विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा दिल्ली में दी गई जनसभा के दौरान बिजली व्यवस्था पर दिए गए बयान का स्वागत किया है। समिति ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि बिजली के निजीकरण का निर्णय तुरंत वापस लिया जाए। संघर्ष समिति ने कहा कि मुख्यमंत्री पर कर्मचारियों को पूरा भरोसा है, और यदि निजीकरण का फैसला वापस लिया जाता है तो कर्मचारी उनके नेतृत्व में प्रदेश को बेहतरीन बिजली व्यवस्था देने के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे।
समिति ने बताया कि प्रबंधन ने निजीकरण की बात उठाकर ऊर्जा निगमों में अनावश्यक अशांति का माहौल पैदा कर दिया है। उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों ने महाकुंभ में उत्कृष्ट बिजली आपूर्ति व्यवस्था करके अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है, जिसे पूरे देश ने सराहा है।
निजीकरण के विरोध में बिजली कर्मचारियों का आंदोलन लगातार जारी है। आज प्रदेशभर में बिजली कर्मचारियों ने काली पट्टी बांधकर और विरोध सभा आयोजित कर अपना आक्रोश व्यक्त किया। यह अभियान 25 जनवरी को भी जारी रहेगा, और उसी दिन समिति अपने अगले कदमों की घोषणा करेगी।
संघर्ष समिति ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा दिया गया बयान यह साबित करता है कि उत्तर प्रदेश की सरकारी बिजली व्यवस्था दिल्ली की निजी बिजली व्यवस्था से कहीं बेहतर है। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश में घरेलू उपभोक्ताओं के लिए बिजली की दरें दिल्ली की तुलना में तीन गुना सस्ती हैं। यह पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन के लिए चेतावनी होनी चाहिए कि निजीकरण के बाद बिजली महंगी हो जाएगी।
समिति ने यह भी कहा कि मुंबई, कोलकाता और दिल्ली जैसे शहरों में बिजली निजी क्षेत्र के हाथों में है, जहां बिजली की दरें उत्तर प्रदेश की तुलना में काफी अधिक हैं। उदाहरण के तौर पर, मुंबई में टाटा पावर और अदानी पावर द्वारा 500 यूनिट का शुल्क 17-18 रुपये प्रति यूनिट है।
आज पूरे प्रदेश में बिजली कर्मचारियों ने विभिन्न जिला मुख्यालयों और परियोजनाओं में काली पट्टी बांधकर विरोध सभा की। राजधानी लखनऊ में मध्यांचल मुख्यालय और शक्ति भवन में विरोध सभा का आयोजन किया गया। समिति ने कहा कि निजीकरण के खिलाफ यह अभियान 25 जनवरी को भी जारी रहेगा और उसी दिन आंदोलन की अगली रणनीति तय की जाएगी।