पूर्ण परम सत्य कर्म योगी के रूप में

रिपोर्ट:डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

व्यक्ति को व्यर्थ की निरर्थक,अनावश्यक हवश पूर्ण महत्वाकांक्षाएं न पालते हुये, न तन मन हृदय मस्तिष्क में ,भाव विचारों में न रखते हुये एक पूर्ण परम सत्य कर्मयोगी बनकर परम सत्ता, सर्वोच्च सत्ता, जगद् ईश्वर पर अपना संपूर्ण विश्वास ,आस्था,श्रद्धा रखते हुए एक सही वह पूर्ण परम सत्य जीवन स्वयं का जीने व अपने परिवार तथा आतिथ्य निर्वहन मात्र चिंतन , कर्म व कर्तव्य निर्वहन करते हुए पूर्ण परम सत्य ईमानदारी से,मेहनत से,लगन से,अपने शरीर से,दिल दिमागीय बुद्धि विवेक से, आत्मा के दर्शन से व संसार समाज अपने पूर्वज माता-पिता के दिग्दर्शनीय अनुभव ,अनुभूति से कर्म करना चाहिए वह उपरोक्त परम सत्य तथ्यों के आधार पर जीवन बनाना व जीना चाहिए ।

पूर्ण परम सत्य कर्म योगी के रूप में बाह्य दिग्भ्रमितता तनीय , मनीय , इंद्रिय जनित अज्ञान स्वरूपीय , अंधता स्वरूपीय अंश मात्र भी नहीं पालना चाहिये और न ही लादना चाहिए । पूर्ण परम सत्य ईश विश्वास व आत्मविश्वास से कर्म योग का पालन करना चाहिए ।

“कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर तू इंसान ॥ ” कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदा चिनः ॥ “

त्याग दो रे भाई फल की आशा स्वार्थ बिना प्रीत जोड़ो । कल क्या होगा इसकी चिंता जगत पिता पर छोड़ो । उसी का सोचा यहां पे होता उसकी शक्ति महान ।

-डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

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