हे विश्व, राष्ट्र, समाज के लोगों (नर नारियों, स्त्री पुरुषों) जागो ? धर्म, ईश्वर पूजा, साधना, आराधना, त्याग, तपश्चर्या जो यथार्थ व पूर्ण परमसत्य है। उसको धता बताकर ( अन्देखी करके ) चन्द लोगों ने जो निज सुख स्वार्थ से सदैव जुड़े रहने की इच्छाओं आकांक्षाओं से ओतप्रोत I व उसकी आपूर्ति हेतु छल छद्म, झूठ पाखण्ड , अन्याय अत्याचार में पूर्ण डूबे वे चतुर चालाक धूर्त बाहर से उजला तन भीतर से काला मन रखने वाले लोग अन्य लोगों को मूर्ख ही नहीं अति मूर्ख बना रहे हैं, धर्म का नाम देकर धर्म की आड़ लेकर संसार, समाज के लोगों की अज्ञानता ,अंधता , अविवेकशीलता , बुद्धिहीनता , अजाकरूकता का लाभ लेते हुए अपना राजनीति परक , अपना कूटनीति परक , अपना कपट नीतिपरक सृष्टि मानव पर निशाना साधकर , लगाकर अपना मनो सुख स्वार्थ साध रहे हैं । हे भारत के जन मानस विश्व तक विद्यमान जनमानस आंखें बंद करके , बुद्धि विवेक तथा अपने दिल दिमाग के ताले बंद करके, आंखें मींचकर धर्मान्धता के कुंए में मत गिरो I सत्य ( ईश्वर ) प्रकृति स्वरूप में शाश्वत् है । स्वयं की आंखों में भले ही धूल झोंक कर स्वयं अंधे बन जाओ । परन्तु परम सत्ता , सर्वोच्च सत्ता जगद् पिता जगद् माता जो सर्वत्र व्याप्त है, कण- कण में व्याप्त है , चर-अचर में व्याप्त है, वह परमपिता परम माता अपने प्रकाश से सर्वत्र दृष्टिगोचर है । उसकी आंखों तक उस सर्व बुद्धिमान, सर्व कर्तव्यवान, सर्व समर्थ, सर्व शक्तिमान , सर्व सत्य न्यायवान, कर्ता , धर्ता , भर्ता , सर्व सृजनहारा , सर्वपालनहारा , सर्व संहारण हारा, सभी मोह आसक्ति से मुक्त, सभी प्रलोभनों से मुक्त उसकी आंखों में धूल नहीं झोंकी जा सकती । क्योंकि वह सर्वत्र व्याप्त, अतिपूर्ण सजग , जागरूक , प्रकृतेश्वर है । सर्व मानवों का सत्य असत्य देखता , सुनता , जानता है और सत्य न्याय कर्ता है । उसको न्याय देने में देर भले ही हो परन्तु उस सत्य न्याय दाता के न्याय में अंधेर नहीं होता। उसकी लाठी में आवाज भी नहीं होती और बगैर कागज कलम के न्याय हो जाता है तथा वह न्याय कर देता है। हे मानवों अपने ज्ञान चक्षुओं ,सत्य ज्ञानीय बुद्धि विवेक से सत्य को सत्य से पकड़ो । ” जागो रे जिन जागना अब जागन की बार । तब क्या जागे मानवा जब सब खो गये जीवन के सत्य आधार व सब सत्य कल्याण के सब सत्य आधार ॥ “
– डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”