मानव ( नर नारी , स्त्री पुरुष) गृहस्थीय आस्थायें आज वीभत्स स्वरूपीय खतरे में आ गयी हैं । एक दूसरे द्वारा अविश्वासीय रुप में जान लेना , जान देना जीवन का एक सहज सामान्य कार्य होगया है, बन गया है। अब पतिपत्नी हो या प्रेमी प्रेमिका लिव इन रिलेशन में रहने वाले दाम्पत्यीय जोड़े । किसी का किसी पर अब पूर्ण विश्वास नहीं रह गया है । मनो भावीय शंका संदेहीय और हवस पूर्ण यौन इच्छायें इतनी शारीरिक मानसिक विकृति की ओर बढ़ती जा रही हैं कि कहीं अनेक श्रृद्धायें पति द्वारा कत्ल की जाती हैं और कत्ल करके उनके टुकड़े किये जाते हैं। तो कहीं अनेक मुस्कानें व निकिता सिंहानिया जैसी विवाहित स्वरूप में बंधे जोड़े अपना सुहाग मिटाने व अपना जीवन बर्बाद करने का इतिहास स्वयं द्वारा रचती हैं। सृष्टि का वैवाहिक व पारस्परिक प्रेमीय जीवन विध्वंसता की बलि वेदी पर स्वयं से ही भेंट कर दिया जा रहा है व भेंट कर दिया जाता है। आज कैसी मानसिक स्थिति मानसिक इच्छायें पारस्परिक इतने ग्रहस्थीय पावन रिश्ते को कितने विकृति स्वरूप मानव द्वारा मानव स्वरूप को जीवन विनाशीय कगार पर मानव ( स्त्री पुरुष) ने ही खड़ा कर दिया है व खड़ा किया जा रहा है। संसार , समाज की जानलेवा विकृतियां , राजतंत्र , समाजतंत्र , प्रसिद्धि तंत्र की जानलेना एक षड्यंत्रीय स्वरूप से आदिकाल से चला आ रहा है । परन्तु आज ग्रहस्थी जोड़े दाम्पत्यीय बंधन में बंधे प्रेमी प्रेमिका जोड़े स्वयं ही अपनी जीवन संचालनीय कोई नियम नीति अपने जीवन में न बनाके न रखके पारस्परिक व्याभिचारीय हवस स्वयं में स्वयं से उत्पन्न करके , अपना घर , जीवन, प्राण गंवाने खोने की अज्ञानमयी दुर्बुद्धि कुबुद्धि पर । सुकर्म छोड़कर , पूर्ण परम सत्य बुद्धि विवेक ज्ञान अनुभव आत्मा अनुभूति सबको त्याग करके सभी को भूल करके , भुलाकरके पारसस्परिक मृत्यु के तांडव की सीमा पर आकर खड़े हो गये हैं। कहीं कोई नीति नियम विधान जो हमारे पूर्वजों ने सत्य ज्ञानानुभवी गृहस्थिक रूप स्वरूप में सत्य जीवन ज्ञान , सत्यजीवन जीने पर सत्य तत्व वेत्ताओं द्वारा सद् गृहस्थीय जीवन जीने हेतु लेखनी द्वारा व्यक्त किये। एक आचार नियम नीति में बांधे बनाये व समाज मानव , संसार मानव को सत्य जीवन जीने, आनंदमयी जीवन चलाने , संचालन करने में एक सत्य आचार विधान रुप दिया । एक पूर्ण परम सत्य नीति पारस्परिक पति पत्नी के रूप में रह रहे लोगों को अपनी मनोबुद्धि पर आत्मसंयम , अपने ऊपर आत्मनियंत्रण सत्य जीवन , पारस्परिक आनंदमयी जीवन का मार्ग दाम्पत्य स्वरूप पालन के लिए बताया व दिया । आज वह यह नयी पीढ़ी उन सबको धता बताकर आत्म प्राण हरण स्वरूपीय मानसिक विकृति पालकर शारीरीय , भोगीय , सम भोगीय हवस को बढ़ाकर अपनी स्वयं के जान जीवन समाप्त करने , अपना घर बर्बाद करने पर स्वयं द्वारा स्वयं की प्राण आहुति अल्प आयु में बदल कर आत्मघातीय , आत्म विनाशीय रुप रंग अपने सत्य विवेकीय बुद्धि ज्ञान व संसार समाजीय अनुभव भूलकर नैतिक पतन की पराकाष्ठा लांघ कर आत्मविनाशीय पारस्परिक विनाशीय रचना संरचना सृजन स्वयं द्वारा कर रहे हैं। वाह रे ? आज की नयी पीढ़ी । आज का नया गृहस्थीय स्वरूप धारणीय वैवाहिक जोड़े , प्रेमीय प्रेमिका गृहस्थीय स्वरूप में रहने वाले जोड़े । और यदि थोड़ा बुद्धि विवेक रह गया हो नव विवाहित गृहस्थीय जोड़ों अथवा पारस्परिक प्रेमबनाकर गृहस्थीय स्वरूप में रहने वाले प्रेमी प्रेमिका स्वरूपीय जोड़े। अपनी अज्ञान जनित अति बेबकूफीय अति मूर्खतापूर्ण , अतिअंधकार पूर्ण आत्म विनाशकी ओर जीवन विनाश की कल्पना में डूबे विनाशीय विकृति भावनाओं के शिकार , अपने जीवन को अपने ही द्वारा विनाशीय अंधकार में धकेलने वाले मेरे प्यारे बच्चो बच्चियों । सत्य होश में आओ । अपनी तनीय मनीय इन्द्रिय जनित इच्छाओं पर अपना परम सत्य आत्म अनुभवीत कल्पना मयी आत्म संयमीय आत्मनियंत्रणीय , अपनी विषय वासनामयी भावनाओं पर पूर्ण परमसत्य बुद्धि विवेकीय विचार चिंतन करते हुए पूर्ण परमसत्य ज्ञानका ढक्कन लगाओ और पारस्परिक पतिपत्नी , प्रेमीय प्रेमिका बनकर अपना गृहस्थीय जीवन बनाने वाले , बसाने वाले बालक बालिकाओं युवा पीढ़ी के बच्चों अपने आत्मसंयम की सीमा बनाकर अपने ऊपर पूर्ण परमसत्य आत्मनियंत्रण रखते हुए अपना बढ़िया अच्छा सुख शांति आनंदमयी दाम्पत्य जीवन , गृहस्थिक जीवन , पारिवारिक जीवन पूर्ण परम सत्य से बनाओ, जिओ । तथा हम पुराने लोगों का ग्राहस्थिक जीवन देखो व समझो आज पचास साल पूर्व हुए विवाहों को आज हम बुजुर्ग पूर्ण परम सत्य ज्यादातर आनंदमयी जीवन जी रहे हैं और ग्रहस्थीय स्वरूप का सत्य आनंद ले रहे हैं। तथा पूर्ण आयु भी जीने की ओर तत्पर हैं। और तुम पच्चीस ,तीस , पैंतीस की आयु में अपना जीवन अपने हाथ से खो रहे हो सोचो । मेरे आत्म अनुभव मेरे बच्चे बच्चियों युवाओं ले सको तो लो घाटे में नहीं रहोगे फायदे में ही रहोगे मैं तुम्हे आत्म अनुभवों के अलावा कहीं और कुछ अच्छा सच्चा नहीं दे सकते हैं। मेरे सत्य को जानो पहिचानो अवश्य परमसत्य सुखशांति आनंद का अपना दाम्पत्य जीवन ग्रहस्थिक जीवन पूर्ण आयु के साथ जियोगे पाओगे रहोगे चलोगे । सत्य बुद्धि विवेकीय , आत्म संयमीय , आत्म नियंत्रणीय जीवन ही सत्य सार्थक जीवन होता है। जो पूर्ण आयु प्रदान करता है। और पूर्ण आनंदमयी जीवन बनाता है व रखता है।

– डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

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