31 अगस्त को गणपति आ रहे हैं।
आप भी घरों में पूजा की तैयारी कर रहे होंगे, गणेशजी को तुलसी छोड़कर सभी पत्र-पुष्प प्रिय हैं! गणपतिजी को दूर्वा अधिक प्रिय है। अतः सफेद या हरी दूर्वा चढ़ानी चाहिए। दूः+अवम्, इन शब्दों से दूर्वा शब्द बना है। ‘दूः’ यानी दूरस्थ व ‘अवम्’ यानी वह जो पास लाता है।
गणपति को अर्पित की जाने वाली दूर्वा कोमल होनी चाहिए। ऐसी दूर्वा को बालतृणम् कहते हैं। सूख जाने पर यह आम घास जैसी हो जाती है। दूर्वा की पत्तियां विषम संख्या में (जैसे 3, 5, 7) अर्पित करनी चाहिए। पूर्वकाल में गणपति की मूर्ति की ऊंचाई लगभग एक मीटर होती थी, इसलिए समिधा की लंबाई जितनी लंबी दूर्वा अर्पण करते थे। मूर्ति यदि समिधा जितनी लंबी हो, तो लघु आकार की दूर्वा अर्पण करें, परंतु मूर्ति बहुत बड़ी हो, तो समिधा के आकार की ही दूर्वा चढ़ाएं। जैसे समिधा एकत्र बांधते हैं, उसी प्रकार दूर्वा को भी बांधते हैं। ऐसे बांधने से उनकी सुगंध अधिक समय टिकी रहती है। उसे अधिक समय ताजा रखने के लिए पानी में भिगोकर चढ़ाते हैं। इन दोनों कारणों से गणपति के पवित्रक बहुत समय तक मूर्ति में रहते हैं
गणेशजी पर तुलसी कभी भी नहीं चढ़ाई जाती। कार्तिक माहात्म्य में भी कहा गया है कि ‘गणेश तुलसी पत्र दुर्गा नैव तु दूर्वाया’ अर्थात गणेशजी की तुलसी पत्र और दुर्गाजी की दूर्वा से पूजा नहीं करनी चाहिए। भगवान गणेश को गुड़हल का लाल फूल विशेष रूप से प्रिय है। इसके अलावा चांदनी, चमेली या पारिजात के फूलों की माला बनाकर पहनाने से भी गणेश जी प्रसन्न होते हैं। गणपति का वर्ण लाल है, उनकी पूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल व रक्तचंदन का प्रयोग किया जाता है
गणेश चतुर्थी तिथि 30 अगस्त को दोपहर 03 बजकर 33 मिनट से प्रारंभ होगी. 09 सितंबर को अनंत चतुर्दशी पर गणेश जी की मूर्ति विसर्जित की जाएगी. इन 10 दिनों के भीतर जोर-शोर के साथ गणेश उत्सव मनाया जाएगा.