सनातन_से_खिलवाड़_बंद_करो।
#आदिपुरुष_फ़िल्म_पर_रोक_लगाओ की मांग की कवि ने अपने गीत माध्यम से।
आदिपुरुष फ़िल्म में राम सिया के रूप को जिस प्रकार दिखाया गया है। उसे देखकर आये मन के विचारों को एक गीत के माध्यम से व्यक्त किया है।
रिपोर्ट: आदित्य राजौरिया “अजनबी”
डबरा जिला ग्वालियर
- आपने अपने मन के विचारों को एक गीत के माध्यम से व्यक्त किया राष्ट्रीय कवि आदित्य राजोरिया ने
पहला चित्र #हमारे_मन_के_राम का दूसरे चित्र में #आदिपुरुष_फ़िल्म_के_राम
दोहा चिंतित दिखे बहुत ही
रोती दिखती चौपाई है।
छंद सोरठा व्याकुल दिखते,
ये कैसी छवि दिखलाई है।
क्यों तुमको शर्म न आई है क्यों तुमको शर्म न आई है।
ऋषि बाल्मीकि लिखे हुये को,
अब फिर से देख रहे होंगे।
कलयुग में होगा प्रभु ऐसा,
पहले से लेख रहे होंगे।
तुलसी बाबा सोच सोच कर,
सिर अपना अब धुनते होंगे।
राम रूप दिखलाया ऐसा,
वहाँ किसी से सुनते होंगे।
सोच समझ कर तुमने देखो,
ये साजिश आज रचाई है।
क्यों तुमको शर्म न आई है क्यों तुमको शर्म न आई है।
मित्र निषाद भी तड़पे होंगे,
केवट भी हार गये होंगे।
राम सिया का देख रूप यह,
कैसे वो पार गये होंगे।
माँ अनुसुइया के मन पर भी,
आखिर कैसी बीती होगी।
देख वेष सीता माता का,
क्या पहले सी प्रीती होगी।
सत्य सनातन परिपाटी को,
ये चोट बड़ी पहुँचाई है।
क्यों तुमको शर्म न आई है क्यों तुमको शर्म न आई है।
दण्डक वन की लता पतायें,
अब कैसे पहचानी होंगी।
यही हमारे राम सिया हैं,
क्या वो मन से मानी होंगी।
माँ शबरी भी विस्मित होकर,
सदमे में झूल गईं होंगी।
देख राम का रूप नया यह,
बेर रखे भूल गईं होंगी।
आदिपुरुष के निर्देशक ने,
रामायण ना पढ़ पाई है।
क्यों तुमको शर्म न आई है क्यों तुमको शर्म न आई है।
आदित्य राजौरिया अजनबी
डबरा जिला ग्वालियर
#सनातन_से_खिलवाड़_बंद_करो।
#आदिपुरुष_फ़िल्म_पर_रोक_लगाओ