जहां दया तहां धर्म है, जहां लोभ वहां पाप” कहा कथा व्यास साध्वी मिथलेश्वरी दीक्षित चित्रकूट धाम ने
रिपोर्ट: विनय पचौरी
■भगवान श्री सदा नंदेश्वर मंदिर प्रांगण में 18 सितंबर से 26 सितंबर तक श्रीमद् भागवत कथा।
फर्रुखाबाद में भगवान श्री सदा नंदेश्वर मंदिर प्रांगण में 18 सितंबर से 26 सितंबर तक श्रीमद् भागवत का मूल पाठ व संगीत में श्री रामचरितमानस कथा का आयोजन चल रहा है जिसमें कथा व्यास मानस कोकिला मिथिलेश्वरी दीक्षित चित्रकूट धाम के मुखारविंद से कथा श्रवण का लाभ प्राप्त हो पा रहा है वही आयोजक तिवारी परिवार एवं समस्त मोहल्लेवासी के सहयोग से विशाल कार्यक्रम की व्यवस्थाएं की गई है आपको बता दें कथा का समय दोपहर 1:00 से 5:30 तक है आज कथा दौरान कथा व्यास मानस कोकिला मिठेश्वरी चित्रकूट धाम ने बड़े ही सुंदर ढंग से बताया
जहां दया तहां धर्म है, जहां लोभ वहां पाप”
इसका मतलब है कि जहां दया है वहां धर्म है और जहां लोभ होता है वहां पाप होता है और पाप बढने से धर्म भी उस स्थान पर नही ठहरता है।
पाप या गुनाह, वे काम होते हैं जिन्हें किसी भी धर्म में अस्वीकार्य माना जाता है. ये वे काम होते हैं जो अध्यात्मिक और सामाजिक मूल्यों को कमज़ोर करते हैं या आर्थिक और प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करते हैं. पाप करने वाले व्यक्ति को पापी या गुनहगार कहा जाता है.
जैसा श्रीभगवान ने कहा कि मनुष्य स्वार्थ की वजह से पाप करता है. जब व्यक्ति का स्वार्थ बढ़ जाता है, तो वह अपने अलावा किसी की नहीं सोचता।
उसे केवल और पाने की इच्छा रहती है। इस वजह से वह यह नहीं सोचता कि उसके स्वार्थ से किसी दूसरे को नुकसान होगा या उसे दुख उठाना पड़ेगा।
स्वार्थ की अति पाप करने को करती है मजबूर।
मनुष्य पाप क्यों करता है? इस सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि इस पृथ्वी पर हर मनुष्य अपनी भलाई के लिए कार्य करता है लेकिन जब व्यक्ति का स्वार्थ बढ़ जाता है, तो वे अपने अलावा किसी की नहीं सोचता। उसे केवल और पाने की इच्छा रहती है। इस क्रम में मनुष्य यह नहीं सोचता कि उसके स्वार्थ से किसी अन्य को हानि होगी या दुख उठाना पड़ेगा। उसकी संवेदनाएं मरती जाती है और उसे दूसरों के दुख में भी सुख ही दिखता है।
वही कथा व्यास मिथिलेश्वरी ने श्री रामचरितमानस कथा की विभिन्न प्रसंगों से बैठे श्रद्धालुओं का मन मोह लिया और सभी भक्तगणों को सत्य के मार्ग पर चलने की राह दे दी।
कई बार अत्यंत पीड़ा भी क्रोध का कारण बनती है लेकिन क्रोध से व्यक्ति कुछ भी सही नहीं सोच पाता। कुछ देर के लिए ही सही लेकिन उसकी बुद्धि बंद हो जाती है और वो कुछ भी सही दिशा में नहीं सोच पाता है।
जिस तरह धुआं अत्यंत होने पर अग्नि कुछ देर के लिए ढक जाती है और सही स्थिति का पता नहीं चलता, उसी तरह क्रोध भी एक धुएं की तरह होता है।
जिसकी अति होने पर आसपास मौजूद कुछ भी चीजें नजर नहीं आती।
इन सभी बातों के बाद बताया कि पाप से कैसे बचा जा सकता है?
इसका जवाब देते हुए साध्वी ने कहा कि प्रत्येक मनुष्य को सबसे पहले अपनी सभी नकारात्मकताओं को मन से निकाल देना चाहिए। मनुष्य को प्रारम्भ के साथ अपने अंत का ज्ञान होना भी बहुत आवश्यक है। धरती पर हर मनुष्य की एक निश्चित आयु है, कोई भी अमर नहीं है। ऐसे में सभी को यह सोचना चाहिए, जिस वस्तु को पाने के लिए हम इतने पाप कर रहे हैं, उनमें से कुछ भी हमारे साथ नहीं जाएगा।
व्यक्ति को आसक्ति यानी किसी भी वस्तु के लिए अत्यधिक लगाव नहीं रखना चाहिए। वहीं, विरक्ति के भाव को भी खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए।
सही-गलत की पहचान होना और इस विवेक को हमेशा बनाए रखने से ही पाप करने से खुद को रोका जा सकता है। यही पाप करने से बचने का अंतिम उपाय है।