आज शासकीय तन्त्र में अथवा सत्ता तंत्र में अपराधी तत्वों का वर्चस्व  । इसे रोकने के लिए कोई कानून नियम नीति नैतिकता युक्त न बन पाने कारण अराजक तत्वों अपराधी प्रवृति परक लोगों का संसद और विधायिका में ज्यादा जमावड़ा बढ़ रहा है जो देश  के लिए । देश के जनमानस के लिए कभी भी हितकर सिद्ध नहीं हो सकता है । जो सदैव अति घातक सिद्ध होता रहेगा। ज्यादा तर सांसदों विधायको का चारित्रिक दामन सत्व गुणीय और सात्विकीय प्रकृतिगत न होने के कारण रजो गुण, सुख , ऐश्वर्य, वैभव व भोग किन्ही भी तौर तरीकों से सत् या असत् (सत्य या असत्य ) अथवा तामसीय स्वरूपों से ( चोरी, लूट , हत्या , बलात्कार आदि से कैसे भी प्राप्त हो ) कैसे भी प्राप्त हो या होना चाहिए । यह मनो प्रवृत्ति तन , मन , जीवन की आवश्यकता बन गयी है । यहां हमारे सामाजिकीय स्वरूप का दूसरा पहलू भी देखिए । आज हम / हमारे देश के बच्चों को जिन्हें हम सभी भारत के जनमास भावी राष्ट्र  निर्माता व देश का भविष्य कर्णधार कहते हैं। उनकी पाठ्य पुस्तकों में देश में हुए महान पुरुषों की जीवनियां उनका त्याग, उनका सत्कर्म तथा उनके द्वारा किया एवं दिया गया सदाचरण इसलिए पढ़ाते हैं कि वह पढ़ लिख कर उनके दर्शन को अपने अन्तः करण में आत्मसात करके आगे बड़े होकर देश की व्यवस्था व देश के जनमानस को एक अच्छी दिशा दर्शन प्रदान करेंगे । जिससे हमारे देश का स्वर्णिम भविष्य तो बनेगा ही और देश की जनता भी सुखी खुशहाल प्रसन्नचित आनंदमय रहेगी । देश का प्रत्येक जन मानस जो वास्तविक बुद्धि जीवी है वह सदैव परमार्थवादी  सर्वहितैषी व सभी का भला करने व चाहने वाला ही रहेगा अथवा होगा। क्योंकि सत्य सुख शान्ति आनंद का स्रोत भी यही है। यही हमारे महापुरुषों ने सद् ग्रन्थों में ( गीता ,रामायण , गुरुग्रन्थ साहिब , बाइबिल आदि में सद् वार्णियों के रूप में दिशा निर्देशन के लिए संग्रहीत किया है। देश के बच्चे तो हमारे देश के भविष्य के भावी भाग्य निर्माता हैं । उनसे हमारे देश के उज्वल भविष्य की कल्पनाएं हैं। बच्चों का दृष्टांत हमने इसलिए दिया है कि भविष्य संवारने के लिए महा पुरुषों के वाक्यों को हम कल्याण दृष्टि से अन्तः करण से स्वीकार करते हैं परन्तु हम सभी को वर्तमान के अन्धकार को दूर करने की कोई चिंता नहीं है। जब वर्तमान में ही हम विनाश को प्राप्त हो रहे हैं तो भविष्य को देखने के लिए कैसे बचेंगे । हमारा आशय है कि हम भविष्य के लिए जो अच्छी कल्पनाएं मस्तिष्क में संजोये हुए हैं पर वर्तमान में कुछ करने को तैयार नहीं । सर्व प्रथम हमें वर्तमान की सोचना चाहिए ।क्योंकि अच्छे वर्तमान से ही भावी भविष्य तैयार होता है । वर्तमान में आज देश की बागडोर सम्हालकर देश की व्यवस्था देने वालों का चरित्र क्या है? क्या ऐेसे राष्ट्रीय सत्ता में विद्यमान अपराधिक चरित्र के लोग राष्ट्र का भविष्य या देश के जनमानस का भविष्य बना रहे हैं या बना पायेंगे वर्तमान में देश की व्यवस्था की हालत आप देख ही रहे हैं I आगे की ऐसी स्थिति में रहते हुए कल्याण या विनाश की कल्पना आप स्वयं कर लें। क्या हम लोग इस बारे में सोच नहीं सकते? क्या हम सभी लोगों की बौद्धिक छमता का हृस हृॉस हो गया है ? क्या हमारे सोचने विचारने की शक्ति पूर्णतया चुक गयी है? भारत की संवेधानिक प्रणाली में जनता को ही इस देश की व्यवस्था को देने वाले कर्णधारों ( सांसदों और विधायकों ) कें निर्माण की शक्ति मताधिकार के रूप प्राप्त है फिर क्या हम उस शक्ति का सदुपयोग करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र नहीं हैं । जब हम स्वतंत्र हैं , जब हम अच्छी व्यवस्था देने वाले कर्णधारों का निर्माण कर सकते हैं तो फिर क्यों ऐसे लोगों का समर्थन करके अपने व अपने देश के भावी कर्णधारों अपने बच्चों के पैरों पर कुलहाड़ी मारकर स्वविनाश की ओर अग्रसर हो रहे हैं। स्वविनाश का भी रूप देखिए । एक परिवारीय चरित्र से शुरुआत करिए । परिवार के मुखिया पर ही परिवार का भविष्य निर्भर रहता है । जिस परिवार का मुखिया चरित्रहीन , जुआरी , शराबी , दुराचारी निकलजाता है उस परिवार का भविष्य विगड़ता है या नहीं। उस परिवार का विनाश होता है या नहीं ? यह सब हममे से हजारों लोगों ने देखा है व देख रहे हैं। आज उन घरों की माताऐं ,बहिनें , बेटियां बच्चे सब अंधकार में भटकते कराहते जीवन के अंधेरों में डूब रहे हैं। यह तो मनुष्य के छोटे दोषों की एक झलक मात्र है। और जहां जोर जबरदस्त से हत्यायें , कत्ल , लूट तथा महिलाओं की इज्जत लूटने वाले लुटेरों  की भरमार है। जिनका उपरोक्त दुराचरण ही कर्म बन गया हो? क्या ऐसे लोग वर्तमान में व्यवस्था प्रणाली में शामिल होकर देश की जनता को जिंदा रहने देंगे? यह तो आप लोग स्वयं से सोचें । जब वर्तमान व्यवस्था ही दूषित . हो जायेगी। जब हम ही जिंदा नहीं रहेंगे तो हम अपने बच्चों के भावी भविष्य को क्या देखेंगे ? क्या हमें भारत का जनमानस बता सकता है कि एक बलात्कारी जोर जबरदस्ती , कट्टा, तमंचा व कई लोगों के समूह के बल पर एक अबला की इज्जत लूटने वाला नारी की इज्जत की रक्षा का कार्य करेगा । चोरी ,डकैतियां , कल्ल करवाने वाला व्यक्ति देश में चोरी , डकैतियां मर्डर को रुकवायेगा ? अपने अपराधिक कृत्यों के बल पर देश में माफिया के रूप में जनता को पेट पालने वाले व्यापारों में अपना हस्ताक्षेप करके उनसे मेहनत , मजदूरी , परिश्रम लेकर उनके हक को स्वयं हड़पकर उनका शोषण करने वाला देश की गरीबी , बेरोजगारी मिटायेगा ? अपने अपराधी कारनामों के बलपर देश की जनता को भय आतंक से भयभीत करने वाला क्या देश की जनता को सुखशांति एवं भय मुक्ति का वातावरण देगा ? यह हमारे देश के प्रत्येक जनमानस स्वयं समझें व सोचें । अगर गहराई से उपरोक्त विषयों पर हमने चिंतन नहीं किया, अपनी मताधिकार शक्ति का सदुपयोग नहीं किया तो वर्तमान में चल रही विनाशलीला का परिणाम आप स्वयं सोच सकते हैं। अभी मरते हुए जी रहे हैं बाद के जीवन के बारे में आप स्वयं सोच सकते हैं। अन्ततः देश के विनाशीय स्वरूप को कोई नहीं रोक पायेगा । आज देश के शासन की कर्मचारिक व्यवस्था में करोड़ो लोग हैं। जिनके चयन के समय में उनके चरित्र की जांच आई. ए . एस . अधिकारी एवं पुलिस के अधिकारी के प्रमाणी करण के द्वारा होती है। उनमें थोड़ी सी कमी पर ही उनका चयन निरस्त कर दिया जाता है और देश की संसद व राज्य की विधानसभाओं में जितने भी सांसद और विधायक हैं , जिनका महत्व देश की सारी व्यवस्था और अन्य तमाम मानव जीवन हितकारी व्यवस्थाओं का संचालन करना है। उनके चरित्र का कोई वेरीफिकेशन (प्रमाणीकरण ) नहीं ? इतने महत्वपूर्ण कार्यभार का निर्वाह करने वाले लोगों की कोई जांच पड़ताल नहीं । ऐसा क्यों ? आओ हम लोग जागें देश तथा मानव एवं स्वयं का सच्च हित चाहने वाले लोग आगे आयें और चुनाव आयुक्त , राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को ऐसी आचारसंहिता बनाने के लिए बाध्य करें। जिसमें शासन सत्ता की बागडोर संहालने वालों , देश का प्रतिनिधित्व करने वालों को प्रत्याशियों के रूप से पूर्व ही सच्चरित्रता की अनिवार्यता . सर्वप्रथम हो । उन्हे प्रत्याशी बनाने से पूर्व उनके जीवन के क्रिया कलापों की जांच पड़ताल स्थानीय पुलिस से आलग हटकर विभिन्न – विभिन्न  क्षेत्रों की सी oबी o आई ० द्वारा होना चाहिए उसके उपरान्त सत्य प्रमाणीकरण की मुहर लगनी चाहिए । उसके बाद ही वह संसद  सदस्यता या विधान सभा की सदस्यता की प्रत्याशिता का पात्र बनाया जाये । सद्चरित्र अच्छे लोग ही अच्छा वातावरण दे सकते हैं। इस विनाश विभीषिका जो हम लोगों का विनाश करने पर तुली है , रोकें । और उपरोक्र प्रक्रिया अनुसार सर्वेभवन्तु सुखिना ( सभी सुखी हों )  सर्वेसन्तु निरामया (सभी निरोगी हों)  सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ( सभी एक दूसरे के हित के लिए सोचें। ) मा कश्चित दुख भाग भवेत (किसी को किसी से किसी भी प्रकार का कष्ट न हो )॥ वाली सूक्ति को चरितार्थ कर भारत का व जनमानस का सच्चा विकास करते हुए सभी को सच्ची सुख शांति व आनंदमय , उल्हासमय जीवन जीने का उत्तराधिकारी बना दें ।

-डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

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