पढ़ें नेताजी का राजनीतिक सफर
उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुलायम सिंह यादव का उभार 1970 के दशक के बाद हुआ था।
समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का कई दिन ICU में रहने के बाद सोमवार को गुरुग्राम के एक अस्पताल में निधन हो गया।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ट्विटर पर अपने पिता के निधन की पुष्टि की है।
मुलायम सिंह यादव ने आज सुबह 8:15 बजे अंतिम सांस ली. मुलायम सिंह यादव को यूरिन संक्रमण, ब्लड प्रेशर की समस्या और सांस लेने में तकलीफ की वजह कुछ दिनो से मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था. मुलायम सिंह यादव के पार्थिव शरीर को अस्पताल से सैफई ले जाया जा रहा है.
कल दोपहर 3 बजे सैफई में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा
उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुलायम सिंह यादव का उभार 1970 के दशक के बाद के तीव्र सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल के बीच हुआ था।
अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) ने तब उत्तर प्रदेश में राजनीतिक प्रभुत्व हासिल करना शुरू कर दिया था। कथित उच्च जाति के नेताओं के वर्चस्व वाली कांग्रेस पार्टी को साइड कर दिया गया था।
एक समाजवादी नेता के रूप में उभरे मुलायम सिंह यादव ने जल्द ही खुद को एक ओबीसी हस्ती के रूप में स्थापित किया और कांग्रेस के अवसान से खाली हुए राजनीतिक स्थान पर कब्जा कर लिया।
उन्होंने 1989 में उत्तर प्रदेश के 15वें सीएम के रूप में शपथ ली, तब से आज तक राज्य की सत्ता में कांग्रेस के पास नहीं गई है। मुलायम सिंह यादव तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।
तीन बार चुने गए मुख्यमंत्री
- 1989 के विधानसभा चुनाव के बाद मुलायम पहली बार भाजपा के बाहरी समर्थन से मुख्यमंत्री बने।
- 1993 में सपा नेता के रूप में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, इस बार उन्हें कांशीराम के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का समर्थन हासिल था।
- 2003 में वह तीसरी बार सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के नेता के रूप में मुख्यमंत्री बने।
उनके तीनों कार्यकाल की कुल अवधि करीब छह साल और 9 महीने थी।
पहलवान से अध्यापक बने मुलायम का जन्म 22 नवंबर, 1939 को इटावा में हुआ था। उनके पास एमए (राजनीति विज्ञान) और बी.एड की डिग्री थी। वह 1967 में पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में इटावा के जसवंतनगर से विधायक चुने गए थे। हालांकि 1969 के चुनाव में कांग्रेस के विशंभर सिंह यादव से हार गए थे।
1974 के मध्यवर्ती चुनाव से पहले मुलायम सिंह चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल (BKD) में शामिल हो गए थे। उन्होंने BKD के टिकट पर जसवंतनगर सीट से चुनाव लड़ा और जीता। साल 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर जसवंतनगर सीट को फिर से जीता। 1970 के दशक के अंत में वह राम नरेश यादव सरकार में सहकारिता और पशुपालन मंत्री भी बने।
नाम मुलायम सिंह था, लेकिन काम तो बड़ा फौलादी था
1980 के चुनावों में जब कांग्रेस ने वापसी की तो मुलायम अपनी सीट बलराम सिंह यादव ( कांग्रेस नेता) से हार गए। बाद में वह लोकदल में गए और राज्य विधान परिषद के उम्मीदवार के रूप में चुने गए। 1985 के विधानसभा चुनाव में मुलायम जसवंतनगर से लोकदल के टिकट पर चुने गए और विपक्ष के नेता बने।
1989 में 10वीं यूपी विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले मुलायम सिंह वीपी सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल में शामिल हो गए। उन्हें यूपी इकाई का प्रमुख नियुक्त किया गया।
प्रमुख विपक्षी चेहरे के रूप में उभरने के बाद उन्होंने राज्यव्यापी क्रांति रथ यात्रा शुरू की। उनकी रैलियों में एक थीम गीत बजता था, “नाम मुलायम सिंह है, लेकिन काम बड़ा फौलादी है