लायें हैं हम तूफान से कश्ती निकाल के ।

इस देश को रखना सदा , संकट में डाल के I

सिखलाते रहो जनता को उल्आ ही पहाड़ा।

विधानसभा को बना दो , खूनी अखाड़ा ।

ठिकाने गर लगी न हो , किसी की भी अकल ।

लोकसभा में चलवा दो जूता व चप्पल ।

लड़ो भिड़ो , मरो कटो , लहू उबाल के ।

इस देश को रखना सदा , संकट में डाल के ॥

लूटो खसोटो देश को , जितना भी हो सके।

महंगाई इतनी लादो जो जनता न ढो सके |

मिटा दो गरीबों को, गर गरीबी न मिटे l

खतरे में न कुर्सी पड़े , जनता भले पिटे ।

घोटाले पर घोटाला कर तू संग दलाल के ।

इस देश को रखना सदा, संकट में डाल के । ।

झिझको नहीं गर देश को भी बेचना पड़े ।

आतंकवाद को हवा दो , तुम खड़े खड़े ।

दिखलाते रहो जनता को नारों का सब्ज बाग।

वश चले गर तुम्हारा देश को लगा दो आग ।

अपराधियों को एमएलए एमपी में ढ़ाल के ।

इस देश को रखना सदा , संकट में डाल के ॥

अम्बर तेरा परिवार घर पर हरा भरा रहे।

बारूद के ही ढेर पर वसुन्धरा रहे।

कुर्सी के लिए जनता के गले को घोंट दो ।

चिल्लाओ सरेआम तुम मुझी को वोट दो ।

फंदे में फंसाओ सभी को शब्द जाल के ।

इस देश को रखना सदा, संकट में डाल के । I

हिंसा कहीं रैली कहीं हड़ताल या दंगा।

अस्मत का कहीं सौदा, कहीं खून की गंगा ।

भुगत लो शहीदों की शहादत का नतीजा ।

नौकरी कुर्सी पाता रहे, बेटा भतीजा ।

प्रतिद्वन्दियों की जान लो ,गुंडो को पाल के ।

इस देश को रखना सदा , संकट में डाल के ॥

नारों का लेप करते हो जनता के घाव पर ।

गरीबी दूर करते हो कागज की नाव पर ।

रिश्वत का यहां हर जगह बाजार गरम है ।

नैतिकता मर गई तनिक न लाज शर्म है।

चमड़ी उधेड़ते रहना जनता की खाल के ।

इस देश को रखना सदा, संकट में डाल के ॥

( साभार रचियता )

प्रस्तुतकर्ता – डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री ”

 

 

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