साध्वी मिथिलेश्वरी दीक्षित चित्रकूट धाम ने कथा मे भक्ति के विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या की और भक्त के भी स्वाभाव को बताया
प्रभु भक्ति मनुष्य को विनम्र बनाती है। मनुष्य के अन्दर के ताप को समाप्त करती है।
आपको बता दे कि जिस भक्त पर ईश्वर की कृपा हो जाती है उसका प्रमाण यह मिलता है कि उस भक्त पर सब कृपा करने लग जाते हैं। भगवान जब स्वयं भक्त के हो जाते हैं तो संसार भक्त के नाम को मंत्र के रूप में जपने लगता है।
भगवान की कृपा से पूर्ण भक्त संसार में जीव जगत के कल्याण और ईश्वर-नाम के संकीर्तन के प्रवाह को और तीव्र करने के लिए आते हैं।
भक्त कभी भी राग, द्वेष और वैमनस्य नहीं करते।
उपरोक्त बातें चित्रकूट से पधारी मिथलेश्वरी दीक्षित ने कथा मे कही। इमिलिया चन्दौली मे विगत तीन दिन से हनुमान मन्दिर मे चल रहे ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन कही ।
पहली बार भक्ति के विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या की और भक्त के भी स्वाभाव को बताया।
उन्होंने बताया कि भक्त को संकीर्तन के कारण केवल भक्ति की माला नहीं मिलती बल्कि सासारिक और आध्यात्मिक माल की माला भी संयुक्त रूप से मिलती है।