ईश्वर का भक्त कहलाने वाला स्वयं अपना आत्म आकलन कर सकता है कि वह आस्तिक है या नास्तिक ।
रिपोर्ट: डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री
व्यक्ति अपने को पहिचाने कि वह मन्दिर ,मस्जिद , चर्च व गुरुद्वारा जाता
व्यक्ति अपने को पहिचाने कि वह मन्दिर ,मस्जिद , चर्च व गुरुद्वारा जाता है। हाथ जोड़ता है, प्रार्थना करता है । कथा , भागवत , गीता, बाइबल , कुरान , गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ करता है करवाता है। वह अपना आन्तरिक कर्मों का , भाव विचारों का गहन आत्म निरीक्षण से आत्म आकलन करे । कि अपने जीवन कार्य व्यापारों का ,कार्य व्यवहारों का तथा अपने आत्मिक भाइयों , माताओं , बहिनों , बेटियों एवं अपनी अर्धांगिनी व मातापिता व सांसारिक सामाजिक पारस्परिक स्नेहिक व परम सत्य कर्तव्य दायित्व पूर्ण परम सत्य रूप में प्रेममयी स्वरूप से निर्वहन करता है कि नहीं ? इसे स्वयं पहिचानें | वह अपने में सद् गुणीय स्वरूपों को पहिचाने । क्या उसके तन मन हृदय में आत्मीयता , मानवता , सरलता , शिष्टता , विनम्रता , कृतज्ञता , आत्मवत् सत्य प्रेम , करुणा , दयालुता , क्षमा , शीलता ,अहंकार विहीनता , क्रोध विहीनता , सत्यवादिता , सद्चरित्रता जैसे गुण स्वरूप उनमें विद्यमान हैं कि नहीं । यदि है तो वह यथार्थ में परमात्म सत्ता , ईश्वरीय सर्वोच्च सत्ता का पूर्ण परम सत्य उपासक है।
यदि नहीं है उनके जीवन में घर परिवारीय ,संसार समाजीय , लोगों , नर नारियों , माताओं , बहिनों , बेटियों एवं अपने जीवन कार्य व्यापारों में , कार्य व्यवहारों में ईश्वरीय सत्य नैतिक नियम नीति दर्शन का सत्य समावेश है या नहीं है ।
वह पारस्परिक अपने आत्मीय जनों के प्रति छल छद्म , झूठ पाखण्ड , अन्याय अत्याचार , धोखा दगा स्वरूपीय मनोभाव रखते हैं। अपने जीवन कर्म प्रणाली में ,कार्य व्यवहार , चरित्र में इन सबका प्रयोग करते हैं तो उनका मन्दिर ,मस्जिद , चर्च ,गुरुद्वारा ,कथा भागवद् , गुरु ग्रन्थसाहिब , बाईबल , कुरान , पाठ पूजा करना करवाना , जप तप तीरथ करना सब महज नाटक है।
यह सब आसुरीय नास्तिकीय लक्षण हैं। ऐसे लोग महज नाटक भलेही करते रहें परम सत्ता , सर्वोच्च सत्ता जगत पिता जगत माता की करुणा दया प्रेम स्नेह के कभी भी सत्पात्र नहीं हो सकते हैं और ना ही होते हैं। उसके लिए संसार जगत व अपने आत्मिक भाइयों , माता , बहिन , बेटियों ,भार्या एवं मातापिता के प्रति सत्य कर्तव्य दायित्व प्रेम स्नेहवत् उपरोक्त वर्णित सद्गुण धारण करना परम सत्य आवश्यक है |
सभी मानवों नर नारी , स्त्री पुरुषों को पारस्परिक सभी के प्रति आत्मवत् करुणामयी , क्षमामयी, दयामयी , पारस्परिक स्नेहमयी , छल छद्म , झूठ , पाखण्ड से रहित , अहंकार अन्याय , अत्याचार से रहित मनोभाव , मनोसोच , रखनी होगी, बनानी होगी , धारण करनी होगी और अपने कार्य व्यवहार चरित्र में लानी होगी , जीनी होगी वही परमेश्वर सत्य भगवान का सत्य पूजक सत्य आराधक , सत्य श्रृद्धावान , सत्य आस्थावान , सत्य आस्तिक है अर्थात् परमात्मा को सत्य मानने वाला व सत्य जानने वाला है ।
इससे विपरीत चरित्र का कार्य व्यवहार करने वाला महज नाटकीय दिखावा करने वाला नास्तिक स्वरूपीय पूजा धारी है। इससे व्यक्ति ,नर नारी , स्त्री पुरुष ईश्वर भक्ति करने वाला या ईश्वरका भक्त कहलाने वाला स्वयं अपना आत्म आकलन कर सकता है कि वह आस्तिक है या नास्तिक ।
– डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री ”