पार्ट : 2
एक सत्य ईश्वर भक्त की परमेश्वर विषय पर शाश्वत् प्रत्यक्ष पर शंका ? और उसका समाधान निम्न शब्दों में व्यक्त है।
रिपोँट –डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”
तू है या नहीं भगवान
कभी होता भरोसा ,कभी होता भरम , पड़ा उलझन में है इन्सान ।
मत उलझन में पड़ इन्सान । मत उलझन में पड़ इन्सान ।
तेरे सोचे बिना जब होता है सब तो समझ ले कहीं है भगवान ।
वो है अगर तो क्यों न देता दिखाई ।
कैैसी ये उल्टी रीति है , कैसी ये उल्टी रीति है ।
झूठा है वो उसके झूठे ही भय से ,झूठा जगत भयभीत है ।
घन-घन गरजती हुयी ये घटायें , किसका सुनाती ये गीत हैं ।
लहराते सागर की लहरों में गूंजे , किसका अमर संगीत है ।
किसका अमर संगीत है।
जो दाता है सबका महान, दिया जिसने जनम, दिया जिसने ये तन, क्यों न उसको सका तू पहिचान ।
मत उलझन में पड़ इंसान ।
बालक की माता रोती है क्यों ? अनहोनी जग में होती है क्यों ?
मंदिर में दीप जलातेे हैं जो उनके घर की बुुुुझती ज्योति है क्यों ?
अनहोनी जग में होती है क्यों ?
जीवन मरण हानि और फायदा कर्मों का फल उसका है कायदा । इंसान की कुछ भी चलती नहीं ,करनी कभी अपनी टलती नहीं।
भक्ति के भाव से उसको तू जान ले , श्रृद्धा की आखों से उसके पहिचान ले ।
होता नहीं क्या अचम्भा बड़ा , आकाश किसके सहारे खड़ा । आकाश किसके सहारे खड़ा ।
फूलों में रंग , झरनों में तरंग , धरती में उमंग जो उठाता वो कौन , क्या तुम ?
वो है सर्वत्र शक्तिमान , कण- कण में बसे पर दिखाई न दे , उसकी शक्ति को पहिचान । मत उलझन में पड़ इंसान ।
तेरे सोचे बिन जब होता हैैै सब । तो समझ ले कण कण में है भगवान , सर्वत्र है वह विद्यमान ।
अर्थात् ईश्वरीय सत्ता परम सत्ता जगद् पिता जगद् माता अदृश्य शक्ति है जो प्रकृति स्वरूप में , कण- कण में , चर-अचर में सर्वत्र विद्यमान है । उस सर्वोपरि सर्वोच्च सत्ता का ना ही कहीं कोई रंग , रुप, आकार , आकृति है। वह प्रकृति स्वरूप में साकार है, निराकार है । वह सर्वत्र व्याप्त है अथवा वह तमाम घटनाओं दुर्घटनाओं के अजब गजब विचित्र रूपों स्वरूपों में है । परन्तु शाश्वत् होता रहता हुआ भी साकार निराकार है ।
-डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”