बांग्लादेश में क्यों भड़की हिंसा, सरकार से गुस्से में क्यों स्टूडेंट्स? क्या है क्या पीछे है आतकवाद की आड़।
■बांग्लादेश में हिंसा और शेख हसीना सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के बीच तख्तापलट हो गया।
पड़ोसी मुल्क में फिर सेना ने अंतरिम सरकार बनायी। शेख हसीना भारत आ चुकी हैं। अभी हाल मे वही की सरकार ने उनका बीजा भी रद्द कर दिया है।
■बांग्लादेश में आखिर हुआ क्या। क्यों हजारों की तादाद में छात्र सड़कों पर उतर आए।
आइए जानते हैं कि आरक्षण की अनियमितताओं के खिलाफ
विरोध प्रदर्शन की आग में आखिर बांग्लादेश क्यों जल रहा है।
बांग्लादेश में तख्तापलट हो गया। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया और ढाका छोड़कर भारत आ गयी ।
सेना प्रमुख वकर-उज-जमान ने बांग्लादेश का कमान संभाल लिया है।
वहां, सेना ने अंतरिम सरकार बनायी।हिंसा की आग से धधक रहे पड़ोसी देश का असर निश्चित रूप से भारत पर पड़ने वाला है।
बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है उसकी शुरुआत कुछ हफ्ते पहले हो चुकी थी।
सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था में सुधार की मांग को लेकर बांग्लादेश के तमाम शहरों में पिछले कुछ हफ्तों से विरोध प्रदर्शन हो रहे थे।
बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण में अनियमितताओं के खिलाफ छात्रों का विरोध प्रदर्शन हिंसक हो उठा।
हिंसा में अब तक 300 लोगों की मौत हो चुकी है।
कुछ दिनों पहले ढाका में लाठियों और पत्थरों से लैस हजारों छात्र सशस्त्र पुलिस बलों से भिड़ गए थे।
प्रदर्शन को दबाने के लिए कई स्थानों पर मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई थी।
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा कि विरोध प्रदर्शन छात्रों द्वारा नहीं बल्कि “आतंकवादियों द्वारा आयोजित किया जा रहा है जो देश को अस्थिर करना चाहते हैं”।
उन्होंने छात्रों से भी कहा कि वे उनसे बातचीत करें और विरोध प्रदर्शन न करें।
क्या है प्रदर्शनकारियों की डिमांड?
सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर छात्रों की सरकार से क्या डिमांड है और बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों को लेकर आरक्षण का क्या कानून है।
दरअसल, बांग्लादेश में आरक्षण प्रणाली के तहत 56 प्रतिशत सरकारी नौकरियां आरक्षित हैं।
इनमें से 30 प्रतिशत आरक्षण साल 1971 के मुक्ति संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए रिजर्व है। वहीं, 10 प्रतिशत आरक्षण पिछड़े प्रशासनिक जिलों के लिए और 10 प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षण रिजर्व है।
इसके अलावा पांच प्रतिशत आरक्षण जातीय अल्पसंख्यक समूहों के लिए और एक प्रतिशत दिव्यांग लोगों के लिए रिजर्व है।
इन सभी आरक्षण प्रणालियों में से विवाद उस 30 प्रतिशत आरक्षण को लेकर है, जो स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को दिए जा रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, छात्रों का कहना है कि सरकार उन लोगों को आरक्षण देने के पक्ष में है, जो शेख हसीना की सरकार का समर्थन करते हैं।
छात्रों का आरोप है कि मेरिट के आधार पर सरकारी नौकरियां नहीं दी जा रही है
वर्तमान सेना प्रमुख वकर-उज-जमान ने भी शनिवार को अधिकारियों को एक अस्पष्ट बयान देते हुए कहा कि सेना “हमेशा लोगों के साथ खड़ी है।
बता दें कि विरोध प्रदर्शन शुरू होने के बाद से कम से कम 11,000 लोग गिरफ्तार किए गए हैं।
शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद अंतरिम सरकार का गठन हो गया है, जिसकी कमान मोहम्मद यूनुस ने संभाली है.
इस बीच पड़ोसी मुल्क में सबसे बुरा हाल अल्पसंख्यक और खासकर हिंदू समुदाय के लोगों का है. इसके चलते हिंदू सड़कों पर उतर आए हैं और अपनी सुरक्षा के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं.
बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार, क्या मोहम्मद यूनुस के मंदिर दर्शन से अल्पसंख्यकों में कायम होगा भरोसा?
बांग्लादेश के हालात पर भारत की पैनी नजर है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सर्वदलीय बैठक कर भारत के रुख से विपक्षी दलों के नेताओं को अवगत कराया है और उन्हें सभी दलों ने समर्थन देने की बात भी कही है.
इन हालात में बड़ा सवाल यह है कि आखिर हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश में शांति कैसे स्थापित होगी और वहां आगे क्या होने वाला है? क्या बांग्लादेश में जो कुछ हुआ है, वह सिर्फ वहां के छात्रों के असंतोष का परिणाम है या फिर विदेशी ताकतें वहां की अराजकता के लिए जिम्मेदार हैं?
निश्चित तौर पर घुसपैठ बढ़ेगी. अगर बांग्लादेश में अराजकता कायम रही और वहां की सरकार इसे रोकने में असफल रही, तो जीविका के लिए वहां के लोग भारत का रुख करेंगे क्योंकि यहां शांति है. भारत के लिए चुनौती यह है कि अगर शरणार्थी आए तो उसमें असामाजिक तत्वों भी शामिल होंगे, जो अपने देश में माहौल खराब करेंगे, इसलिए उस पर नकेल कसने की जरूरत है.
वर्तमान में बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से हिंदुओं पर हो रहे लगातार अत्याचार और धार्मिक स्थलों की तोड़फोड़ से नाराज अपने देश के हिंदू संगठनों ने देश के कई शहरो मे आक्रोश यात्रा निकाली है।
यहाँ भारत के सभी हिंदू संगठनों को एकजुट होकर इस मुद्दे पर आवाज उठाने का आह्वान किया गया।