मनुष्य को किसी के भी साथ पत्नी हो या सन्तानें अपने को सम्पूर्णतया क्लोज ( समस्त पूर्ण समर्पण ) नहीं करना चाहिए । क्लोज (सम्पूर्ण रुप से ) पत्नी के प्रति या संतानों के प्रति जब करना चाहिए । जब वे व्यक्ति की शारीरीय,मानसिकीय, सत्य बुद्धि विवेकीय,मनोसोच, विचारीय, ज्ञानशीलता, दर्शन , विचारधारा सम्पूर्ण रुप से सत्य अनुशरण करने वाले हों , मानने वाले हों, पालन करनेवाले हों, धारण करने वाले हों । ऐसा परिवार ही सत्य सुख शान्ति आनन्द पाने वाला व सत्य विकास , सत्य उन्नति व सत्य उत्थान करने वाला होता है, बनता है व रहता है।
अन्यथा सभी का परिवारीय जीवन अशान्तिमय रहता है, चलता है तथा तनावपूर्ण स्थितियों के बीच जीता है और जिनकी कभी परिवारीय जनों ने कल्पनाएँ नहीं कीं हैं, नहीं की गयी हैं। परिवारीय जन ऐसी बिना सोचीय आश्चर्य जनित अप्रत्याशित घटनाओं , दुर्घटनाओं के शिकार होकर मृत्यु को प्राप्त होते हैं। तभी ही महामानवों , सत् पुरूषों ने, सद् पुरुषों ने सत्य ही कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति को परिवारीय जनों को सत्य आचरणीय , सत्य चारित्रीय, सत्य बुद्धि विवेकधारीय व अपने से बड़े एवं परिवारीय सद् जनों की सत्य बातों का पूर्ण सत्य रूप से पालन, मानन , धारण करते हुए, जीवन कर्म आचरणीय कार्यों में सत्यानुशरण करना चाहिए तभी वह परिवार पारस्परिक सत्य सुख शान्ति, आनन्द व पारिवारीय जीवन सत्य विकास का स्रोत सिद्ध होता है एवं सत्य उत्थान का उद्गम बनता है ।
“जहाँ सुमति तहाँ सम्पति नाना । जहाँ कुमति तहाँ विपत्ति निधाना ॥”
– डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”