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हे मानव तुम क्यों दूसरे की सुख सुविधा, पद प्रतिष्ठा, धन वैभव देखकर उसे पहचानते हो

जबकि यह सब अस्थाई हैं

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रिपोर्ट  : डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

@focusnews24x7.com 

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हे मानव तुम क्यों दूसरे आदमी की सुख सुविधा, पद प्रतिष्ठा, धन वैभव भोगपूर्ण विशाल साम्राज्य देखकर उसे पहचानते हो जानते हो। जबकि यह सब अस्थाई हैं किसी भी क्षण किसी के भी पास से तिरोहित हो सकते हैं / हो जाते हैं।

छल कपट पाखण्ड बेईमानी धोखा-दगा दूसरों का हक मारकर, दूसरों को लूट खसोट कर इकट्ठा किया पर जरूरत पड़ने पर एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलती

जिन्हें छल कपट पाखण्ड बेईमानी धोखा-दगा दूसरों का हक मारकर, दूसरों को लूट खसोट कर इकट्ठा किया जाता है। अथवा होता है। बनाया जाता है । जबकि तुम्हें जरूरत पड़ने पर एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलती है और न ही बगैर तुम्हारी गर्जीय आवश्यकता पर जर जोरू जमीन रखे बगैर तुम्हे कुछ नही देंगे / रखेंगे भी तो हड़पने की नीति से फिर क्यों दूसरों के पाखण्ड पूर्ण वैभवीय साम्राज्य पर आकर्षित होते हैं।

खुद जागो अपनी मेहनत श्रम साधना पर परम पिता परमेश्वर पर सत्य विश्वास करो

डरते हो भय खाकर असत्य को सत्य स्वीकार करते हो। खुद जागो अपनी मेहनत श्रम साधना पर परम पिता परमेश्वर पर सत्य विश्वास करो और अपने श्रम की सत्य कमाई में ही सुख शान्ति आनन्द व सन्तोष ढूढ़ो, पाओ।                                                       आर्थात्- पूर्ण परम सत्य में जीओ। अपने में ही स्वयं से ही । स्वयं में ही सत्य आकर्षण करो । सत्य आकर्षण रखो । अति आनन्द मिलेगा अति आनन्द आयेगा । देखो एक सत्य तत्ववेत्ता का परम सत्य ।     कस्तूरी कुन्डलि बसै, मृग ढूढ़े वन माँहि।                                    अर्थात् – जैसे हिरण की नाभि में कस्तूरी रहती है अथवा निवास करती है परन्तु वह बाह्य जंगल में उसे ढूढ़ता फिरता है। इसी तरह मानव ईश्वर प्रदत्त आत्म शक्ति से स्वयं बलवान है परन्तु दूसरे के आश्रय की ओर ताकने झांकने की भाव विचार धारा कारण दुर्बल निर्बल है ।

इसलिये हे मानव सत्य आत्म शक्ति व आत्म कल्याण के धनी बनो । फिर आत्म पुरुषार्थ पर सभी कुछ इच्छुक वस्तु पदार्थ सामग्री जो चाहोगे वह तुम्हारे पास होगी । यह मैं पूर्ण परम सत्य आत्म विश्वास से कहता हूं।                         – डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

 

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