हे मेरे परम सत्य  ” ईश्वर अंश जीव अविनाशी ”  के नाते  “आत्मवत् सर्वभूतेषु ” के नाते  “वसुधैव कुटुम्बकम” के नाते आत्मीय जनों, आत्मीय बन्धुओं , आत्मीय माताओं, बहिनों, बेटियों सृष्टि मानवों, विश्व मानवों, सृष्टि सत्ता में विश्व सत्ता में सत्तारूढ़ पक्ष विपक्ष के रूप में आसीन राजनेताओं संसदीय, विधायिकीय न्याय नीति प्रणाली अन्तर्गत सर्व मंगल करणीय दृष्टि दर्शन से आशय विधान नियम नीति स्वरूप से उद्देश्य से विस्थापित किये गये / हुए सृष्टि मानव, विश्व मानव , राष्ट्र मानव समाज सेवा का विकल्प लेकर सत्ता आसीन, शासन आसीन तथा नियम विधानन्तर्गत बनाये गये चयन किये गये , चुने गये शासकीय राष्ट्राधीश, राष्ट्राध्यक्ष शासकीय व्यवस्था अच्छी सच्ची देने हेतु बनाये गये संसार के, समाज के, देश के, राज्य के विभिन्न विभिन्न मानवीय, मानवता पूर्ण आवश्यकीय सेवाओं मानव तन की, मानव मन की, मानवजीवन की सृष्टि के जनमानस, राष्ट्र के जनमानस की आपूर्ति हेतु एक अच्छी सच्ची व्यवस्था देने का संकल्प, शपथ लेने / देने वाले शासन व्यवस्था में अधिकारिक शक्ति से भरपूर शासकीय अधिकारी, कर्मचारी ( नर-नारी, स्त्री पुरुषों के रूप में) रुप में आसीन सत् पुरुषों , सद् पुरुषों , सद् मानवों आत्मिक भाइयों, माताओं बहिनों बेटियों के रूप में मेरा कोटि – कोटि नमन , कोटि – कोटि प्रणाम । लघु भ्रातृ , पुत्र भाई , पितृतुल्य होने के नाते पितृमातृ स्वरूपा / ईश स्वरूपा प्रदत्त ज्ञान बुद्धि विवेकानुसार अपने सभी आत्मिक भाइयों माताओं, बहिनों, बेटियों से आशय अपेक्षा रखते हुए आपलोगों हेतु कुछ शब्दीय ज्ञान का उल्लेख करने का मैं साहस कर रहा हूँ । जो मेरी समझ से सर्वहितीय सिद्ध होगा अथवा होना चाहिए किन्ही भाइयों को मेरे उद्धृत शब्द यदि त्रुटिपूर्ण प्रतीत हों तो लघु भ्रात समझ कर क्षमा कर देना। मैं क्षमा प्रार्थी मेरी समझ से ईश्वरीय सत्ता, परमसत्ता , सर्वोच्च सत्ता जगद् माता जगद् पिता जो सर्वत्र प्राकृतिक सत्ता के रूप में सर्वत्र व्याप्त है । कण- कण में विद्यमान है, चर-अचर में दृष्टिगोचर है। निराकार है और साकार है । विषय अनुभूति का है और अनुभूति प्रत्येक चेतनामयी शरीर को प्राप्त होती है , मिलती है । मेरी अपनी परम आत्मा का सत्य मत है कि उस परम ईश्वर से उसकी न्याय नीति से सदैव हर पल हर क्षण डरते हुए , उसके नियम नीतियां जो महामानव अवतार पीर पैगम्बरों ने अपने आत्म त्याग अपनी आत्म तपश्चर्याओं के माध्यम से उस सर्वोच्च सत्ता एकेश्वर को साकार पाकर मिले ज्ञान सत्य अनुभव अनुभूतियों से परम सत्य तत्त वेत्ताओं ने सत्यानुभवों से मिले तात्विक सत्य हम सभी के कल्याण हेतु सत्य मंगल हेतु हम सभी केलिए अपने पूर्ण परम सत्य ज्ञान को लिपिबद्ध करके प्रकट किया है । उनके पूर्ण परम सत्य का मूल है , परम सत्य आचार , सद् आचार अर्थात् ( छल , छद्म , झूठ , पाखण्ड , अन्याय, अत्याचार, लूट , खसोट , चोरी डकैती , धोखा दगा , विश्वासघात ,हिंसा आदि से व जान जीवन समाप्त करने से पूर्णतया निर्मूल रहना । ) सत्य परम तत्त वेत्ता कहते हैं – “सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप , जाके हृदय सांच है ताके हृदय आप । ” दया, करुणा, प्रेम, स्नेह, आत्मीयता, पर दुःखकातरता, नैतिकता, मानवता जो व्यवहार अपने लिए नहीं चाहते हो वह किसी भी दूसरे जीव प्राणी मानव ( माता, बहिन, बेटियों ) के साथ नहीं करना चाहिए । यही मानव जीवन के ईश्वरीय परमात्म सत्ता , जगद् पिता जगद् माता को पूर्ण परम सत्य रूप में उनकी सत्य प्रियता की परमसत्य आत्म साधना है । परमेश्वर / प्रकृतेश्वर से प्रेम जोड़ने उनकी दया कृपा स्नेह का पूर्ण परम सत्य पाने का मूल माध्यम है । मंदिर ,मस्जिद , चर्च , गुरुद्वारा, जप तप यह त्याग तपश्चर्या उसको पाने के प्रथम अभ्यासीय क्रियाकलाप हो सकते हैं । जैसे प्रथम अक्षर ज्ञान , शब्द ज्ञान के अभ्यास के लिए खड़िया पट्टी स्लेट । बाकी परम सत्य आचार का धनी आत्म साधक ही मात्र ईश्वरीय परमसत्ता सर्वोच्च सत्ता उस एकेश्वर , साकार-निराकार की कसौटी पर खरा उतरने वाला ही सत्य सत्पात्र सिद्ध होगा । अतः जीवन से ईश्वर जिसका हमें, हम सभी को सदैव कृतज्ञ होना व रहना चाहिए । क्योंकि जीवन के सर्व आनन्द, जीवन के भरण पोषण सुख स्वास्थ हेतु योग व्यायाम और अन्य सुख भोग हेतु । सारी सुव्यवस्था उसने हमें हम सभी को प्रकृति स्वरूप में अपना समावेश करके सृजन, पालन , संहारण निर्वहन की भूमिका का वह पूर्ण परमसत्य नियामक है अथवा संचालन कर्ता है। इस लिये मैं सृष्टिमानव , विश्व मानव जो सृष्टि सत्ता में, विश्वसत्ता में , राष्ट्र सत्ता में, राजसत्ता में बड़े- बड़े उच्च पदों पर चाहे वो प्रजा तंत्रीय हों , सृष्टि के जनकल्याणीय , सृष्टि के जीव प्राणी मानव कल्याणीय , रूपों स्वरूपों का मंगल करणीय हेतु बनकर उनकी सद् सत् सत्य सेवा मंगल का व्रत संकल्प लिये बड़ी-बड़ी पद प्रतिष्ठा पर आसीन विश्व नेता, राष्ट्र नेता । उपरोक्त परमेश्वरीय सत्ता नियम नीति , विधान के सत्य आचार को धारण करें । सृष्टि पटल पर , राष्ट्र पटल पर, राज्य पटल पर विद्यमान सत्तारूढ़ , शासनाध्यक्ष , राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री वृहद व लघु मंत्री , सांसद , विधायक , प्रशासनिक उच्च अधिकारी , सुरक्षा अधिकारी, लघु और वृहद कर्मचारी आदि जो सत्य आचार, सत्य आचरण, सत्य न्याय, सत्य आत्मीय सेवा भाव , प्रेम के माध्यम से अपना जीवन संचालन करके सृष्टि शांति , विश्वशांति, देश राज्य शांति ला सकते हैं विस्थापित कर सकते हैं। तथा खून की होलियां पारस्परिक न खेल के । सत्य न्यायिक सत्य नीति के बल पर समग्र सृष्टिपटल पर सर्व प्रेम प्रवाह की गंगा बहा सकते हैं और बहायी जा सकती है । और सत्य आचार वह विद्या है । जो परमेश्वर परमसत्ता तक के पास तक पहुंचा सकती है और परमेश्वर की सत्यानुभूति करा सकती है। कराती है। मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा, तीर्थादि व उनमें स्नान आदि सब बाह्य आवरण हैं । सिर्फ कलम दवात तक की सीमा में सीमाबद्ध हैं। असली सत्य, असली परमात्मामयी सत्य अध्यात्म है । ईश्वर सत्य प्रियता का सत्य मात्र सद् आचार , सत्य आचार , सद् आचरण , सद् चरित्र । सत्य जीवन कार्य शैली, सत्य जीवन कार्य व्यापार शैली , सत्यजीवन कार्य व्यवहार शैली । अपने को अपने मन को झूठ फरेब , छल छद्म , झूठ बेईमानी , धोखा दगा , छद्म पाखण्ड, अन्याय अत्याचार से सम्पूर्ण मुक्त करना ही , इनसे पूर्ण सत्य आत्म मुक्त होना ही , इनसे पूर्ण आत्म मुक्त रहना ही परम सत्ता सर्वोच्च सत्ता , परमेश्वर जो प्रकृति स्वरूप में साकार है समाया हुआ है जो सूर्य के प्रकाश में ,वायु स्वरूप से चालन , पृथ्वी स्वरूप से सृष्टि पालन में , अग्नि स्वरूप से उदर पूर्ति , भरण पोषण , जल स्वरूप में प्राण रक्षण व तमाम अन्य हितपरक भूमिका निर्वहन में आकाश की विशालता में जीव प्राणी मानव के आनन्ददायी स्वरूप में  वह सर्वत्र व्याप्त है। हे मानव इन शाश्वत् रूपों से वह तुम्हारी सभी सही गलत, अच्छी बुरी , अन्यायीय अत्याचारीय गतिविधियां देख रहा है। संभलो , सुधरो , संभालो सुधारो अपने को । जीवन के सत्य को सत्य से जिओ। इस समग्र सृष्टिपटल पर सृष्टि सत्ता में , जीवन चेतना रूप में इसी लिये हम सभी आये हैं । जीवन सत्य का परमेश्वरीय प्रकृतेश्वरीय सत्य का सत्य आशय समझो और सत्य से उसे सिद्ध करो । यही हम सभी की मानव समुदाय की पूर्ण परम सत्य सत्य बुद्धिमत्ता होगी  रहेगी । मेरी दृष्टि दर्शन से आत्म समझ से सूझ बूझ से उपरोक्त सत्य आचार यदि विश्व राष्ट्राध्यक्ष , राष्ट्र राष्ट्राध्यक्ष , विश्व / राष्ट्र राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री , मुख्य मंत्री अन्यमंत्री शासन व्यवस्था में न्यायी व्यवस्था अधिकारी , प्रशासनिक अधिकारी , कर्मचारी , सृष्टि विश्व में, राष्ट्र में विद्यमान समाज जन, जनमानस उपरोक्त सत्य आचार को पूर्ण परम सत्य से अपने आचार अपने कार्य कर्तव्य दायित्व में सत्य रूप में धारण मानन पालन कर लें । तो मेरा पूर्ण विश्वास सत्य दावा है कि परमेश्वर परमसत्ता का सर्वेश्वर का परमसत्य प्यार अपने काम कर्तव्य दायित्व निर्वहन में उसका एहसास अनुभूति बगैर मंदिर , मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा के जाये, बगैर जप तप , तीर्थ , स्नान के होगी , मिलेगी और प्रत्येक मानव सम्पूर्ण दुःख कष्टों से पूर्णतया मुक्त होगा , मुक्त रहेगा। और सपरिवार प्रत्येक जन आनंदसरोवर में पूर्ण परमसत्य शांति सुख व आत्म संतोष का गोता लगायेगा । सृष्टि / विश्व के किसी भी घर परिवार में दुःख और कष्ट नहीं होगा और ना ही संसार समाज संतृप्त रहेगा।

– डा० बनवारी लाल पीपर “शास्त्री”

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