उपरोक्त मानव स्वरूप को अपने वेतन-भत्तों में ही अपना परिवार, व अपने जीवन निर्वहन करते हुए पूर्ण परम सत्य आत्म संतुष्ट होना व रहना, कभी किसी के भी साथ पारस्परिक या राष्ट्र के जनमानस (प्रत्येक राष्ट्र का नागरिक, नर नारी , स्त्री पुरुष ) के प्रति आत्मीयता, आत्मवत् कार्य व्यवहार की भावना अपने अन्तर हृदय में सदैव रखना और हरदम तन मन जीवन में विकसित करते रहना तथा सदैव अपनी सामाजिक कार्य व्यवहारीय व अपने कर्तव्य दायित्व धर्म से पालन करते रहना अथवा अपने कार्य दायित्व शैली में पूर्ण परम सत्य पालनीय रूप में परमेश्वर का पूर्ण परम सत्य भय मानते हुए सदैव हर पल, हर क्षण अपनाना । परिवार में अपने माता-पिता , पत्नी-पुत्र (संताने ) पति , माता , बहन-बेटी के प्रति पूर्णतया परम सत्य कर्तव्य दायित्व निर्वहन करना,परिपूर्ण करना l तथा कभी भी कोई किसी के साथ छल छद्म ,झूठ पाखंड ,धोखा दगा , विश्वासघात नहीं करना। अन्य किसी किस्म का अहंकारयुक्त या सामान्यतः अन्याय अत्याचार नहीं करना । क्रूरता व दंभता अंश मात्र भी नहीं होना तथा कोई भी आत्महितीय लोभ लालसा अर्थ की , पद प्रतिष्ठा, यश मान कीर्ति या अन्य कोई भ्रष्ट आचारीय आशा अंश मात्र भी न करना न रखना न मन में लाना । यह उपरोक्त सत्य आचार पालन ही सम्पूर्ण परम सत्य धर्म है, कर्तव्य है । परमेश्वर परमपिता परममाता की भी उपरोक्त पालन ही उस सर्वेश्वर की, एकेश्वर की, सर्वोच्च सत्ता की पूर्ण परम सत्य प्रिय पूजा, साधना , आराधना जप , तप,श्रद्धा , आस्था व पूर्ण परम सत्य तपश्चर्या है ।
ना करो किसी का शोषण, ना करो किसी पर अत्याचार ।
यही है परमेश्वर की सृजित संतानों के प्रति ,पारस्परिक सत्य कर्तव्य दायित्व का पालनीय सत्य आचार ॥
यह परमेश्वरीय सत्ता के सत्य नियम नीति , सत्व गुणीय , सात्विकीय प्रकृतिगत सत्य आचार है। व्यक्ति द्वारा पारस्परिक इतना पालन कर लेने में ही मन्दिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा, कथा , भागवद् सुनना, सुनाना , सुनवाना तथा तीर्थ स्नान आदि करना । मात्र उपरोक्त स्वरूपों को उपरोक्त नीति नियम पालन में ही निहित है।
आचाराल्लभते ह्यायुराचारा दीप्सिताः प्रजाः ।आचाराद्धनमक्षय्यमाचारो हन्त्यलक्षणम् ॥
परमेश्वर सत्य आचार की शक्ति – मनुष्य आचार से आयुको प्राप्त करता है , आचार से अभिलषित सन्तान को प्राप्त करता है , आचार से अक्षय धन को प्राप्त करता है और आचार से अनिष्ट लक्षण को नष्ट कर देता है।
– डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”



