व्यक्ति (नर-नारी , स्त्री-पुरुष) जहाँ जिस स्थान (जगह ) पर हो घर परिवार में , उसके अपने माता पिता, भाई बहिन, पति हो या पत्नी, पुत्र हो या पुत्री । बाहर अपना कार्य व्यापार हो या कारोबार , राजतंत्र में / शासन तंत्र में प्रवृष्टि हो या शासन तंत्र में नौकरी हो या पद प्रतिष्ठा का रूप स्वरूप या जनता या समाज के प्रति कार्य-दायित्व हों, हर जगह पर पूर्ण परमसत्य निष्ठा, पूर्ण परमसत्य पारदर्शिता से पूर्ण परम सत्य निष्पक्षता से बगैर कोई लोभ-लाभ , लालशाओं की इच्छा से किसी मोह आसक्ति से सम्पूर्णतया रहित होते , रहते हुये । पूर्ण परमसत्य ईमानदारी से अपने कार्यों के प्रति अपने कर्तव्यों दायित्वों का निर्वहन करना ही पूर्ण परम सत्य साकार-निराकार प्रकृतिसत्ता स्वरूप (पृथ्वी, जल, अग्नि, गगन ( आकाश , अंतरिक्ष ) , समीर (वायु), प्रत्यक्ष शाश्वत् परमेश्वरीय अस्तित्व की जिसे जगद् पिता जगद् माता या जगदाधिपति , सर्वोच्च सत्ता , परमसत्ता , सृष्टि सृजन कर्ता, सृष्टि पालन कर्ता व सृष्टि संहार कर्ता जिसे कहा गया है l उसकी पूर्ण परमसत्य पूजा पाठ, साधना , आराधना ‘ उसका सम्पूर्ण जप-तप ,सम्पूर्ण धर्म कर्तव्य , सम्पूर्ण सत्कर्म मात्र इतने में ही सम्पूर्णतया समाहित हैं। उसे अर्थात व्यक्ति को कहीं कोई कार्य निर्वहन करने की कहीं कोई कर्मकाण्ड , तीर्थ, पूजा, जप तप , पाठ पूजा की अंशमात्र भी करने की जरूरत , आवश्यकता नहीं है । यह मात्र ही व्यक्ति के आत्म कल्याण ,आत्म मंगल , आत्म उद्धार के लिये ही पूर्ण परम सत्य व पर्याप्त है । बस उपरोक्त इतने को पूर्ण सत्यता से निर्वहन कर लेने पर उसका जन्म व जीवन आना मिलना, होना, जीना व जाना पूर्ण परमसत्य सर्वसिद्ध है। सृष्टिमहामानव , महाबोधि बाबा साहिब महा विद्वान डा० साहब श्री भीमराव अम्बेडकर जी के इस सृष्टि धरा पर अवतरण होने , आने पर उस सर्वहितीय महा आत्मा के जन्मोत्सव पर उपरोक्त सत्य प्रस्तुति सर्वकल्याणीय सर्वहितीय सिद्ध हो व सर्व समाज के लिये प्रेरणादायी स्वरूप में सिद्ध हो । ऐसे सर्वकल्याणीय मनोभावीय महा मानव को कोटि – कोटि नमन, कोटिकोटि प्रणाम ॥
– वीर और वीरता की व्याख्या : वीर होना, वीर बनना, वीर रहना बुरा नहीं है । बुरा है अविवेकीय असत्य का परिचय देना, साथ देना । अन्याय अत्याचार करना। वीर स्वरूप भी परम आत्मा की पूर्ण परम सत्य साधना का रूप बन सकता है । असत्यीय स्थितियों , अन्यायी ,अत्याचारीय स्थितियों में गलत असत्य को, सत्वगुणीय, सात्विकीय प्रकृतिरूप से बुद्धि विवेकीय दृष्टिदर्शन से विचार , चिन्तन, मनन, विश्लेषण करे आकलन करे और उन गलत असत्य नीतियों के लिये स्वयं अहंकार रहित होकर सत्य संघर्ष करे, त्याग करे, बलिदान करे । एवं सत्य यज्ञ की बलिवेदी पर प्राणों की आहुति देने में भी तनिक न डरे। वही पूर्ण परम सत्य वीर है।
– डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”