भीम आर्मी संस्थापक आजाद समाज पार्टी के प्रवर्तक चन्द्रशेखर आजाद रावण की जीत दलित उभरे सितारे के उदय का संकेत है ।भाजपा, सपा, बसपा प्रत्याशियों को लीड देकर स्वयं नगीना से संसदीय सीट जीतना अपने नाम करना उनके युवा दलित समुदाय में उभरते एक सितारे का उदय का प्रतीक है । भीम आर्मी के गठन के बाद उन्होने समाज के दलित समाज की तमाम घटनाओं दलितों के साथ कहीं भी कोई घटना घटी स्वयं अतिसाहस उल्हास आत्मीयता का अपने पन का परिचय देते हुए तुरन्त वहां पहुॅचे दुःखी कष्ट में पड़े लोगों की परेशानियों को दूर करने की आवाज उठाने का काम किया। घटनाओं के शिकार परिवारों को ढाढ़स बंधाते हिम्मत हौसला बढ़ाते हुए कठोर विषम परिस्थितियों में हृदयविदारक स्थितियों में जहाँ अन्याय अत्याचारीय रूपों के शिकार हत्या मर्डर , बलात्कार से पीड़ित गुण्डई, दबंगई से आहत लोगों के साथ जाकर खड़े हुए उनकी हर मदद के लिए आगे आये। दूसरों की वेदनाओं को आत्म वेदना की भावविचार धारा का व्यक्तित्व आज वर्तमान में उनमें दिखाई दे रहा है। जिसका नतीजा उत्तर प्रदेश की नगीना लोकसभा क्षेत्र से खड़े होने पर वहाँ के जनमानसों ने, माताओं बहिनों बेटियों ने उनमें सभी के लिए हितकारक, सभी के दुःख तकलीफों, किन्ही भी आयी उत्पन्न हुई समस्याओं में उनके सहारा आश्रय मिलने की आशा की किरण उनमें देखी। उनमें अपना विश्वास जमाया और उन्हे अपना विश्वास (मत) देकर । सपा, बसपा, भाजपा को दरकिनार करके उन्हे जिताया । दलित समुदाय की और सभी समुदायों की न्याय नीति, सर्वहितीय भाव विचारीय उनके गुण स्वभाव को देखते हुए , उनसे भावी भविष्य में संकटों के आने पर दुःख मुसीबत पड़ने पर शासकीय या अराजक तत्वों के अन्यायीय अत्याचारी कार्य व्यवहारों में उनके आकर खड़े हो जाने, समस्याओं का निराकरण करने कराने में राष्ट्र की जनता उनसे आशान्वित है । ऐसे व्यक्तित्व से जो दूसरों के दुःख दर्द हृदय वेदनाओं की स्वयं में आत्मानुभूति करता है वह अवश्य ही दलित या पिछड़े समाज का न होकर न रहकर सर्व समाज की दुःख तकलीफों को हृदयी वेदनाओं को अवश्य ही स्वयं अनुभूति करने वाला महसूस करने वाला हो सकता है । आने वाले समय में ऐसे व्यक्ति से सर्व समाज भी अपनी समस्याओं के निराकरण के लिए संसर्ग सम्पर्क साधने का प्रयत्न कर सकता है तथा चन्द्रशेखर आजाद रावण से भी मानव पोषण की आशायें की जा सकती हैं और उनसे भी आशा अपेक्षा की कसौटी पर खरे उतरने का परिचय लिया जा सकता है तथा उनका परीक्षण किया जा सकता है । उन पर ऐसा विश्वास किया जा सकता है कि वे सर्व मानव समुदाय के पोषक बनकर सभी के लिए अन्यायीय अत्याचारीय स्थितियों और शासन सत्ता के रूपों स्वरूपों की विषम परिस्थितियों में अपनी चातुर्यमयी बुद्धिमत्ता से आत्मसाहस मयी विवेकशीलता से तथा अपनी प्रखर आत्मीयता वाली भाव विचारधारा से आनेवाली होने वाली समस्याओं का जनता व शासनसत्ता सभी से मिलकर शासन समाज के मददगार सिद्ध हो सकते हैं । तथा सर्वसेवा स्वरूपों मे खरे उतर सकते हैं एवं खरा उतरना भी चाहिए । उनके भाव विचारीय भाषणों से विचारों से ऐसा प्रतीत होता है । मानव – मानव में पारस्परिक भेदभावीय विसंगतियां, असमानताएं जिनसे वर्णभेदीय संघर्ष उत्पन्न होते हैं वह एक अच्छा सच्चा निर्विकार निर्मल भारत राष्ट्र में ऐसा मानव समुदाय तैयार करना व भेदभावी संघर्ष भारत में समाप्त हो लोगों का लोगों द्वारा पारस्परिक सम्मानीय जनों का एक दूसरे के द्वारा सम्मान बरकरार रहे प्रेम बरकारार रहे पारस्परिक आत्मीयता बरकरार रहे सम्माननीय लोगो का एक दूसरे के द्वारा सम्मान हो ऐसा परिवर्तनीय भारत बने ऐसी मानसिकता उनके वैचारिक स्वरूपों से दृष्टिगोचर उनमें होती प्रतीत दिखाई देती है। मेरी शुभकामनाएँ हैं कि वर्णगत भारत सर्वप्रेमी भारत बने कहीं कोई लड़ाइयां झगड़ा न हों और ना ही रहे । सम्पूर्ण राष्ट्र में प्रेम की गंगा बहे ।
ज्योत से ज्योत जगाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आए जो दीन, हीन, दुखी, सबको गले से लगाते चलो
जिसका न कोई संगी साथी ईश्वर है रखवाला
जो निर्धन है जो निर्बल है वह है प्रभू का प्यारा
प्यार के मोती लुटाते चलो, प्रेम की गंगा…
आशा टूटी ममता रूठी छूट गया है किनारा
बंद करो मत द्वार दया का दे दो कुछ तो सहारा
दीप दया का जलाते चलो, प्रेम की गंगा…
छाया है चहुं ओर अंधेरा भटक गई हैं दिशाएं
मानव बन बैठा है दानव किसको व्यथा सुनाएं
धरती को स्वर्ग बनाते चलो, प्रेम की गंगा…
ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आए जो दीन दुखी सब को गले से लगाते चलो
प्रेम की गंगा बहाते चलो …
कौन है ऊँचा कौन है नीचा सब में वो ही समाया
भेद भाव के झूठे भरम में ये मानव भरमाया
आत्मवत् मानवीय ध्वजा फहराते चलो, प्रेम की गंगा …
सारे जग के कण कण में है दिव्य अमर इक आत्मा
एक ब्रह्म है एक सत्य है एक ही है परमात्मा
प्राणों से प्राण मिलाते चलो, प्रेम की गंगा …
– डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”