवसर रहा. कल 14 अगस्त को भारत ने विभाजन विभिषिका स्मृति दिवस भी बड़े भारी मन से हृदय के गहरे घावों को याद करते हुए उन कोटि-कोटि जनों ने बहुत कुछ सहन किया था, तिरंगे की शान के लिए सहन किया था. मातृभूमि की मिट्टी से मोहब्बत के कारण सहन किया था और धैर्य नहीं खोया था. भारत के प्रति प्रेम ने नई जिंदगी की शुरूआत करने का उनका संकल्प नमन करने योग्य है, प्रेरणा पाने योग्य है.
आज जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो पिछले 75 साल में देश के लिए जीने मरने वाले, देश की सुरक्षा करने वाले, देश के संकल्पों को पूरा करने वाले; चाहे सेना के जवान हों, पुलिस के कर्मी हों, शासन में बैठे हुए ब्यूरोक्रेट्स हों, जनप्रतिनिधि हों, स्थानीय स्वराज की संस्थाओं के शासक-प्रशासक रहे हों, राज्यों के शासक-प्रशासक रहे हों, केंद्र के शासक-प्रशासक रहे हों; 75 साल में इन सबके योगदान को भी आज स्मरण करने का अवसर है और देश के कोटि-कोटि नागरिकों को भी, जिन्होंने 75 साल में अनेक प्रकार की कठिनाइयों के बीच भी देश को आगे बढ़ाने के लिए अपने से जो हो सका वो करने का प्रयास किया है.
मेरे प्यारे देशवासियों
75 साल की हमारी ये यात्रा अनेक उतार-चढ़ाव से भरी हुई है. सुख-दु:ख की छाया मंडराती रही है और इसके बीच भी हमारे देशवासियों ने उपलब्धियां की हैं, पुरुषार्थ किया है, हार नहीं मानी है. संकल्पों को ओझल नहीं होने दिया है. और इसलिए, और ये भी सच्चाई है कि सैंकड़ों सालों के गुलामी के कालखंड ने भारत के मन को, भारत के मानवी की भावनाओं को गहरे घाव दिए थे, गहरी चोटें पहुंचाई थीं, लेकिन उसके भीतर एक जिद भी थी, एक जिजीविषा भी थी, एक जुनून भी था, एक जोश भी था. और उसके कारण अभावों के बीच में भी, उपहास के बीच में भी और जब आजादी की जंग अंतिम चरण में था तो देश को डराने के लिए, निराश करने के लिए, हताश करने के लिए सारे उपाय किए गए थे. अगर आजादी आई अंग्रेज चले जाएंगे तो देश टूट जाएगा, बिखर जाएंगे, लोग अंदर-अंदर लड़ करके मर जाएंगे, कुछ नहीं बचेगा, अंधकार युग में भारत चला जाएगा, न जाने क्या—क्या आशंकाएं व्यक्त की गई थीं. लेकिन उनको पता नहीं था ये हिन्दुस्तान की मिट्टी है, इस मिट्टी में वो सामर्थ्य है जो शासकों से भी परे सामर्थ्य का एक अंतरप्रभाव लेकर जीता रहा है, सदियों तक जीता रहा है और उसी का परिणाम है, हमने क्या कुछ नहीं झेला है, कभी अन्न का संकट झेला, कभी युद्ध के शिकार हो गए.
आंतकवाद ने डगर-डगर चुनौतियां पैदा कीं, निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया गया. छद्म युद्ध चलते रहे, प्राकृतिक आपदाएं आती रही, सफलता विफलता, आशा निराशा, न जाने कितने पड़ाव आए हैं. लेकिन इन पड़ाव के बीच भी भारत आगे बढ़ता रहा है. भारत की विविधता जो औरों को भारत के लिए बोझ लगती थी. वो भारत की विविधता ही भारत की अनमोल शक्ति है. शक्ति का एक अटूट प्रमाण है. दुनिया को पता नहीं था कि भारत के पास एक inherent सामर्थ्य है, एक संस्कार सरिता है, एक मन मस्तिष्क् का, विचारों का बंधन है. और वो है भारत लोकतंत्र की जननी है, Mother of Democracy है और जिनके जहन में लोकतंत्र होता है वे जब संकल्प कर के चल पड़ते हैं, वो सामर्थ्य दुनिया की बड़ी-बड़ी सल्तनतों के लिए भी संकट का काल लेकर के आती है. ये Mother of Democracy, ये लोकतंत्र की जननी, हमारे भारत ने सिद्ध कर दिया कि हमारे पास एक अनमोल सामर्थ्य है.
मेरे प्यारे देशवासियों
75 साल की यात्रा में आशाएं, अपेक्षाएं, उतार, चढ़ाव सब चीज के बीच में हरेक के प्रयास से हम जहां तक पहुंच पाए पहुंचे थे, और 2014 में देशवासियों ने मुझे दायित्व दिया. आजादी के बाद जन्मा हुआ मैं पहला व्यक्ति था जिसको लाल किले से देशवासियों को गौरवगान करने का अवसर मिला था. लेकिन मेरे दिल में जो भी आप लोगों से सीखा हूँ. जितना आप लोगों को जान पाया हूं मेरे देशवासियों, आपके सुख दुख को समझ पाया हूँ . देश की आशा अपेक्षाओं के भीतर वो कौन सी आत्मा बसती है, उसको जितना मैं समझ पाया हूं, उसको लेकर के मैंने अपना पूरा कालखंड देश के उन लोगों को empower करने में खपाया. मेरे दलित हो, शोषित हो, पीड़ित हो, वंचित हो, आदिवासी हो, महिला हो, युवा हो, किसान हो, दिव्यांग हो, पूर्व हो, पश्चिम हो, उत्तर हो, दक्षिण हो, समुद्र का तट हो, हिमालय की कन्दराएँ हो, हर कोने में महात्मा गांधी का जो सपना था आखिरी इंसान की चिंता करने का, महात्मा गांधी जी की जो आकांक्षा थी अंतिम छोर पर बैठे हुए व्यक्ति को समर्थ बनाने की, मैंने अपने आप को उसके लिए समर्पित किया है, और उन 8 साल का नतीजा और आजादी के इतने दशकों का अनुभव आज 75 साल के बाद जब अमृत काल की
ओर कदम रख रहे हैं, अमृत काल की ये पहली प्रभात है तब मैं एक एैसे सामर्थ्य को देख रहा हूं. और जिससे मैं गर्व से भर जाता हूं.
देशवासियों,
मैं आज देश का सबसे बड़ा सौभाग्य ये देख रहा हूं. कि भारत का जनमन आकांक्षित जनमन है. Aspirational Society किसी भी देश की बहुत बड़ी अमानत होती है. और हमें गर्व है कि आज हिन्दुस्तान के हर कोने में, हर समाज के हर वर्ग में, हर तबके में, आकांक्षाएं उफान पर हैं. देश का हर नागरिक चीजें बदलना चाहता है, बदलते देखना चाहता है, लेकिन इंतजार करने को तैयार नहीं है, अपनी आंखों के सामने देखना चाहता है, कर्तव्य से जुड़ कर करना चाहता है. वो गति चाहता है, प्रगति चाहता है. 75 साल में संजोय हुए सारे सपने अपनी ही आंखों के सामने पूरा करने के लिए वो लालयित है, उत्साहित है, उतावला भी है.
कुछ लोगों को इसके कारण संकट हो सकता है. क्योंकि जब aspirational society होती है तब सरकारों को भी तलवार की धार पर चलना पड़ता है. सरकारों को भी समय के साथ दौड़ना पड़ता है और मुझे विश्वास है चाहे केन्द्र सरकार हो, राज्य सरकार हो, स्थानीय स्वराज्य की संस्थाएं हों, किसी भी प्रकार की शासन व्यवस्था क्यों न हो, हर किसी को इस aspirational society को address करना पड़ेगा, उनकी आकांक्षाओं के लिए हम ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते. हमारे इस aspirational society ने लंबे अरसे तक इंतजार किया है. लेकिन अब वो अपनी आने वाली पीढ़ी को इंतजार में जीने के लिए मजबूर करने को तैयार नहीं हैं और इसलिए ये अमृत काल का पहला प्रभात हमें उस aspirational society के आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बहुत बड़ा सुनहरा अवसर लेकर के आई है.
मेरे प्यारे देशवासियों
हमने पिछले दिनों देखा है एक और ताकत का हमने अनुभव किया है और वो है भारत में सामूहिक चेतना पुनर्जागरण हुआ है. एक सामूहिक चेतना का पुनर्जागरण आजादी के इतने संघर्ष में जो अमृत था, वो अब संजोया जा रहा है, संकलित हो रहा है. संकल्प में परिवर्तित हो रहा है, पुरुषार्थ की पराकाष्ठा जुड़ रही है और सिद्धि का मार्ग नजर आ रहा है. ये चेतना, मैं समझता हूं कि चेतना का जागरण ये पुनर्जागरण ये हमारी सबसे बड़ी अमानत है. और ये पुनर्जागरण देखिए 10 अगस्त तक लोगों को पता तक नहीं होगा शायद कि देश के भीतर कौन सी ताकत है. लेकिन पिछले तीन दिन से जिस प्रकार से तिरंगे झंडे को लेकर के तिरंगा की यात्रा को लेकर करके देश चल पड़ा है. बड़े-बड़े social science के experts वे भी शायद कल्पना नहीं कर सकते कि मेरे भीतर के अंदर कि मेरे देश के भीतर कितना बड़ा सामर्थ है, एक तिरंगे झंडे ने दिखा दिया है. ये पुनर्चेतना, पुनर्जागरण का पल है. ये लोग समझ नहीं पाएं हैं.
जब देश जनता कर्फ्यू के लिए हिन्दुस्तान का हर कोना निकल पड़ता है, तब उस चेतना की अनुभूति होती है. जब देश ताली, थाली बजाकर के corona warriors के साथ कंधे से कंधा मिलाकर के खड़ा को जाता है, तब चेतना की अनुभूति होती है. जब दीया जलाकर के corona warrior को शुभकामनाएं देने के लिए देश निकल पड़ता है, तब उस चेतना की अनुभूति होती है. दुनिया कोरोना के काल खंड में वैक्सिन लेना या न लेना, वैक्सिन काम की है या नहीं है, उस उलझन में जी रही थी. उस समय मेरे देश के गांव गरीब भी दो सौ करोड़ डोज दुनिया को चौंका देने वाला काम करके दिखा देते हैं. ये ही चेतना है, ये ही सामर्थ्य है इस सामर्थ्य ने आज देश को नई ताकत दी है.
मेरे प्यारे भाइयों-बहनों
इस एक महत्वपूर्ण सामर्थ्य को मैं देख रहा हूं जैसे aspirational society, जैसे पुनर्जागरण वैसे ही आजादी के इतने दशकों के बाद पूरे विश्व का भारत की तरफ देखने का नजरिया बदल चुका है. विश्व भारत की तरफ गर्व से देख रहा है, अपेक्षा से देख रहा है. समस्याओं का समाधान भारत की धरती पर दुनिया खोजने लगी है दोस्तों. विश्व का यह बदलाव, विश्व की सोच में यह परिवर्तन 75 साल की हमारी अनुभव यात्रा का परिणाम है.
हम जिस प्रकार से संकल्प को लेकर चल पड़े है दुनिया इसे देख रही है, और आखिरकार विश्व भी उम्मीदें लेकर जी रहा है. उम्मीदें पूरी करने का सामर्थ्य कहां पड़ा है वो उसे दिखने लगा है. मैं इसे स्त्री शक्ति के रूप में देखता हूं. तीन सामर्थ्य के रूप में देखता हूं, और यह त्रि-शक्ति है aspiration की, पुनर्जागणरण की और विश्व के उम्मीदों की और इसे पूरा करने के लिए हम जानते हैं दोस्तों आज दुनिया में एक विश्वास जगने में मेरे देशवासियों की बहुत बड़ी भूमिका है. 130 करोड़ देशवासियों ने कई दशकों के अनुभव के बाद स्थिर सरकार का महत्व क्या होता है, राजनीतिक स्थिरता का महत्व क्या होता है, political stability दुनिया में किस प्रकार की ताकत दिखा सकती है.
नीतियों में कैसा सामर्थ्य होता है, उन नीतियों पर विश्व का कैसे भरोसा बनता है. यह भारत ने दिखाया है और दुनिया भी इसे समझ रही है. और अब जब राजनीतिक स्थिरता हो, नीतियों में गतिशीलता हो, निर्णयों में तेजी हो, सर्वव्यापकता हो, सर्वसमाजविश्वस्ता हो, तो विकास के लिए हर कोई भागीदार बनता है. हमने सबका साथ, सबका विकास का मंत्र लेकर हम चलें थे, लेकिन देखते ही देखते देशवासियों ने सबका विश्वास और सबके प्रयास से उसमें और रंग भर दिए हैं. और इसलिए हमने देखा है हमारी सामूहिक शक्ति को, हमारे सामूहिक सामर्थ्य को हमने देखा है. आजादी का अमृत महोत्सव जिस प्रकार से मनाया गया, जिस प्रकार से आज हर जिले में 75 अमृत सरोवर बनाने का अभियान चल रहा है, गांव-गांव के लोग जुड़ रहे हैं, कार्य सेवा कर रहे हैं. अपने प्रयत्नों से अपने गांव में जल संरक्षण के लिए बड़ा अभियान चला रहे हैं. और इसलिए भाईयों-बहनों, चाहे स्वच्छता का अभियान हो, चाहे गरीबों के कल्याण का काम हो, देश आज पूरी शक्ति से आगे बढ़ रहा है.
लेकिन भाईयों-बहनों हम लोग आजादी के अमृतकाल में हमारी 75 साल की यात्रा को उसका गौरवगान ही करते रहेंगे, अपनी ही पीठ थपथपाते रहेंगे, तो हमारे सपने कहीं दूर चले जाएंगे. और इसलिए 75 साल का कालखंड कितना ही शानदार रहा हो, कितने ही संकटों वाला रहा हो, कितने ही चुनौतियों वाला रहा हो, कितने ही सपने अधूरे दिखते हो उसके बावजूद भी आज जब हम अमृतकाल में प्रवेश कर रहे हैं अगले 25 वर्ष हमारे देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसलिए जब मैं आज मेरे सामने लाल किले पर से 130 करोड़ देशवासियों के सामर्थ्य का स्मरण करता हूं, उनके सपनों को देखता हूं, उनके संकल्प की अनुभूति करता हूं तो साथियों मुझे लगता है आने वाले 25 साल के लिए हमें उन पंचप्रण पर अपनी शक्ति को केंद्रित करनी होगा. अपने संकल्पों को केंद्रित करना होगा. अपने सामर्थ्य को केंद्रित करना होगा. और हमें उन पंचप्रण को लेकर के, 2047 जब आजादी के 100 साल होंगे आजादी के दिवानों के सारे सपने पूरे करने का जिम्मा उठा करके चलना होगा.
जब मैं पंचप्रण की बात करता हूं तो पहला प्रण अब देश बड़े संकल्प लेकर ही चलेगा. बहुत बड़े संकल्प लेकर के चलना होगा. और वो बड़ा संकल्प है विकसित भारत, अब उससे कुछ कम नहीं होना चाहिए. बड़ा संकल्प- दूसरा प्रण है किसी भी कोने में हमारे मन के भीतर, हमारी आदतों के भीतर गुलामी का एक भी अंश अगर अभी भी कोई है तो उसको किसी भी हालत में बचने नहीं देना है. अब शत-प्रतिशत, शत-प्रतिशत सैंकड़ों साल की गुलामी ने जहां हमें जकड़ कर रखा है, हमें हमारे मनोभाव को बांध करके रखा हुआ है, हमारी सोच में विकृतियां पैदा करके रखी हैं. हमें गुलामी की छोटी से छोटी चीज भी कहीं नजर आती है, हमारे भीतर नजर आती है, हमारे आस-पास नजर आती है हमें उससे मुक्ति पानी ही होगी. ये हमारी दूसरी प्रण शक्ति है. तीसरी प्रण शक्ति, हमें हमारी विरासत पर गर्व होना चाहिए, हमारी विरासत के प्रति क्योंकि यही विरासत है जिसने कभी भारत को स्वर्णिम काल दिया था. और यही विरासत है जो समयानुकूल परिवर्तन करने आदत रखती है. यही विरासत है जो काल-बाह्य छोड़ती रही है. नित्य नूतन स्वीकारती रही है. और इसलिए इस विरासत के प्रति हमें गर्व होना चाहिए. चौथा प्रण वो भी उतना ही महत्वपूर्ण है और वो है एकता और एकजुटता. 130 करोड़ देशवासियों में एकता, न कोई अपना न कोई पराया, एकता की ताकत, ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के सपनों के लिए हमारा चौथा प्रण है. और पांचवां प्रण, पांचवां प्रण है नागरिकों का कर्तव्य, नागरिकों का कर्तव्य, जिसमें प्रधानमंत्री भी बाहर नहीं होता, मुख्यमंत्री भी बाहर नहीं होता वो भी नागरिक है. नागरिकों का कर्तव्य. ये हमारे आने वाले 25 साल के सपनों को पूरा करने के लिए एक बहुत बड़ी प्रण शक्ति है.
मेरे प्यारे देशवासियों
जब सपने बड़े होते हैं, जब संकल्प बड़े होते हैं तो पुरुषार्थ भी बहुत बड़ा होता है. शक्ति भी बहुत बड़ा मात्रा में जुड़ जाती है. अब कोई कल्पना कर सकता है कि देश उस 40-42 के काल खंड को याद कीजिए, देश उठ खड़ा हुआ था. किसी ने हाथ में झाड़ू लिया था, किसी ने तकली ली थी, किसी ने सत्याग्रह का मार्ग चुना था, किसी ने संघर्ष का मार्ग चुना था, किसी ने काल क्रांति की वीरता का रास्ता चुना था. लेकिन संकल्प बड़ा था ‘आजादी’ और ताकत देखिए बड़ा संकल्प था तो आजादी लेकर रहे. हम आजाद हो गये. अगर संकल्प छोटा होता, सीमित होता तो शायद आज भी संघर्ष करने के दिन चालू रहते, लेकिन संकल्प बड़ा था, तो हमने हासिल भी किया.
मेरे प्यारे देशवासियों
अब आज जब अमृत काल की पहली प्रभात है, तो हमें इन पच्चीस साल में विकसित भारत बना कर रहना है. अपनी आंखों के सामने और 20-22-25 साल के मेरे नौजवान, मेरे देश के मेरे सामने है, मेरे देश के नौजवानों जब देश आजादी के 100 साल मनाएगा. तब आप 50-55 के हुए होंगे, मतलब आपके जीवन का ये स्वर्णिम काल, आपकी उम्र के ये 25-30 साल भारत के सपनों को पूरा करने का काल है. आप संकल्प ले करके मेरे साथ चल पड़िए साथियों, तिंरगे झंडे की शपथ ले करके चल पड़िए, हम सब पूरी ताकत से लग जाएं. महासंकल्प, मेरा देश विकसित देश होगा, developed country होगा, विकास के हरेक पैरामीटर में हम मानवकेंद्री व्यवस्था को विकसित करेंगे, हमारे केंद्र में मानव होगा, हमारे केंद्र के मानव की आशा-आकांक्षाएं होंगी. हम जानते हैं, भारत जब बड़े संकल्प करता है तो करके भी दिखाता है.
जब मैंने यहां स्वच्छता की बात कही थी मेरे पहले भाषण में, देश चल पड़ा है, जिससे जहां हो सका, स्वच्छता की ओर आगे बढ़ा और गंदगी के प्रति नफरत एक स्वभाव बनता गया है. यही तो देश है, जिसने इसको करके दिखाया है और कर भी रहा है, आगे भी कर रहा है; यही तो देश है, जिसने वैक्सीनेशन, दुनिया दुविधा में थी, 200 करोड़ का लक्ष्य पार कर लिया है, समय-सीमा में कर लिया है, पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ करके कर लिया है, ये देश कर सकता है. हमने तय किया था देश को खाड़ी के तेल पर हम गुजारा करते हैं, झाड़ी के तेल की ओर कैसे बढ़ें, 10 प्रतिशत इथेनॉल ब्लेडिंग का सपना बड़ा लगता था. पुराना इतिहास बताता था संभव नहीं है, लेकिन समय से पहले 10 प्रतिशत इथेनॉल ब्लेडिंग करके देश ने इस सपने को पूरा कर दिया है.
भाइयों-बहनों
ढाई करोड़ लोगों को इतने कम समय में बिजली कनेक्शन पहुंचाना, छोटा काम नहीं था, देश ने करके दिखाया. लाखों परिवारों के घर में ‘नल से जल’ पहुंचाने का काम आज देश तेज गति से कर रहा है. खुले में शौच से मुक्ति, भारत के अंदर आज संभव हो पाया है.
मेरे प्यारे देशवासियों
अनुभव कहता है कि एक बार हम सब संकल्प ले करके चल पड़ें तो हम निर्धारित लक्ष्यों को पार कर सकते हैं. Renewable energy का लक्ष्य हो, देश में नए मेडिकल कॉलेज बनाने का इरादा हो, डॉक्टरों की तैयारी करवानी हो, हर क्षेत्र में पहले से गति बहुत बढ़ी है. और इसलिए मैं कहता हूं अब आने वाले 25 साल बड़े संकल्प के हों, यही हमारा प्रण, यही हमारा प्रण भी होना चाहिए.
दूसरी बात मैंने कही है, उस प्रण शक्ति की मैंने चर्चा की है कि गुलामी की मानसिकता, देश की सोच सोचिए भाइयो, कब तक दुनिया हमें सर्टिफिकेट बांटती रहेगी? कब तक दुनिया के सर्टिफिकेट पर हम गुजारा करेंगे? क्या हम अपने मानक नहीं बनाएंगे
? क्या 130 करोड़ का देश अपने मानकों को पार करने के लिए पुरुषार्थ नहीं कर सकता है. हमें किसी भी हालत में औरों के जैसा दिखने की कोशिश करने की जरूरत नहीं है. हम जैसे हैं वैसे, लेकिन सामर्थ्य के साथ खड़े होंगे, ये हमारा मिजाज होना चाहिए. हमें गुलामी से मुक्ति चाहिए. हमारे मन के भीतर दूर-दूर सात समंदर के नीचे भी गुलामी का तत्व नहीं बचे रहना चाहिए साथियों. और मैं आशा से देखता हूं, जिस प्रकार से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनी है, जिस मंथन के साथ बनी है, कोटि-कोटि लोगों के विचार-प्रवाह को संकलित करते हुए बनी है और भारत की धरती की जमीन से जुड़ी हुई शिक्षा नीति बनी है, रसकस हमारी धरती के मिले हैं. हमने जो कौशल्य पर बल दिया है, ये एक ऐसा सामर्थ्य है, जो हमें गुलामी से मुक्ति की ताकत देगा.
हमने देखा है कभी-कभी तो हमारा टेलेंट भाषा के बंधनों में बंध जाता है, ये गुलामी की मानसिकता का परिणाम है. हमें हमारे देश की हर भाषा पर गर्व होना चाहिए. हमें भाषा आती हो या न आती हो, लेकिन मेरे देश की भाषा है, मेरे पूर्वजों ने दुनिया को दी हुई ये भाषा है, हमें गर्व होना चाहिए.
मेरे साथियों
आज डिजिटल इंडिया का रूप हम देख रहे हैं. स्टार्ट अप देख रहे हैं. कौन लोग हैं? ये वो टैलेंट है जो टीयर-2, टीयर-3 सीटी में किसी गांव गरीब के परिवार में बसे हुए लोग हैं. ये हमारे नौजवान हैं जो आज नई-नई खोज के साथ दुनिया के सामने आ रहे हैं. गुलामी की मानसिकता हमें उसे तिलांजलि देनी पड़ेगी. अपने सामर्थ्य पर भरोसा करने होगा.
दूसरी एक बात जो मैंने कही है, तीसरी मेरी प्रणशक्ति की बात है वो है हमारी विरासत पर. हमें गर्व होना चाहिए. जब हम अपनी धरती से जुड़ेंगे, जब हम अपनी धरती से जुड़ेंगे, तभी तो ऊंचा उड़ेंगे, और जब हम ऊंचा उड़ेंगे तो हम विश्व को भी समाधान दे पाएंगे. हमने देखा है जब हम अपनी चीजों पर गर्व करते हैं. आज दुनिया holistic health care की चर्चा कर रही है लेकिन जब holistic health care की चर्चा करती है तो उसकी नजर भारत के योग पर जाती है, भारत के आयुर्वेद पर जाती है, भारत के holistic lifestyle पर जाती है. ये हमारी विरासत है जो हम दुनिया का दे रहे हैं. दुनिया आज उससे प्रभावित हो रही है. अब हमारी ताकत देखिए. हम वो लोग हैं जो प्रकृति के साथ जीना जानते हैं. प्रकृति को प्रेम करना जानते हैं. आज विश्व पर्यावरण की जो समस्या से जूझ रहा है. हमारे पास वो विरासत है, ग्लोबल वार्मिंग की समस्याओं के समाधान का रास्ता हम लोगों के पास है. हमारे पूर्वजों ने दिया हुआ है.
जब हम lifestyle की बात करते हैं, environment friendly lifestyle की बात करते हैं, हम life mission की बात करते हैं तो दुनिया का ध्यान आकर्षित करते हैं. हमारे पास ये सामर्थ्य है. हमारा बड़ा धान मोटा धान मिलेट, हमारे यहां तो घर-घर की चीज रही है. ये हमारी विरासत है, हमारे छोटे किसानों के परिश्रम से छोटी-छोटी जमीन के टुकड़ों में फलने फुलने वाली हमारी धान. आज दुनिया अंतराष्ट्रीय स्तर पर millet year मनाने के लिए आगे बढ़ रही है. मतलब हमारी विरासत को आज दुनिया, हम उस पर गर्व करना सीखें. हमारे पास दुनिया को बहुत कुछ देना है. हमारे family values विश्व के सामाजिक तनाव की जब चर्चा हो रही है. व्यक्तिगत तनाव की चर्चा होती है, तो लोगों को योग दिखता है. सामुहिक तनाव की बात होती है तब भारत की पारिवारिक व्यवस्था दिखती है. संयुक्त परिवार की एक पूंजी सदियों से हमारी माताओं-बहनों के त्याग बलिदान के कारण परिवार नाम की जो व्यवस्था विकसित हुई ये हमारी विरासत है. इस विरासत पर हम गर्व कैसे करें. हम तो वो लोग हैं जो जीव में भी शिव देखते हैं. हम वो लोग हैं जो नर में नारायण देखते हैं. हम वो लोग हैं जो नारी का नारायणी कहते हैं. हम वो लोग हैं जो पौधे में परमात्मा देखते हैं. हम वो लोग हैं जो नदी को मां मानते हैं. हम वो लोग
हैं जो जीव में भी शिव देखते हैं. हम वो लोग हैं जो नर में नारायण देखते हैं. हम वो लोग हैं जो नारी का नारायणी कहते हैं. हम वो लोग हैं जो पौधे में परमात्मा देखते हैं. हम वो लोग हैं जो नदी को मां मानते हैं. हम वो लोग हैं जो हर कंकर में शंकर देखते हैं. ये हमारा सामर्थ्य है हर नदी में मां का रूप देखते हैं. पर्यावरण की इतनी व्यापकता विशालता ये हमारा गौरव जब विश्व के सामने खुद गर्व करेंगे तो दुनिया करेगी.
भाईयों बहनों
हम वो लोग हैं जिसने दुनिया को वसुधैव कुटुम्बकम् का मंत्र दिया है. हम वो लोग हैं जो दुनिया को कहते हैं ‘एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति.’ आज जो ‘holier than thou’ का संकट जो चल रहा है, तुझसे बड़ा मैं हूँ, ये जो तनाव का कारण बना हुआ है दुनिया को एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति का ज्ञान देने वाली विरासत हमारे पास है. जो कहते हैं सत्य एक है जानकार लोग उसको अलग-अलग तरीके से कहते हैं. यह गौरव हमारा है. हम लोग हैं, जो कहते हैं यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे, कितनी बड़ी सोच है, जो ब्रह्माण्ड में है वो हर जीव मात्र में है. यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे, यह कहने वाले हम लोग हैं. हम वो लोग हैं जिसने दुनिया का कल्याण देखा है, हम जग कल्याण से जन कल्याण के राही रहे हैं. जन कल्याण से जग कल्याण की राह पर चलने वाले हम लोग जब दुनिया की कामना करते हैं, तब कहते हैं- सर्वे भवन्तु सुखिनः. सर्वे सन्तु निरामयाः. सबके सुख की बात सबके आरोग्य की बात करना यह हमारी विरासत है. और इसलिए हम बड़ी शान के साथ हमारी इस विरासत का गर्व करना सीखे, यह प्रण शक्ति है हमारी, जो हमें 25 साल के सपने पूरा करने के लिए जरुरी है.
उसी प्रकार से मेरे प्यारे देशवासियों
एक और महत्वपूर्ण विषय है एकता, एकजुटता. इतने बड़े देश को उसकी विविधता को हमें सेलिब्रेट करना है, इतने पंथ और परंपराएं यह हमारी आन-बान-शान है. कोई नीचा नहीं, कोई ऊंचा नहीं है, सब बराबर हैं. कोई मेरा नहीं, कोई पराया नहीं सब अपने हैं. यह भाव एकता के लिए बहुत जरुरी है. घर में भी एकता की नींव तभी रखी जाती है जब बेटा-बेटी एकसमान हो. अगर बेटा-बेटी एकसमान नहीं होंगे तो एकता के मंत्र नहीं गुथ सकते हैं. जेंडर इक्वैलिटी हमारी एकता में पहली शर्त है. जब हम एकता की बात करते हैं, अगर हमारे यहां एक ही पैरामीटर हो एक ही मानदंड हो, जिस मानदंड को हम कहे इंडिया फर्स्ट मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ, जो भी सोच रहा हूँ, जो भी बोल रहा हूँ इंडिया फर्स्ट के अनुकुल है. एकता का रास्ता खुल जाएगा दोस्त. हमें एकता से बांधने का वो मंत्र है, हमें इसको पकड़ना है. मुझे पूरा विश्वास है, कि हम समाज के अंदर ऊंच-नीच के भेदभावों से मेरे-तेरे के भेदभावों से हम सबकी पुजारी बनें. श्रमेव जयते कहते हैं हम श्रमिक का सम्मान यह हमारा स्वभाव होना चाहिए.
लेकिन भाइयों-बहनों
मैं लाल किले से मेरी एक पीड़ा और कहना चाहता हूँ, यह दर्द मैं कहे बिना नहीं रह सकता. मैं जानता हूँ कि शायद यह लाल किले का विषय नहीं हो सकता. लेकिन मेरे भीतर का दर्द मैं कहाँ कहूँगा. देशवासियों के सामने नहीं कहूँगा तो कहाँ कहूंगा और वो है किसी न किसी कारण से हमारे अंदर एक ऐसी विकृति आयी है, हमारी बोलचाल में, हमारे व्यवहार में, हमारे कुछ शब्दों में हम नारी का अपमान करते हैं. क्या हम स्वभाव से, संस्कार से, रोजमर्रा की जिंदगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं. नारी का गौरव राष्ट्र के सपने पूरे करने में बहुत बड़ी पूंजी बनने वाला है. यह सामर्थ्य मैं देख रहा हूँ और इसलिए मैं इस बात का आग्रही हूँ.
मेरे प्यारे देशवासियों
मैं पांचवीं प्रणशक्ति की बात करता हूँ. और वो पांचवीं प्रणशक्ति है-नागरिक का कर्तव्य. दुनिया में जिन-जिन देशों ने प्रगति की है. जिन-जिन देशों ने कुछ achieve किया है, व्यक्तिगत जीवन में भी जिसने achieve किया है, कुछ बातें उभर करके सामने आती हैं. एक अनुशासित जीवन, दूसरा कर्तव्य के प्रति समर्पण. व्यक्ति के जीवन की सफलता हो, समाज की हो, परिवार की हो, राष्ट्र की हो. यह मूलभूत मार्ग है, यह मूलभूत प्रणशक्ति है.
दुनिया में जिन-जिन देशों ने प्रगति की है, जिन-जिन देशों ने कुछ achieve किया है. व्यक्तिगत जीवन में भी जिसने achieve किया है. कुछ बातें उभर करके सामने आती है. एक अनुशासित जीवन, दूसरा कर्तव्य के प्रति समपर्ण. व्यक्ति के जीवन की सफलता हो, समाज की हो, परिवार की हो, राष्ट्र की हो, यह मूलभूत मार्ग है. यह मूलभूत प्रणशक्ति है और इसलिए हमें कर्तव्य पर बल देना ही होगा. यह शासन का काम है कि बिजली 24 घंटे पहुंचाने के लिए प्रयास करे, लेकिन यह नागरिक का कर्तव्य है कि जितनी ज्यादा यूनिट बिजली बचा सकते है बचाएं. हर खेत में पानी पहुंचाना सरकार की जिम्मेदारी है, सरकार का प्रयास है, लेकिन ‘per drop more crop’ पानी बचाते हुए आगे बढ़ना मेरे हर खेत से आवाज़ उठनी चाहिए. केमिकल मुक्त खेती, ऑर्गेनिक फार्मिंग, प्राकृतिक खेती यह हमारा कर्तव्य है.
साथियों, चाहे पुलिस हो, या पीपुल हो, शासक हो या प्रशासक हो, यह नागरिक कर्तव्य से कोई अछूता नहीं हो सकता. हर कोई अगर नागरिक के कर्तव्यों को निभाएगा तो मुझे विश्वास है कि हम इच्छित लक्ष्य को प्राप्त करने में समय से पहले सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं.
मेरे प्यारे देशवासियों
आज महर्षि अरबिंदों की जन्म जयंती भी है. मैं उस महापुरूष के चरणों में नमन करता हूं. लेकिन हमें उस महापुरूष को याद करना होगा जिन्होंने कहा था स्वदेशी से स्वराज, स्वराज से सुराज. यह उनका मंत्र है हम सबको सोचना होगा कि हम कब तक दुनिया के और लोगों पर निर्भर रहेंगे. क्या हमारे देश को अन्न की आवश्यकता हो, हम out source कर सकते हैं क्या? जब देश ने तय कर लिया कि हमारा पेट हम खुद भरेंगे, देश ने करके दिखाया या नहीं दिखाया, एक बार संकल्प लेते हैं तो होता है. और इसलिए आत्मनिर्भर भारत यह हर नागरिक का, हर सरकार का, समाज की हर ईकाई का यह दायित्व बन जाता है. यह आत्मनिर्भर भारत यह सरकारी एजेंडा, सरकारी कार्यक्रम नहीं है. यह समाज का जन आंदोलन है, जिसे हमें आगे बढ़ाना है.
मेरे साथियों, आज जब हमने यह बात सुनी, आजादी के 75 साल के बाद जिस आवाज़ को सुनने के लिए हमारे कान तरस रहे थे, 75 साल के बाद वो आवाज़ सुनाई दी है. 75 साल के बाद लाल किले पर से तिरंगे को सलामी देने का काम पहली बार Made In India तोप ने किया है. कौन हिन्दुस्तानी होगा, जिसको यह बात, यह आवाज़ उसे नई प्रेरणा, ताकत नहीं देगी. और इसलिए मेरे प्यारे भाई-बहनों में आज मेरे देश के सेना के जवानों का हृदय से अभिनंदन करना चाहता हूं. मेरी आत्मनिर्भर की बात को संगठित स्वरूप में, साहस के स्वरूप में मेरी सेना के जवानों ने सेना नायकों ने जिस जिम्मेदारी के साथ कंधे पर उठाया है. मैं उनको जितनी salute करूं, उतनी कम है दोस्तों. उनको आज मैं सलाम करता हूं. क्योंकि सेना का जवान मौत को मुट्ठी में ले करके चलता है. मौत और जिंदगी के बीच में कोई फासला ही नहीं होता है, और तब बीच में वो डट करके खड़ा होता है. और वो मेरे सेना का जवान तय करे कि हम तीन सौ ऐसी चीजें अब list करते हैं जो हम विदेश से नहीं लाएंगे. हमारे देश का यह संकल्प छोटा नहीं है.
मुझे इस संकल्प में भारत के ‘आत्मनिर्भर’ भारत के उज्जवल भविष्य के वो बीज मैं देख रहा हूं जो इस सपनों को वट वृक्ष में परिवर्तित करने वाले हैं. Salute! Salute! मेरे सेना के अधिकारियों को Salute. मैं मेरे छोटे छोटे बालकों को 5 साल 7 साल की आयु के बालक, उनको भी Salute करना चाहता हूं. उनको भी सलाम करना चाहता हूं. जब देश के सामने चेतना जगी, मैंने सैंकड़ों परिवारों से सुना है, 5-5, 7 साल के बच्चे घर में कह रहें हैं कि अब हम विदेशी खिलौने से नहीं खेलेंगे. 5 साल का बच्चा घर में विदेशी खिलौने से नहीं खेलेंगे, ये जब संकल्प करता है ना तब आत्मनिर्भर भारत उसकी रगों में दौड़ता है. आप देखिए पीएलआई स्कीम, एक लाख करोड़ रुपया, दुनिया के लोग हिन्दुस्तान में अपना नसीब आजमाने आ रहे हैं. टेक्नोलॉजी लेकर के आ रहे हैं. रोजगार के नये अवसर बना रहे हैं. भारत मैन्यूफैक्चिरिंग हब बनता जा रहा है. आत्मनिर्भर भारत कि बुनियाद बना रहा है. आज electronic goods manufacturing हो, मोबाइल फोन का manufacturing हो, आज देश बहुत तेजी से प्रगति कर रहा है. जब हमारा ब्रह्मोस दुनिया में जाता है, कौन हिन्दुस्तानी होगा जिसका मन आसमान को न छूता होगा दोस्तों. आज हमारी मेट्रो coaches, हमारी वंदे भारत ट्रेन विश्व के लिए आकर्षण बन रहा है.
मेरे प्यारे देशवासियों
हमें आत्मनिर्भर बनना है, हमारे एनर्जी सेक्टर में. हम कब तक एनर्जी के सेक्टर में किसी और पर dependent रहेंगे और हमें सोलार का क्षेत्र हो, विंड एनर्जी का क्षेत्र हो, रिन्यूएबल के और भी जो रास्ते हों, मिशन हाइड्रोजन हो, बायो फ्यूल की कोशिश हो, electric vehicle पर जाने की बात हो, हमें आत्मनिर्भर बनकर के इन व्यवस्थाओं को आगे बढ़ाना होगा.
मेरे प्यारे देशवासियों
आज प्राकृतिक खेती भी आत्मनिर्भर का एक मार्ग है. फर्टीलाइज़र से जितनी ज्यादा मुक्ति, आज देश में नेनो फर्टीलाइज़र के कारखाने एक नई आशा लेकर के आए हैं. लेकिन प्राकृतिक खेती, केमिकल फ्री खेती आत्मनिर्भर को ताकत दे सकती है. आज देश में रोजगार के क्षेत्र में ग्रीन जॉब के नए-नए क्षेत्र बहुत तेजी से खुल रहे हैं. भारत ने नीतियों के द्वारा ‘स्पेस’ को खोल दिया है. ड्रोन की बहुत दुनिया में सबसे प्रगतिशील पॉलिसी लेकर के आए हैं. हमने देश के नौजवानों के लिए नए द्वार खोल दिए हैं.
मेरे प्यारे भाईओ-बहनों
मैं प्राइवेट सेक्टर को भी आह्वान करता हूं आइए… हमें विश्व में छा जाना है. आत्मनिर्भर भारत का ये भी सपना है कि दुनिया को भी जो आवश्यकताए हैं उसको पूरा करने में भारत पीछे नहीं रहेगा. हमारे लघू उद्योग हो, सूक्ष्म उद्योग हो, कुटीर उद्योग हो, ‘जीरो डिफेक्ट जीरो इफेक्ट’ हमें करके दुनिया में जाना होगा. हमें स्वदेशी पर गर्व करना होगा.
मेरे प्यारे देशवासियों
हम बार-बार लाल बहादुर शास्त्री जी को याद करते हैं, जय जवान-जय किसान का उनका मंत्र आज भी देश के लिए प्रेरणा है. बाद में अटल बिहारी वाजपेयी जी ने जय विज्ञान कह करके उसमें एक कड़ी जोड़ दी थी और देश ने उसको प्राथमिकता दी थी. लेकिन अब अमृतकाल के लिए एक और अनिवार्यता है और वो है जय अनुसंधान. जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान-जय अनुसंधान- इनोवेशन. और मुझे मेरे देश की युवा पीढ़ी पर भरोसा है. इनोवेशन की ताकत देखिए, आज हमारा यूपीआई-भीम, हमारा डिजिटल पेमेंट, फिनटेक की दुनिया में हमारा स्थान, आज विश्व में रियल टाइम 40 पर्सेंट अगर डिजिटली फाइनेशियल का ट्रांजेक्शन होता है तो मेरे देश में हो रहा है, हिन्दुस्तान ने ये करके दिखाया है.
मेरे प्यारे देशवासियों
अब हम 5जी के दौर की ओर कदम रख रहे हैं. बहुत दूर इंतजार नहीं करना होगा, हम कदम मिलाने वाले हैं. हम ऑप्टिकल फाइबर गांव-गांव में पहुंचा रहे हैं. डिजिटल इंडिया का सपना गांव से गुजरेगा, ये मुझे पूरी जानकारी है. आज मुझे खुशी है हिन्दुस्तान के चार लाख कॉमन सर्विस सेंटर्स गांवों में विकसित हो रहे हैं. गांव के नौजवान बेटे-बेटियां कॉमन सर्विस सेंटर चला रहे हैं. देश गर्व कर सकता है कि गांव के क्षेत्र में चार लाख Digital Entrepreneur का तैयार होना और सारी सेवाएं लोग गांव के लोग उनके यहां लेने के लिए आदी बन जाएं, ये अपने-आप में टेक्नोलॉजी हब बनने की भारत की ताकत है.
मेरे प्यारे देशवासियों
ये जो डिजिटल इंडिया का मूवमेंट है, जो सेमीकंडक्टर की ओर हम कदम बढ़ा रहे हैं, 5जी की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, ऑप्टिकल फाइबर का नेटवर्क बिछा रहे हैं, ये सिर्फ आधुनिकता की पहचान है, ऐसा नहीं है. तीन बड़ी ताकतें इसके अंदर समाहित हैं. शिक्षा में आमूल-चूल क्रांति- ये डिजिटल माध्यम से आने वाली है. स्वास्थ्य सेवाओं में आमूल-चूल क्रांति डिजिटल से आने वाली है. कृषि जीवन में भी बहुत बड़ा बदलाव डिजिटल से आने वाला है. एक नया विश्व तैयार हो रहा है. भारत उसे बढ़ाने के लिए और मैं साफ देख रहा हूं दोस्तों ये Decade, मानव जाति के लिए tecahade का समय है, टेक्नोलॉजी का Decade है. भारत के लिए तो ये tecahade , जिसका मन टेक्नोलॉजी से जुड़ा हुआ है. आईटी की दुनिया में भारत ने अपना एक लोहा मनवा लिया है, ये tecahade का सामर्थ्य भारत के पास है.
हमारा अटल इनोवेशन मिशन, हमारे incubation centre, हमारे स्टार्टअप एक नया, पूरे क्षेत्र का विकास कर रहे हैं, युवा पीढ़ी के लिए नए अवसर ले करके आ रहे हैं. स्पेस मिशन की बात हो, हमारे Deep Ocean Mission की बात हो, समंदर की गहराई में जाना हो या हमें आसमान को छूना हो, ये नए क्षेत्र हैं, जिसको ले करके हम आगे बढ़ रहे हैं.
मेरे प्यारे देशवासियों
हम इस बात को न भूलें और भारत ने सदियों से देखा हुआ है, जैसे देश में कुछ नमूना रूप कामों की जरूरत होती है, कुछ बड़ी-बड़ी ऊंचाइयों की जरूरत होती है, लेकिन साथ-साथ धरातल पर मजबूती बहुत आवश्यक होती है. भारत की आर्थिक विकास की संभावनाएं धरातल की मजबूती से जुड़ी हुई हैं. और इसलिए हमारे छोटे किसान-उनका सामर्थ्य, हमारे छोटे उद्यमी-उनका सामर्थ्य, हमारे लघु उद्योग, कुटीर उद्योग, सूक्ष्म उद्योग, रेहड़ी-पटरी वाले लोग, घरों में काम करने वाले लोग, ऑटो रिक्शा चलाने वाले लोग, बस सेवाएं देने वाले लोग, ये समाज का जो सबसे बड़ा तबका है, इसका सामर्थ्यवान होना भारत के सामर्थ्य की गारंटी है और इसलिए हमारे आर्थिक विकास की ये जो मूलभूत जमीनी ताकत है, उस ताकत को सर्वाधिक बल देने की दिशा में हमारा प्रयास चल रहा है.
मेरे प्यारे देशवासियों
हमारे पास 75 साल का अनुभव है, हमने 75 साल में कई सिद्धियां भी प्राप्त की हैं. हमने 75 साल के अनुभव में नए सपने भी संजोए हैं, नए संकल्प भी लिए हैं. लेकिन अमृत काल के लिए हमारे मानव संसाधन का आप्टिमम आउटकम कैसे हो? हमारी प्राकृतिक संपदा का आप्टिमम आउटकम कैसे हो? इस लक्ष्य को लेकर के हमें चलना है. और तब मैं पिछले कुछ सालों के अनुभव से कहना चाहता हूँ. आपने देखा होगा, आज अदालत के अंदर देखिए हमारी वकील के क्षेत्र में काम करने वाली हमारी नारीशक्ति किस ताकत के साथ नजर आ रही है. आप ग्रामीण क्षेत्र में जनप्रतिनिधि के रूप में देखिए. हमारी नारीशक्ति किस मिजाज से समर्पित भाव से अपनी गांवों की समस्याओं को सुलझाने में लगी हुई हैं. आज ज्ञान का क्षेत्र देख लीजिए, विज्ञान का क्षेत्र देख लीजिए, हमारे देश की नारीशक्ति सिरमौर नजर आ रही है.
आज हम पुलिस में देखें, हमारी नारीशक्ति लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी उठा रही है. हम जीवन के हर क्षेत्र में देखें, खेल-कूद का मैदान देखें या युद्ध की भूमि देखें, भारत की नारी शक्ति एक नए सामर्थ्य, नए विश्वास के साथ आगे आ रही है. मैं इसको भारत की 75 साल की जो यात्रा में जो योगदान है, उसमें अब कई गुना योगदान आने वाले 25 साल मैं मेरी नारीशक्ति का देख रहा हूं, मेरी माताओं–बहनों का मेरी बेटियों का देख रहा हूं, और इसलिए ये सारे हिसाब–किताब से ऊपर है. सारे आपके पैरामीटर से अतिरिक्त है. हम इस पर जितना ध्यान देंगे, हम जितने ज्यादा अवसर हमारी बेटियों को देंगे, जितनी सुविधाएं हमारी बेटियों के लिए केंद्रित करेंगे, आप देखना वो हमें बहुत कुछ लौटाकर करके देंगी. वो देश को इस ऊंचाई पर ले जाएगी. इस अमृत काल में जो सपने पूरे करने में जो मेहनत लगने वाली है, अगर उसमें हमारी नारी शक्ति की मेहनत जुड़ जाएगी, व्यापक रूप से जुड़ जाएगी तो हमारी मेहनत कम होगी हमारा समय सीमा भी कम हो जाएगा, हमारे सपने और तेजस्वी होंगे, और ओजस्वी होंगे, और दैदीप्यमान होंगे
और इसलिए आइये साथियों
हम जिम्मेदारियों को लेकर आगे बढ़ें. मैं आज भारत के संविधान के निर्माताओं का भी धन्यवाद करना चाहता हूं कि उन्होंने जो हमें federal structure दिया है, उसके स्पिरिट को बनाते हुए, उसकी भावनाओं का आदर करते हुए हम कंधे से कंधा मिलाकर के इस अमृतकाल में चलेंगे तो सपने साकार होकर के रहेंगे. कार्यक्रम भिन्न हो सकते हैं, कार्यशैली भिन्न हो सकती है लेकिन संकल्प भिन्न नहीं हो सकते, राष्ट्र के लिए सपने भिन्न नहीं हो सकते.
आइए हम एक ऐसे युग के अंदर आगे बढ़ें. मुझे याद है जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था. केंद्र में हमारे विचार की सरकार नहीं थी, लेकिन मेरे गुजरात में हर जगह पर मैं एक ही मंत्र लेके के चलता था कि भारत के विकास के लिए गुजरात का विकास. भारत का विकास हम कहीं पर भी हों, हम सबके मन मस्तिष्क में रहना चाहिए. हमारे देश के कई राज्य हैं, जिन्होंने देश को आगे बढ़ाने में बहुत भूमिका अदा की है, नेतृत्व किया है, कई क्षेत्रों में उदाहरणीय काम किए हैं. ये हमारे federalism को ताकत देते हैं. लेकिन आज समय की मांग है कि हमें cooperative federalism के साथ-साथ cooperative competitive federalism की जरूरत है, हमें विकास की स्पर्धा की जरूरत है.
हर राज्य को लगना चाहिए कि वो राज्य आगे निकल गया. मैं इतनी मेहनत करूंगा कि मैं आगे निकल जाऊंगा. उसने यह 10 अच्छे काम किए हैं मैं 15 अच्छे काम कर के दिखाऊंगा. उसने तीन साल में पूरा किया है मैं दो साल में कर के दिखाऊंगा. हमारे राज्यों के बीच में हमारी service सरकार की सभी इकाइयों के बीच में वो स्पर्धा का वातावरण चाहिए, जो हमें विकास की नई ऊंचाईयों पर ले जाने के लिए प्रयास करे
मेरे प्यारे देशवासियों
इस 25 वर्ष का अमृतकाल के लिए जब हम चर्चा करते हैं, तब मैं जानता हूं चुनौतियां अनेक है, मर्यादाएं अनेक हैं, मुसीबतें भी हैं, बहुत कुछ है, हम इसको कम नहीं आंकते. रास्ते खोजते हें, लगातार कोशिश कर रहे हैं लेकिन दो विषयों को तो मैं यहां पर चर्चा करना चाहता हूं. चर्चा अनेक विषयों पर हो सकती है. लेकिन मैं अभी समय की सीमा के साथ दो विषयों पर चर्चा करना चाहता हूं. और मैं मानता हूं हमारी इन सारी चुनौतियों के कारण, विकृतियों के कारण, बिमारियों के कारण इस 25 साल का अमृत काल उस पर शायद अगर हमने समय रहते नहीं चेते, समय रहते समाधान नहीं किए तो ये विकराल रूप ले सकते हैं. और इसलिए मैं सब की चर्चा न करते हुए दो पर जरूर चर्चा करना चाहता हूं. एक है भ्रष्टाचार और दूसरा है भाई-भतीजावाद, परिवारवाद. भारत जैसे लोकतंत्र में जहां लोग गरीबी से जूझ रहे हैं जब ये देखते हैं, एक तरफ वो लोग हैं जिनके पास रहने के लिए जगह नहीं है. दूसरी ओर वो लोग हैं जिनको अपना चोरी किया हुआ माल रखने के लिए जगह नहीं है. यह स्थिति अच्छी नहीं है दोस्तों. और इसलिए हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ना है. पिछले आठ वर्षों में direct benefit transfer के द्वारा आधार, mobile इन सारी आधुनिक व्यवस्थाओं का उपयोग करते हुए दो लाख करोड़ रुपये जो गलत हाथों में जाते थे, उसको बचाकर के देश की भलाई के लिए लगाने में हम सफल हुए. जो लोग पिछली सरकारों में बैंकों को लूट-लूट कर के भाग गए, उनकी सम्पत्त्यिां जब्त कर के वापिस लाने की कोशिश कर रहे हैं. कईयों को जेलों में जीने के लिए मजबूर कर के रखा हुआ है. हमारी कोशिश है जिन्होंने देश को लूटा है उनको लौटना पड़े वो स्थिति हम पैदा करेंगे.
भाईयो और बहनों, अब भ्रष्टाचार के खिलाफ मैं साफ देख रहा हूं कि हम एक निर्णायक कालखंड में कदम रख रहे हैं. बड़े-बड़े भी बच नहीं पाएंगे. इस मिजाज के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ एक निर्णायक कालखंड में अब हिन्दुस्तान कदम रख रहा है. और मैं लाल किले की प्राचीर से बड़ी जिम्मेवारी के साथ कह रहा हूं. और इसलिए, भाईयों-बहनों भ्रष्टाचार दीमक की तरह देश को खोखला कर रहा है. मुझे इसके खिलाफ लड़ाई लड़नी है, लड़ाई को तेज करना है, निर्णायक मोड़ पर इसे लेकर के ही जाना है. तब मेरे 130 करोड़ देशवासी, आप मुझे आर्शिवाद दीजिए, आप मेरा साथ दीजिए, मैं आज आप से साथ मांगने आया हूं, आपका सहयोग मांगने आया हूं ताकि मैं इस लड़ाई को लड़ पाऊं. इस लड़ाई को देश जीत पाए और समान्य नागरिक की जिंदगी भ्रष्टाचार ने तबाह करके रखी हुई है. मैं मेरे इन समान्य नागरिक की जिंदगी को फिर से आन, बान, शान के लिए जीने के लिए रास्ता बनाना चाहता हूं. और इसलिए, मेरे प्यारे दशवासियों यह चिंता का विषय है कि आज देश में भ्रष्टाचार के प्रति नफरत तो दिखती है, व्यक्त भी होती है लेकिन कभी-कभी भ्रष्टाचारियों के प्रति उदारता बरती जाती है, किसी भी देश में यह शोभा नहीं देगा.
और कई लोग तो इतनी बेशर्मी तक चले जाते हैं कि कोर्ट में सजा हो चुकी हो, भ्रष्टाचारी सिद्ध हो चुका हो, जेल जाना तय हो चुका हो, जेल गुजार रहे हो, उसके बावजूद भी उनका महिमामंडन करने में लगे रहते हैं, उनकी शान-ओ-शौकत में लगे रहते हैं, उनकी प्रतिष्ठा बनाने में लगे रहते हैं. अगर जब तक समाज में गंदगी के प्रति नफरत नहीं होती है, स्चछता की चेतना जगती नहीं है. जब तक भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी के प्रति नफरत का भाव पैदा नहीं होता है, सामाजिक रूप से उसको नीचा देखने के लिए मजबूर नहीं करते, तब तक यह मानसिकता खत्म होने वाली नहीं है. और इसलिए भ्रष्टाचार के प्रति भी और भ्रष्टाचारियों के प्रति भी हमें बहुत जागरूक होने की जरूरत है.
दूसरी एक चर्चा मैं करना चाहता हूं भाई-भतीजावाद, और जब मैं भाई-भतीजावाद परिवारवाद की बात करता हूं तो लोगों को लगता है मैं सिर्फ राजनीति क्षेत्र की बात करता हूं. जी नहीं, दुर्भाग्य से राजनीति क्षेत्र की उस बुराई ने हिन्दुस्तान की हर संस्थाओं में परिवारवाद को पोषित कर दिया है. परिवारवाद हमारी अनेक संस्थाओं को अपने में लपेटे हुए है. और इसके कारण मेरे देश के talent को नुकसान होता है. मेरे देश के सामर्थ्य को नुकसान होता है. जिनके पास अवसर की संभावनाएं हैं वो परिवारवाद भाई-भतीजे के बाद बाहर रह जाता है. भ्रष्टाचार का भी कारण यह भी एक बन जाता है, ताकि उसका कोई भाई-भतीजे का आसरा नहीं है तो लगता है कि भई चलो कहीं से खरीद करके जगह बना लूं. इस परिवारवाद से भाई-भतीजावाद से हमें हर संस्थाओं में एक नफरत पैदा करनी होगी, जागरूकता पैदा करनी होगी, तब हम हमारी संस्थाओं को बचा पाएंगे. संस्थाओं के उज्ज्वल भविष्य के लिए बहुत आवश्यक है. उसी प्रकार से राजनीति में भी परिवारवाद ने देश के सामर्थ्य के साथ सबसे ज्यादा अन्याय किया है. परिवारवादी राजनीति परिवार की भलाई के लिए होती है उसको देश की भलाई से कोई लेना-देना नहीं होता है और इसलिए लालकिले की प्राचीर से तिरंगे झंडे के आन-बान-शान के नीचे भारत के संविधान का स्मरण करते हुए मैं देशवासियों को खुले मन से कहना चाहता हूं, आइये हिन्दुस्तान की राजनीति के शुद्धिकरण के लिए भी, हिन्दुस्तान की सभी संस्थाओं की शुद्धिकरण के लिए भी हमें देश को इस परिवारवादी मानसिकता से मुक्ति दिला करके योग्यता के आधार पर देश को आगे ले जाने की ओर बढ़ना होगा. यह अनिवार्यता है. वरना हर किसी का मन कुंठित रहता है कि मैं उसके लिए योग्य था, मुझे नहीं मिला, क्योंकि मेरा कोई चाचा, मामा, पिता, दादा-दादी, नाना-नानी कोई वहां थे नहीं. यह मन:स्थिति किसी भी देश के लिए अच्छी नहीं है.
मेरे देश के नौजवानों मैं
आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए, आपके सपनों के लिए मैं भाई-भतीजावाद के खिलाफ लड़ाई में आपका साथ चाहता हूं. परिवारवादी राजनीति के खिलाफ लड़ाई में मैं आपका साथ चाहता हूं. यह संवैधानिक जिम्मेदारी मानता हूं मैं. यह लोकतंत्र की जिम्मेदारी मानता हूं मैं. यह लालकिले के प्राचीर से कही गई बात की ताकत मैं मानता हूं. और इसलिए मैं आज आपसे यह अवसर चाहता हूं. हमने देखा पिछले दिनो खेलों में, ऐसा तो नहीं है कि देश के पास पहले प्रतिभाएं नहीं रहीं होंगी, ऐसा तो नहीं है कि खेल-कूद की दुनिया में हिन्दुस्तान के नौजवान हमारे बेटे-बेटियां कुछ कर नहीं रहे. लेकिन selection भाई-भतीजेवाद के चैनल से गुजरते थे. और उसके कारण वो खेल के मैदान तक उस देश तक तो पहुंच जाते थे, जीत-हार से उन्हें लेना-देना नहीं था. लेकिन जब transparency आई योग्यता के आधार पर खिलाडि़यों का चयन होने लगा पूर्ण पारदर्शिता से खेल के मैदान में सामर्थ्य का सम्मान होने लगा. आज देखिए दुनिया में खेल के मैदान में भारत का तिरंगा फहरता है. भारत का राष्ट्रगान गाया जाता है.
गर्व होता है और परिवारवाद से मुक्ति होती है, भाई भतीजावाद से मुक्ति होती है तो यह नतीजे आते हैं. मेरे प्यारे देशवासियों यह ठीक है, चुनौतियां बहुत है, अगर इस देश के सामने करोड़ों संकट है, तो करोड़ों समाधान भी हैं और मेरा 130 करोड़ देशवासियों पर भरोसा है. 130 करोड़ देशवासी निर्धारित लक्ष्य के साथ संकल्प के प्रति समर्पण के साथ जब 130 करोड़ देशवासी एक कदम आगे रखते हैं न तो हिन्दुस्तान 130 कदम आगे बढ़ जाता है. इस सामर्थ्य को लेकर के हमें आगे बढ़ना है. इस अमृतकाल में, अभी अमृतकाल की पहली बेला है, पहली प्रभात है, हमें आने वाले 25 साल के एक पल भी भूलना नहीं है. एक-एक दिन, समय का प्रत्येक क्षण, जीवन का प्रत्येक कण, मातृभूमि के लिए जीना और तभी आजादी के दीवानों को हमारी सच्ची श्रंद्धाजलि होगी. तभी 75 साल तक देश को यहां तक पहुंचाने में जिन-जिन लोगों ने योगदान दिया, उनका पुण्य स्मरण हमारे काम आयेगा.
मैं देशवासियों से आग्रह करते हुए नई संभावनाओं को संजोते हुए, नए संकल्पों को पार करते हुए आगे बढ़ने का विश्वास लेकर आज अमृतकाल का आरंभ करते हैं. आजादी का अमृत महोत्सव, अब अमृतकाल की दिशा में पलट चुका है, आगे बढ़ चुका है, तब इस अमृतकाल में सबका प्रयास अनिवार्य है. सबका प्रयास ये परिणाम लाने वाला है. टीम इंडिया की भावना ही देश को आगे बढ़ाने वाली है. 130 करोड़ देशवासियों की ये टीम इंडिया एक टीम के रूप में आगे बढ़कर के सारे सपनों को साकार करेगी. इसी पूरे विश्वास के साथ मेरे साथ बोलिए ‘भारत माता की जय ‘
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केवल एक बार देश को एक घंटे से कम समय के लिए संबोधित किया था। 2017 के स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री का भाषण केवल 56 मिनट का रहा था। ये उनका सबसे छोटा भाषण है।